
बीकानेर, कृषि विभाग द्वारा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा एवं पोषण मिशन योजना अंतर्गत बुधवार को कपास में कीट व्याधियों के प्रबन्धन के लिए जिला स्तरीय कार्यशाला आत्मा सभागार कृषि भवन में आयोजित हुई। इस दौरान जिला प्रमुख मोडाराम मेघवाल, बीकानेर पंचायत समिति प्रधान राजकुमार कस्वा, तोलाराम कूकणा, सरपंच शिवलाल मौजूद रहे। कृषि आयुक्तालय के निर्देशानुसार बीटी कॉटन में लगने वाले गुलाबी सुंडी रोग से बचाव के लिए किसानों को रोग के प्रकोप पर निगरानी, नियंत्रण के संबंध में जानकारी देने के लिए जिला स्तरीय कार्यशाला आयोजित की गई। इसी श्रृंखला में ग्राम पंचायत स्तर पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किये जाएंगे। कृषि अधिकारियों, प्रगतिशील कृषकों व जीनिंग मिल मालिकों को प्रशिक्षित करने के उद्देश्य से जिला स्तरीय कार्यशाला आयोजित की गई। सहायक निदेशक (उद्यान) मुकेश गहलोत ने बताया कि गत दो वर्षों से कृषि विभाग द्वारा इस प्रकार की कार्यशाला का आयोजन जिला, ब्लॉक व ग्राम पंचायत स्तर पर व्यापक रूप से किया जा रहा है।इसी का परिणाम रहा कि जिले में बीटी कपास का क्षेत्रफल तेजी से बढ़ा है।
संयुक्त निदेशक (कृषि) कैलाश चौधरी ने बताया कि कॉटन की बुवाई से पूर्व कॉटन जिनिंग मिलों के मालिक तथा किसान बीटी कॉटन के अवशेष प्रबंधन के लिए जिनिंग उपरान्त अवशेष सामग्री को नष्ट किया जाना आवश्यक था, जिससे समुचित रूप से कीट का प्रबंधन किया जा सकें। किसान बीटी कॉटन की लकड़ियों का प्रबंधन सही तरीके से करें, जिससे गुलाबी सुण्डी के प्रकोप को शुरूआती अवस्था में ही रोका जा सके। कृषकों को गुलाबी सुण्डी के प्रबन्धन विषय पर निःशुल्क पम्पलैट व साहित्य वितरण के साथ ही प्रभावी मोनिटरिंग हेतु फेरोमोन ट्रैप वितरण किया गया। वरिष्ठ वैज्ञानिक काजरी ने बीटी कपास की फसल की पैकेज आफ प्रैक्टिसेज से किसानों को अवगत कराया। कृषि विश्वविद्यालय के पौध व्याधि वैज्ञानिक डॉ बीडीएस नाथावत ने बीटी कपास में कीट व्याधि नियंत्रण पर प्रकाश डाला। शस्य वैज्ञानिक एसकेआरएयू डॉ अमर सिंह गोदारा ने किसानों से कपास फसल में सिंचाई व उर्वरक प्रबंधन पव विस्तार से चर्चा की। कृषि अधिकारी (मिशन) राम निवास गोदारा ने गुलाबी सुण्डी के कॉटन की फसल को होने वाले नुकसान एवं कीट के जीवन चक्र की विभिन्न अवस्थाओं पर जानकारी दी। उन्होंने बताया कि भण्डारित कपास को ढक कर रखें, जिससे गुलाबी सुण्डी के पतंगे खेतों में फसल पर अण्डे नही दे सकेंगे। सहायक निदेशक भैराराम गोदारा ने बताया कि जिले में जलवायु परिवर्तन, बढ़ते तापमान के कारण नमी के काम होने से व जिनिंग मिलों में रेशों एवं बिनौला निकाले के लिए लाये गये कच्चे कपास से गुलाबी सुंडी का प्रभाव अधिक होता है। इसलिए जिनिंग मिल मालिकों द्वारा कपास की अवशेष सामग्री को समय पर नष्ट किया जाना आवश्यक है। एरिया मैनेजर नुजीवीडू सीड्स कम्पनी के मैनेजर ने किसानों एवं जिनिंग मिल मालिकों को अपनी खेतों तथा जिनिंग मिलों के आस-पास फैरोमेन ट्रैप व पतंगे ट्रैप लगाकर कीट के प्रभाव की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने कीट नियंत्रण के लिए रसायनिक कीटनाशक की भी जानकारी प्रदान की। कार्यशाला में कृषि विभाग के अधिकारी परियोजना निदेशक आत्मा मदनलाल, उपनिदेशक जयदीप दोगने, सहायक निदेशक रधुवरदयाल सुथार, राजुराम डोगीवाल, मीनाक्षी शर्मा, कृषि अधिकारी महेन्द्र प्रताप, ममता, मामराज, मेधराज, राकेश विश्नोई, राजेश विश्नोई, सोमा, देवेन्द्र सिंह, राजेन्द्र पहाड़िया, लालचंद के साथ कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक तथा जिले के कॉटन जिनिंग मालिक, बीटी कॉटन उत्पादक कम्पनियों के प्रतिनिधियों एवं किसानों ने भाग लिया। कार्यशाला का संचालन सहायक निदेशक उद्यान मुकेश गहलोत ने किया।