बीकानेर,बीटी कॉटन में गुलाबी सुण्डी नियंत्रण विषय पर बुधवार को कलेक्ट्रेट सभागार में जिला स्तरीय कार्यशाला आयोजित की गई ।
जिला कलेक्टर नम्रता वृष्णि ने कहा कि बीटी कॉटन में लगने वाले गुलाबी सुंडी रोग से बचाव के लिए किसानों को इस रोग के प्रकोप के निगरानी, नियंत्रण,के संबंध में विशेष जानकारी दी जाए और उन्हें जागरूक किया जाए। उन्होंने कहा कि किसान अज्ञात स्त्रोत द्वारा प्राप्त कपास की किसी भी किस्म के बीज की बुवाई ना करें। नकली बीज की रोकथाम के लिए कृषि विभाग द्वारा कमेटी गठित कर समय-समय पर बीज विक्रेताओं का निरीक्षण भी किया जाए।
जिला कलेक्टर ने कहा कि कृषि विभाग की टीम फील्ड विजिट करें, किसानों से फसलों का फीडबैक लें। उन्होंने समस्त उपखंड अधिकारियों को भी गुलाबी सुण्डी के प्रबंधन हेतु जागरूकता लाने के लिए काश्तकारों एवं कपास विक्रेता कंपनियों के साथ बैठक करने के निर्देश दिए।
जिससे जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से आगामी कपास फसलों में गुलाबी सुण्डी के प्रकोप को समाप्त कर फसलों को व्यापक नुकसान से बचाया जा सके।
संयुक्त निदेशक कैलाश चौधरी ने कहा कि आगामी कॉटन की बुवाई से पूर्व कॉटन जिनिंग मिलों के मालिक तथा कृषक को बीटी कॉटन के अवशेष प्रबंधन के लिए जिनिंग उपरान्त अवशेष सामग्री को नष्ट करें। बीटी कॉटन की लकड़ियों का प्रबंधन सही तरीके से करें, ताकि गुलाबी सुण्डी के प्रकोप को शुरूआती अवस्था में रोका जा सके।
चौधरी ने बताया कि जिले में 20 मार्च तक 124 ग्राम पंचायत में गुलाबी सुण्डी के नियत्रंण व प्रबन्धन पर कार्यशाला का आयोजन किया जाएगा। कृषकों को गुलाबी सुण्डी के प्रबन्धन विषय पर निःशुल्क पम्पलैट व साहित्य वितरण किया जाएगी। उन्होंने उपस्थित कृषकों, विक्रेताओं एवं फील्ड स्टाफ से कार्यशालाओं में अधिक से अधिक किसानों की भागीदारी सुनिश्चित करने का आव्हान किया।
कृषि विश्वविद्यालय के कीट विज्ञानी डॉ केशव मेहरा ने गुलाबी सुण्डी के कॉटन की फसल को होने वाले नुकसान एवं कीट के जीवन चक्र की विभिन्न अवस्थाओं पर विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने बताया कि भण्डारित कपास को ढक कर रखें, जिससे गुलाबी सुण्डी के पतंगे खेतों में फसल पर अण्डे नही दे सकेंगे। उन्होंने बताया कि जिले में जलवायु परिवर्तन, बढ़ते तापमान के कारण नमी के काम होने से व जिनिंग मिलों में रेशों एवं बिनौला निकाले के लिए लाये गये कच्चे कपास से गुलाबी सुंडी का प्रभाव अधिक होता है। इसलिए जिनिंग मिल मालिकों द्वारा कपास की अवशेष सामग्री को समय पर नष्ट किया जाना आवश्यक है।
प्रधान कीट वैज्ञानिक डॉ हनुमान प्रसाद देसवाल ने किसानों एवं जिनिंग मिल मालिकों को अपनी खेतों तथा जिनिंग मिलों के आस-पास फैरोमेन ट्रैप व पतंगे ट्रैप लगाकर कीट के प्रभाव की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने कीट नियंत्रण के लिए रसायनिक कीटनाशक की भी जानकारी प्रदान की।
इस कार्यशाला में कृषि विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों, कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों जिले के कॉटन जिनिंग मालिकों, बीटी कॉटन उत्पादक कम्पनियों के प्रतिनिधियों एवं किसानों ने भाग लिया
कार्यशाला का संचालन कृषि अधिकारी मुकेश गहलोत ने किया। कार्यशाला में कृषि विभाग के अधिकारी यशवंती, अमर सिंह, भैराराम गोदारा, सुभाष विश्नोई, राजुराम डोगीवाल, ओमप्रकाश तरड, मानाराम जाखड़, महेन्द्र प्रताप, रमेश भाम्भू, धन्नाराम बेरड़, ममता, मीनाक्षी, संगीता इत्यादि उपस्थित रहे।