









बीकानेर,जिला परिषद, आईटीसी मिशन सुनहरा कल व फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल सिक्योरिटी के संयुक्त तत्वावधान में बुधवार को जिला परिषद सभागार में जिला स्तरीय प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया।
कार्यशाला का उद्देश्य चारागाह संरक्षण एवं पुनर्स्थापना, जैव विविधता संरक्षण रहा। कार्यशाला की अध्यक्षता करते हुए अधिशाषी अभियंता (ईजीएस) अशोक गहलोत ने कहा कि चारागाह का संरक्षण, विकास एवं संवर्धन करना आवश्यक है। यह पर्यावरण का एक महत्वपूर्ण भाग है। गांव के पशुओं के विचरण के लिए चारागाह का कुशल प्रबंधन करना आवश्यक है।
अतिरिक्त मुख्य अभियंता धीर सिंह गोदारा ने कहा कि अगर हमारे गोचर, ओरण, चारागाह नहीं बचेंगे तो आने वाले समय में बड़ी परेशानी होगी। उन्होंने चिंता जताई कि जिस दर से जनसंख्या बढ़ रही है, गांव के चरागाह भूमियों मे कमी आ रही है। इसलिए हमें चारागाह बचाना पड़ेगा। अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगाने पड़ेंगे, जिससे हम आने वाली पीढ़ी को स्वस्थ जीवन दे सकें।
पूर्व प्रधान वैज्ञानिक (काजरी) जोधपुर डॉ. जेपी सिंह ने कहा कि गोचर भूमि को विलायती बबूल मुक्त करने से पारंपरिक वनस्पतियों को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने कहा कि विलायती बबूल से, चारागाहों और पर्यावरण को गंभीर खतरा बन चुका है। इसकी गहरी जड़ें और अत्यधिक जल सोखने की क्षमता से भू-जल स्तर में गिरावट और मृदा की उर्वरक शक्ति में कमी हो रही है। इस कारण पारंपरिक स्थानीय पौधों की प्रजातियाँ भी नष्ट हो रही हैं। अतः हमे अपने चारागाहों मे स्थानीय जाति के घास, पेड़ –पौधे ही लगाने चाहिए। इन्होंने कहा कि राज्य सरकार प्रदेश के चारागाहों का प्रबंधन और विलायती बबूल उन्मूलन कर पारंपरिक स्थानीय वनस्पतियों को बढ़ावा देने की दिशा में प्रभावी कार्य कर रही है। स्थानीय स्तर पर पारंपरिक वनस्पतियों को बढ़ावा देने के लिए राज्य में 150 बीज बैंक स्थापित किए हैं। राजीविका के जिला परियोजना प्रबंधक दिनेश मिश्रा ने चारागाह विकास की अवधारणा में महिलाओं की भागीदारी पर चर्चा की।
संस्था से डिम्पल कुमारी, संतोष कुमारी, फूली देवी ने एफईएस कार्यक्रम के बारे में जानकारी दी। चारागाह विकास समिति बनाने, इसके महत्व तथा समुदाय की भूमिका, चारागाह विकास के प्रस्ताव ,परिसम्पति स्थावर रजिस्टर बनाने की प्रक्रिया तथा इसके महत्व पर चर्चा की।
कार्यक्रम में विकास अधिकारी, कनिष्ठ तकनीकी सहायक आदि अधिकारी व कर्मचारी उपस्थित रहे।कार्यक्रम का संचालन गोपाल जोशी ने किया।
