
बीकानेर कोलायत,बीकानेर जिले में स्थापित की जा रही सौर ऊर्जा परियोजना के तहत खेजड़ी (Prosopis cineraria) जैसे महत्वपूर्ण वृक्षों की अंधाधुंध कटाई को लेकर स्थानीय ग्रामीणों, पर्यावरणविदों और सामाजिक संगठनों ने गहरी चिंता और विरोध प्रकट किया है। यह वृक्ष राजस्थान की पारिस्थितिकी, संस्कृति और ग्रामीण जीवनशैली का एक अभिन्न हिस्सा है।
खेजड़ी न केवल थार मरुस्थल के पारिस्थितिकीय संतुलन को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, बल्कि यह पशुचारे, ईंधन, मिट्टी की उर्वरता और परंपरागत चिकित्सा के लिए भी आवश्यक है। यह राजस्थान का राज्य वृक्ष घोषित है और धार्मिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत पूजनीय है।
हाल के दिनों में बीकानेर के समीप प्रस्तावित सोलर प्लांट क्षेत्र में सैकड़ों खेजड़ी वृक्षों की अवैध रूप से कटाई की घटनाएँ सामने आई हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि यह कार्य बिना समुचित पर्यावरणीय मूल्यांकन और स्थानीय ग्राम सभाओं की सहमति के हो रहा है, जिससे न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुँच रहा है, बल्कि उनकी आजीविका और पारंपरिक जीवनशैली पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
पर्यावरण प्रेमी दलीप सिंह राजपुरोहित एडवोकेट की प्रतिक्रिया:
> “हम नवीकरणीय ऊर्जा का स्वागत करते हैं, परंतु हरित विकास की अवधारणा में खेजड़ी जैसे जीवनदायिनी वृक्षों की बलि देना स्वीकार्य नहीं है। विकास और पर्यावरण संतुलन साथ-साथ चलना चाहिए।”
ग्रामीणों की प्रमुख माँगें:
1. परियोजना की स्वतंत्र और निष्पक्ष पर्यावरणीय जांच कराई जाए।
2. खेजड़ी वृक्षों की कटाई तत्काल प्रभाव से रोकी जाए।
3. वृक्षारोपण योजना सार्वजनिक की जाए और उसकी निगरानी स्थानीय समुदाय की भागीदारी से सुनिश्चित की जाए।
4. ग्राम सभाओं की अनुमति एवं भागीदारी के बिना कोई भी कार्यवाही न की जाए।
ग्रामीण चाहते हैं कि हम विकास विरोधी नहीं हैं। हम चाहते हैं कि यह विकास सतत और पर्यावरण-सम्मत हो, जिसमें स्थानीय जैवविविधता, परंपरागत जीवनशैली और ग्रामीण आजीविका का संरक्षण किया जाए
किन किन स्थानों पर हो रही खेजड़ी कटाई
बीकानेर जिले के पूगल, खाजूवाला, कोलायत, नोखा, डूंगरगढ़ सहित गजनेर में सोलर कार्यों में गति है इसके कारण इन क्षेत्रों में खेजड़ी कटाई का कार्य भी रात्रि को ज्यादा होता है