बीकानेर,राजस्थान में दलित मतदाता यानी SC 17.8 फीसदी और ST 13.4 प्रतिशत के करीब हैं. विधानसभा चुनावों में जीत का मार्जिन इनसे अच्छा खासा तय होता है. चुनावी इतिहास बताता है कि सत्ताधारियों से मोहभंग अगले चुनाव में opposition की नईया पार लगा देता है.मिशन 2023 में एक बार फिर 31 फीसदी अहम हो चला है.
जयपुर. प्रदेश में अगले साल 2023 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दलों की तैयारियां भी जाहिर है. चुनावों से करीब डेढ़ साल पहले प्रदेश में अनुसूचित जाति-जनजाति का मसला इस बार चुनाव से पहले बड़े मुद्दे का रूप लेता जा रहा है (SC St vote bank politics). हाल में राजस्थान के कुछ मुद्दों ने राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरी है. जालोर में संत की खुदकुशी, दलित छात्र की पिटाई से मौत और ऐसे ही कई मामले प्रदेश सरकार के इकबाल पर सवाल खड़े कर रहे हैं. सत्ताधारी पार्टी और विपक्षी दल दोनों अपने अपने अंदाज में इसे परिभाषित करने की कोशिश कर रहे हैं.
कांग्रेस शासित राज्य में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से लेकर बीजेपी तक इस मुद्दे पर चुनावी जंग लड़ने को तैयार हैं (Vote bank politics in Rajasthan). सीएम गहलोत जहां एससी-एसटी वर्ग को सौगातें देकर कांग्रेस के पक्ष में वोट डलवाना चाहते हैं. वहीं बीते दिनों सवाई माधोपुर में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने भी एससी- एसटी कार्ड खेलकर पार्टी के इस मुद्दे को अहम साबित किया था. अब राष्ट्रीय अनुसूचित जाति-जनजाति आयोग के अध्यक्ष विजय सांपला की दो दिन तक जयपुर में मौजूदगी मसले की तवज्जो को साफ कर रहा है.
राजस्थान की ये है तस्वीर: दलित को अपने पक्ष में लेकर बीजेपी और कांग्रेस की कोशिश होगी कि चुनावी वैतरणी को पार किया जाए. राजस्थान में करीब 17.8 फीसदी मतदाता एससी से हैं, राज्य की कुल 200 सीटों में 33 सीट अनुसूचित जाति और 25 सीट अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं. माना जाता है कि हर बार प्रदेश के दलित मतदाता का सत्ताधारी दल से मोह भंग हो जाता है. इस परिस्थिति में दलित वोट बैंक अहम हो जाता है.
बीकानेर संभाग अहम : दलित समुदाय का सबसे ज्यादा वोट बैंक प्रदेश के बीकानेर संभाग में है. इसके अलावा कई सीटों पर इनकी निर्णायक भूमिका भी है. बीकानेर संभाग में 2 लोकसभा क्षेत्र बीकानेर और श्रीगंगानगर दलित समुदाय के लिए आरक्षित हैं. इसके अलावा 5 विधानसभा सीटें भी दलित समुदाय के लिए आरक्षित हैं. खास बात ये है कि बीकानेर संभाग में 19 विधानसभा सीटों पर दलित वोट बैंक जीत हार के अंतर तय करता है यहां ये लगभग 21 प्रतिशत हैं.
पूर्वी और पश्चिमी राजस्थान में दलित: कुछ ऐसे ही हालात पूर्वी और पश्चिमी राजस्थान के हैं. यही वजह है कि एक तरफ केंद्रीय मंत्री और बीकानेर सांसद अर्जुन राम मेघवाल को उत्तर प्रदेश चुनाव की कैंपेन कमेटी में सह संयोजक की भूमिका दी गई थी. राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर दलित चेहरे के रूप में मेघवाल अपनी पहचान को स्थापित करने में कामयाब रहे हैं. दूसरी ओर मास्टर भंवर लाल मेघवाल के निधन के बाद फिलहाल कांग्रेस में कोई नेता उनके चहरे का विकल्प नहीं दे पाया है. कांग्रेस में टीकाराम जूली, गोविंद राम मेघवाल,भरोसी लाल जाटव, ममता भूपेश के रूप में मंत्रिमंडल में दलित चेहरों को अहमियत के साथ जगह दी है. धौलपुर के बसेड़ी से विधायक खिलाड़ी लाल बैरवा को एससी-एसटी कमीशन का अध्यक्ष बनाया है. इन सभी नेताओं की मौजूदगी भी कांग्रेस पर जालोर प्रकरण के बाद लगे गहरे धब्बे को हलका नहीं कर पा रही है.
विजय सांपला के दौरे पर अटकलें: राष्ट्रीय अनुसूचित जाति जनजाति आयोग के अध्यक्ष विजय सांपला ने 24 और 25 अगस्त को राजधानी जयपुर में डेरा जमाए रखा. इस दौरान कई दौर की रिव्यू बैठकों में उन्होंने दलित जनप्रतिनिधियों से बातचीत की. अपने दौरे के आखिरी दिन उन्होंने प्रेस वार्ता में कहा कि राजस्थान के अशोक गहलोत सरकार अनुसूचित जाति को उनके अधिकार दिलाने में असमर्थ हैं. सभी विभागों में खामियां नजर आ रही हैं. उन्होंने कहा कि दलितों के अधिकारों की रक्षा को लेकर राजस्थान में जो फायदा मिलना चाहिए, वो उनसे छीना जा रहा है. सांपला ने आरोप लगाया कि कुछ जिलों में तो जनसंख्या के आधार पर दलितों के मौलिक अधिकारों का ही हनन किया जा रहा है.
राज्य सरकार पर भाजपा का आरोप: सांपला दो दिन रहे. उन्होंने 2 दिन की बैठक में पार्टी के स्टैण्ड को अपने हिसाब से क्लियर किया. कहा केंद्र सरकार की योजनाओं का दलितों को फायदा नहीं मिल रहा है. अत्याचार निवारण संबंधी योजनाओं पर अशोक गहलोत सरकार का रुख चिंताजनक है. उन्होंने कहा था कि राजस्थान में हो सकता है कि सरकार ने 2018 के बाद एफ आई आर दर्ज करने की अनिवार्यता की हो , लेकिन ये भी सच है कि प्रदेश में अनुसूचित जाति के ऊपर हुए अलग-अलग तरह के अत्याचार के 18,000 से ज्यादा मामले पेंडिंग हैं. उन्होंने कहा कि आंकड़े भी बताते हैं कि किस तरह से प्रदेश में अनुसूचित जाति को उनके अधिकार नहीं मिल पा रहे हैं और उनका किस तरह से हनन हो रहा है.
जाहिर है कि एक तरफ भारतीय जनता पार्टी की आक्रामकता और दूसरी ओर कांग्रेस का डिफेंसिव रुख आने वाले चुनाव में यह इशारा कर रहा है कि दलित और उनके हालात राजस्थान में चुनावी मुद्दा तो होंगे ही और जीत हार का चेहरा भी इसी रास्ते पर चलकर तय होगा.