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बीकानेर,नेशनल कोविड टास्क फोर्स टीम के डॉक्टर एनके अरोड़ा कहते हैं कि इस तरह जीनोम सर्विलेंसिंग से गटर और नालों में बहकर आने वाले इंसानी मल-मूत्र से वायरस की पहचान की जा सकेगी। वो कहते हैं कि यह एक ऐसा तरीका होता है जो कि कम्युनिटी में वायरस की पहचान करता है।अभी तक देश में कोरोना वायरस की पहचान सिर्फ ह्यूमन सैंपलिंग से होती थी, लेकिन अगले सप्ताह से देश में कोरोना वायरस की पहचान के लिए नाले के कीचड़ की जीनोमिक सर्विलांसिंग की जाएगी। यानी कि अब नाले के कीचड़ से देश में कोरोना वायरस की न सिर्फ पहचान होगी बल्कि उसकी गंभीरता के साथ-साथ इलाके में वायरस के प्रभाव का भी अंदाजा लगाया जाएगा। शुरुआती चरण में देश के 25 बड़े शहरों में यह पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया जाएगा। दुनिया में इतने बड़े स्तर पर कोरोना वायरस की पहचान करने वाला भारत इकलौता देश होगा। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के निर्देश पर देश में पहली बार इस तरीके का सबसे बड़ा और अनोखा जिनोमिक सर्विलांस शुरू होने जा रहा है। देश में कोरोना वायरस पर नजर रखने वाली नेशनल कोविड टास्क फोर्स टीम के डॉक्टर एनके अरोड़ा कहते हैं कि दरअसल अभी तक पूरे देश में तीन तरह से कोरोनावायरस की ह्यूमन सैंपलिंग से पहचान की जा रही थी। इसके लिए अस्पताल से मरीजों और उनके संपर्क में आए लोगों के सैंपल लिए जाते थे। पब्लिक प्लेस पर रेंडम कम्युनिटी सैंपलिंग होती थी। इसके अलावा एयरपोर्ट पर और बस स्टैंड पर आने जाने वालों के सैंपल लेकर वायरस की पहचान की जा रही थी। डॉक्टर अरोड़ा के मुताबिक अब पहली बार कोरोना वायरस की पहचान के लिए एनवायरमेंटल सर्विलांस का सहारा भी लिया जा रहा है। इसी सर्विलांस के तहत देश के अलग-अलग शहरों में बहने वाले बड़े-बड़े गटर और नालों के फ्लूइड को लेकर उसकी जांच की जाएगी। जांच में यह पता लगाया जाएगा कि नाले और गटर में बह रहे गंदगी में वायरस है या नहीं। डॉक्टर अरोड़ा कहते हैं कि पूरी दुनिया में अभी तक इस तरीके की कोविड जिनोमिक सर्विलांस दो देशों ने की है लेकिन उनका साइज बहुत छोटा रहा है। भारत दुनिया का पहला देश होगा जो एक साथ कई शहरों में इस तरीके की जिनोमिक सर्विलांस शुरू करेगा।

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