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बीकानेर, बहुत तप कर के कमाई गयी एक स्थिति है..और जब ये सम्मान “मैनेज” किये जायें तो तरस आता है..
तरस आता है इस सोच पर..
तरस आता इस व्यवस्था पर..
जब जिलाधीश नमित मेहता अपना सम्मान करवाने के लिए अपने अस्तित्व की पूरी ऊर्जा लगाए हुए हैं और वो भी “कोरोना योद्धा “के रूप में सम्मान.
कोरोना का नाम आते ही उन बिलखती माओं और बहनों का चेहरा याद आता होगा जिनको बीकानेर के किसी भी अस्पताल में ऑक्सीजन, रेमडिसिवर और ICU बेड नहीं मिल रहे थे.
हर गली-मौहल्ले से लाशें उठाई जाकर शमशान या कब्रिस्तान ले जाई जा रही थी.
कोरोना काल के अनगिनत आंसुओं और सैंकड़ो लाशों के जिम्मेदार नमित मेहता का कलेजा काँपना चाहिए था सम्मान मैनेज करते हुए..और ऐसे आदमी को सम्मान देते हुए विभिन्न समाजों के ठेकेदारों के हाथ थरथराए क्यों नहीं..!!
ये सनद क्यों नहीं है कि एक महिला के द्वारा यौन प्रताड़ना के आरोप की कालिख से पुता चेहरा सम्मान के लायक कैसे हो सकता है..और आज अचानक डेढ़ साल बाद ऐसा क्या हुआ कि अल्पसंख्यक समुदाय सहित अनेक सम्मान करने वालों की भीड़ कोरोना के नाम पर रोजाना कलेक्टर कार्यालय में लगने लगी.
आज जब बीकानेर में गरीबों के मौहल्ले पानी मे डूब रहे हैं तब कलेक्टर महोदय बुला-बुलाकर सम्मान ले रहे हैं…कहीं बीकानेर के 2-3 पत्रकार पूरे खेल को मैनेज करते हुए कुछ नेताओं को राय तो नहीं दे रहे हैं कि कलेक्टर Sexual harrasment के आरोपों के कारण भारी संकट में है…मौका है…
क्यों हम इन जैसों का दरवाजा पीटकर, चिल्लाकर नही पूछते कि तुम जनता की उम्मीदों की आंखों में ये दुराचार भ्रष्टाचार की मिर्ची कब तक डालते रहोगे…
आइये खुद से सवाल पूछे…कुरेदें इन नासूरों को…

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