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दिल्ली के AIIMS हॉस्पिटल के सामने दवा की दर्जनों दुकानें हैं। कोविड की तीसरी लहर और ओमिक्रॉन संक्रमण फैलने के बाद AIIMS में OPD और सामान्य इलाज बंद हो जाने की वजह से इन दवा दुकानों पर भीड़ काफी कम है, लेकिन कोविड ट्रीटमेंट के लिए एक दवा काफी डिमांड में है। इस दवा का नाम का नाम है- मोलनुपिराविर (Molnupiravir)। ड्रग रिटेलर बताते हैं कि कोविड की दूसरी लहर में रेम्डेसिविर या फेविपिरावीर की डिमांड ज्यादा थी, लेकिन इस बार मोलनुपिराविर नाम की दवा की डिमांड ज्यादा देखने को मिल रही है। कई डॉक्टर कोविड पॉजिटिव लोगों को यह दवा प्रिस्क्राइब कर रहे हैं।

दावा है कि यह एंटीवायरल दवा हॉस्पिटलाइजेशन को कम करती है और कोविड मरीज को गंभीर संक्रमण से बचाती है। इसका दूसरा पहलू भी है। एक्सपर्ट्स बता रहे हैं कि इस दवा के फायदे से ज्यादा साइडइफेक्ट्स हो सकते हैं और इसका इस्तेमाल आखिरी विकल्प के तौर पर किया जाना चाहिए। हमने अमेरिकी हेल्थ एक्सपर्ट डॉ. शशांक हेड़ा, MGIMS के डायरेक्टर प्रोफेसर ऑफ मेडिसिन डॉ. एसपी कालांत्री और ICMR के डॉ. समीरन पांडा से इस पर बात की।

अमेरिका में बनी है मोलनुपिराविर, भारत में सिर्फ इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी
अमेरिकन फार्मा कंपनी रिजबैक बायोथेरापेटिक्स और मर्क की इस एंटीवायरल दवा को भारत के ड्रग रेगुलेटर DGCI ने 28 दिसंबर को इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी दी थी। इसके बाद से भारत की भी कई सारी कंपनियों ने मंजूरी लेते हुए इस दवा की बिक्री शुरू कर दी है। यह कोविड मरीजों को हॉस्पिटलाइजेशन और मौत का खतरा कम करने के लिए दी जाती है।

इस दवा को लेकर मेडिकल रिसर्च के क्षेत्र में देश की सबसे अहम संस्था इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने मोलनुपिराविर दवा को लेकर चिंता जाहिर की है। भारत की कोविड टास्क फोर्स (ICMR भी जिसका हिस्सा है) ने अपने इलाज के प्रोटोकॉल में इस दवा को शामिल नहीं किया है। ICMR के डायरेक्टर बलिराम भार्गव ने 5 जनवरी को मोलनुपिराविर दवा की सुरक्षा को लेकर चेताया भी है। अभी इस दवा के भारत में क्लिनिकल ट्रायल शुरू होने बाकी हैं, लेकिन अमेरिका में कंपनी ने इसके ट्रायल कराए हैं।

अमेरिका में दवा के ट्रायल के क्या परिणाम रहे?
मोलनुपिराविर दवा के फेज-3 क्लिनिकल ट्रायल में पता चला कि दवा हॉस्पिटलाइजेशन और डेथ को रोकने में केवल 30% प्रभावी है। मुंबई के कस्तूरबा हॉस्पिटल में मेडिकल सुपरिनटैंडैंट और डायरेक्टर प्रोफेसर ऑफ मेडिसिन MGIMS डॉ एसपी कालांत्री बताते हैं कि 15 दिसंबर को एक मशहूर मेडिकल जर्नल में इसका क्लिनिकल ट्रायल पब्लिश हुआ।

अमेरिका में करीब 1400 कोविड मरीजों पर पर इस दवा का ट्रायल किया गया। 700 लोगों को ये दवा दी गई और बाकी 700 लोगों को नॉर्मल ट्रीटमेंट दिया गया। ट्रायल में पता चला कि जिन्होंने मोलनुपिराविर दवा ली, असल में उनका हॉस्पिटलाइजेशन सिर्फ 3% कम हुआ। इसका मतलब ये है कि अगर 33 लोग दवा लेते हैं तो सिर्फ 1 व्यक्ति के हॉस्पिटल में भर्ती होने की नौबत नहीं आएगी।’

कोविड की दूसरी दवाओं के मुकाबले मोलनुपिराविर कैसे अलग?
डॉ. शशांक हेड़ा का कहना है कि इस दवा का काम करने का तरीका दूसरी दवाओं से अलग है। ये दवा लीथल म्यूटेशन की गति को बढ़ा देता है, इससे वायरस की मौत हो जाती है। किसी मरीज के इलाज के लिए जब दूसरे विकल्प नहीं होते तभी इस दवा का इस्तेमाल अंतिम विकल्प के तौर पर किया जाता है।

क्या ये दवा ओमिक्रॉन के खिलाफ कारगर है?
जनवरी की शुरुआत में दवा बनाने वाली कंपनी मर्क रिसर्च लेब के प्रेसिडेंट डीन ली ने दावा किया कि कंपनी को भरोसा है कि ये दवा ओमिक्रॉन या और किसी दूसरे वैरियंट के खिलाफ कारगर है, लेकिन डॉ एसपी कालांत्री कहते हैं, ‘दवा का जब ट्रायल किया गया तब अमेरिका में ओमिक्रॉन वेरियंट के केस नहीं थे। आज जब 2022 में ओमिक्रॉन संक्रमण सबसे ज्यादा हो रहा है तो क्या ये दवा अब कारगर होगी, इसे लेकर कोई डेटा नहीं है।’

भारतीय आबादी पर इस दवा के ट्रायल नहीं हुए हैं, इस पर भी एक्सपर्ट चिंता जता रहे हैं। डॉक्टर कालांत्री कहते हैं, ‘जिस ट्रायल के आधार पर इसे भारत में इस्तेमाल की मंजूरी दी गई है वो ट्रायल अमेरिकन और यूरोपियन आबादी पर हुआ था। जरूरी है कि एशियन और खासतौर पर भारतीय लोगों पर इसका ट्रायल हो, ताकि इसके फायदे या नुकसान का क्लिनिकल डेटा तैयार हो सके।’

कंपनियां तेजी से कर रहीं दवा की मार्केटिंग
भारत में करीब 13 ड्रग कंपनियों ने एक महीने के अंदर इस दवा को लॉन्च किया है। इसकी तेजी से मार्केटिंग की जा रही है। कई डॉक्टर्स ने इसे प्रिस्क्राइब करना शुरू कर दिया है और इसे तीसरी लहर में एक रामबाण दवा के रूप में देखा जा रहा है। इस दवा का 5 दिन का कोर्स 1400 रुपये का है। हर दिन मरीज को इस दवा की 8 गोलियां लेनी होती हैं। एक्सपर्ट्स बताते हैं कि ओमिक्रॉन संक्रमण के बाद लोगों के मन में डर है इसलिए हल्के बुखार के बाद लोग ये दवा ले रहे हैं।

‘लोग सीधे मेडिकल स्टोर्स जाकर ये दवा ना खरीदें’
ICMR के मेडिकल एक्सपर्ट और डॉक्टर समीरन पांडा का कहना है कि भले ही DGCI ने मोलनुपिराविर को मंंजूरी दे दी है लेकिन जब तक भारत में इस दवा के ट्रायल नहीं हो जाते हम इसे कोविड ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल में शामिल नहीं कर सकते हैं। डॉक्टर्स को मोलनुपिराविर दवा पेशेंट की प्रोफाइल देखकर देनी चाहिए।

मोलनुपिराविर के क्या हैं खतरे?
डॉ कालांत्री बताते हैं कि कि मोलनुपिराविर दवा कोविड वायरस के RNA में बदलाव करती है, इसे तकनीकी भाषा में म्यूटेशन कहते हैं। एक्सपर्ट चिंता जता कर रहे हैं कि अगर ये म्यूटेशन बाहर आ गया और अगर इसने विकराल रूप ले लिया, तो इससे तैयार हुआ म्यूटेंट आगे की लहर ला सकता है। डॉ कालांत्री कहते हैं कि इस दवा के फायदे बहुत कम हैं नुकसान ज्यादा हैं।

गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली महिलाओं को यह दवा ना लेने की सलाह दी जा रही है। इससे गर्भवती महिलाओं के पेट में पल रहे बच्चे पर विपरीत असर हो सकता है। अमेरिका के टेक्सास में डॉक्टर और CovidRxExchange के फाउंडर डॉ. शशांक हेड़ा कहते हैं कि मोलनुपिराविर को लेकर सबसे बड़ी चिंता है इसके इस्तेमाल से प्रजनन कोशिकाओं में म्यूटेशन हो सकता है। हड्डियों और कार्टिलेज में भी दिक्कत आ सकती है।

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