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बीकानेर,आज विश्व वन्यजीव दिवस के अवसर पर आज लोगों को वन्यजीवों एवं जैव विविधता के महत्व के बारे में बताना जरूरी है। थार के वन्यजीव और जैव विविधता हमारे परंपरागत प्राकृतिक संसाधनों मै व्याप्त है, जिसमें ओरण, गोचर, नाड़ी, तालाब व उनका आगोर क्षेत्र थार की जय विविधता को अपने आप में संजोए हुए हैं। इन्ही प्राकृतिक संसाधनों से हमें केर, सांगरी, ग्वार फली, ग्वार पाठा, काचरि, मेथी, गूंदा इत्यादि सूखी सब्जियों के रूप मै उपलब्ध कराते है। अश्वगंधा, करौंदा शतावरी, गिलोय, गठिया घास, आंवला, बथुआ, चंदलिया, भूमि आंवला जैसे ओषधीय पादप मिलते हैं। जो कि विभिन्न औषधीय गुणों के साथ-साथ शरीर के विटामिंस की प्रोटीन की वसा की उपलब्धि पूरी करते हैं ।
थार के वन्यजीवों को बचाने के लिए हमारे परंपरागत खेती के तरीके, हमारी फेलो लैंड की प्रैक्टिस, ओरण, गोचर, डोली की जमीन, चारागाह का इत्यादि का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। और मधुमक्खी से लेकर बड़े से बड़े वन्य जीव हमारे प्राकृतिक पर्यावरण और जैव विविधता के मुख्य घटक है। जिसके चलते हमें इन संसाधनों से पर्याप्त पशुधन पशुओ हेतु चारा, अनाज, दाल दलहन तेल तिलहन फल सब्जियां, औषधियों के साथ उपलब्ध होती रही है। बदलते खेती के तरीकों और फसलों की सुरक्षा के तरीकों से वन्यजीवों की संख्या निरंतर घट रही है। जिसमें विशेषकर कीटनाशकों का उपयोग और खेतों में पारंपरिक बाढ़ की स्थान पर बिजली के करंट वाले तार और जालीदार तार विशेषकर राज्य पशु चिंकारा कृष्ण मृग आदि के लिए बहुत ही घातक सिद्ध हुए हैं।

अगर विकास के दबाव को देखा जाए तो इन संसाधनों पर आज की तारीख में कई तरह का दबाव है लेकिन बावजूद इसके यह परंपरागत व्यवस्था आज भी अपने आप में महत्वपूर्ण जय विविधता को संजोए हुए हैं इसलिए आज हम इस विश्व वन्यजीव दिवस पर थार की जय विविधता द्वारा हमें करोना महामारी के इस संकट में बचाया है। आज इसके महत्व को जानना बहुत जरूरी है। और इन वन्य जीवो के प्राकृतिक आवास बचाना आवश्यक है। आज विकास के नाम पर ग्रीन एनर्जी के नाम पर जिस तरह से वन्य जीवो के प्राकृतिक आवास उजड़ रहे हैं। आने वाली पीढ़ी के लिए अच्छे संकेत नहीं है।

प्रो. अनिल कुमार छंगाणी
विभागाध्यक्ष,
पर्यावरण विज्ञान विभाग,
महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय,
बीकानेर

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