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बीकानेर, मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज के वयोवृृद्ध शतायु प्राप्त, समाजसेवी गणितज्ञ मूलचंद कांटा सोनी का मंगलवार को पूर्व मंत्री देवी सिंह भाटी ने उनके निवास स्थान पूगल मार्ग पर जाकर दीर्धकालीन सामाजिक सेवाओं पर सम्मान किया। कांटा के 100 वर्ष की आयु पूर्ण कर 101 साल में प्रवेश करने पर बुधवार को बजरंग धोरे पर दोपहर तीन बजे संगीतमय सुन्दरकांड का पाठ, सम्मान व प्रसाद का आयोजन होगा।
इस अवसर पर पूर्व मंत्री देवी सिंह भाटी की ओर से चलाएं जा रहे गोचर भूमि संरक्षण व संवर्द्धन अभियान की मूलचंद कांटा ने प्रशंसा की तथा भाटी को गोचर भूमि में दीवार के निर्माण के लिए 21 हजार रुपए की राशि भेंट की। उन्होंने पूर्व मंत्री देवी सिंह भाटी के पिता स्वर्गीय भूरसिंहजी व उनके अन्य परिजनों के साथ अपने बरसलपुर में बिताएं दिनों का स्मरण किया तथा अनेक संस्मरण सुनाएं।
पूर्व मंत्री भाटी ने इस अवसर पर कहा कि बरसलपुर मूल के बीकानेर प्रवासी मूलचंदजी सोनी व उनके साथ हमेशा परिवारिक संबंध रहा है। श्री सोनी बिना किसी वैधानिक शिक्षा ग्रहण किए स्व प्रेरणा से बड़ी से बड़ी जोड़,गुणा, भाग करने में माहिर है। वर्तमान में गणित में विशेष शिक्षा ग्रहण करने वाले विद्यार्थी व गणितज्ञ मुखजुबानी वह जोड, गुणा भाग नहीं कर सकते । चारों तीर्थ की यात्रा करने वाले धार्मिक, निव्यसनी मूलचंद सोनी ने स्वर्ण कानून के समय स्वर्णकारों के हितों की रक्षा के लिए अनुकरणीय प्रयास किए। श्री सोनी ने सामाजिक एकता व भाईचारे को बढ़ावा देने, बेटियों को सम्मान देने, शराब, बीड़ी सिगरेट आदि का व्यसन नशा खोरी को रोकने के लिए हमेशा प्रयासरत रहे है। सोनी ने बीकानेर के अनेक मैढ़ स्वर्णकारों के आपसी मन मुटाव को दूर कर उनको एकता, साम्प्रदायिक सौहार्द व भाईचारे की भावना से रहने व स्वरोजगार के लिए प्रेरित किए। पूर्व मंत्री भाटी ने इस अवसर पर मूलचंदजी व उनके परिजनों के सुख-समृृद्धि व यशस्वी जीवन की कामना की।
शतायु प्राप्त मूलचंद सोनी कांटा के पुत्र भाजपा ओ.बीसी. मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष हुकमचंद कांटा, भंवर लाल सोनी, मेघराज और 6 पौत्र, 11 पड़पौत्रों व एक पड़पौत्री व वरिष्ठ मीडियाकर्मी शिवकुमार सोनी सहदेव, सामाजिक कार्यकर्ता पेंटर भूरमल सोनी ने पूर्व मंत्री भाटी का अभिनंदन किया तथा मूलचंदजी सेे आशीर्वाद लिया।
मूलचंदजी सोनी कांटा का परिचय
जोशीवाड़ा में फूलबाई कुआं के पास 100 साल पहले अपने नाना रणजीतपुरा के मोतीलाल डांवर के घर जन्में मूलचंद सोनी का जन्म शीतला सप्तमी को मां जमना देवी की गोख से हुआ। बचपन से ही मेहनती, होनहार, धार्मिक प्रवृति के मूलचंदजी हमेशा से रईसी और सात्विक प्रवृति के रहे है। सीमावर्ती गांव बरसलपुर के आईदानजी के 10 पुत्रों व 5 पुत्रियों में सबसे बड़े पुत्र मूलचंदजी ने भारत पाकिस्तान के बंटवारे के दौरान स्वर्णकार ही नहीं दीगर समाज व जाति बिरादरी के शरणार्थियों के लिए प्रवास, भोजन व पानी की व्यवस्था की तथा उन्हें सुरक्षित स्थानों पर बिना किसी खौफ के पहुंचाया तथा रोजी रोटी के लिए प्रेरित किया। विक्रम संवत् 2008 में जैसलमेर के नाचना की तुलसी देवी पुत्री मिश्रीलालजी से परिण्य सूत्र में बंधे मूलचंदजी ने सामाजिक कार्यों के साथ गृहस्थधर्म को भी बखूबी निभाया। चारों धाम की तीर्थ यात्रा की तथा हर फरियादी व पीड़ित, शोषित लोगों की तन, मन व धन से मदद की। नापासर के एक सामाजिक बंधु के अप्रिय घटना के बाद निधन पर स्वयं अपने साधनों से उसके पार्थिव शरीर को गांव तक पहुंचा कर उसकी अंतिम क्रिया की। अपने परिवार के पुत्र-पुत्रियों को नशा नहीं करने, शिक्षित व संस्कारिक बनने के लिए प्रेरित किया।
बरसलपुर से बीकानेर आकर विक्रम संवत् 2055 में स्वर्ण आभूषणों का व्यवसाय करने वाले मूलजी सोने के सभी तरह के गहनों को बनाने में माहिर है। स्वयं अनेक तरह के पुरुषों के गहने और माहेश्वरी केसरिया पगड़ी वर्तमान में साफा पहनने वाले मूलजी ने बताया कि वे जब बीकानेर आएं थे तब मैढ़ क्षत्रिय सुनारों के 21 ही घर थे। आपसी भाईचारा व प्रेम अधिक था। सभी दुख दर्द में सहभागी रहते थे। वर्तमान में स्वर्णकार समाज के हजारों घर है लेकिन पुराने समय जैसी आत्मीयता व एक दूसरे के सम्मान के भाव नहीं है।
पाकिस्तान के मूलतान, आदमपुर, बहावलपुर तथा बीकानेर से बरसलपुर तक उंटों पर यात्रा करने वाले मूलजी गोपालक रहे है। उन्होंने दो दर्जन से अधिक गायांें को पालने व तथा लावारिस गोसंरक्षण के लिए भी निष्काम भाव से सेवा की। सामाजिक पंचायती में वर्षों अग्रणीय रहे मूलजी ने स्वर्णकार व दीगर स्वर्णकार समाज के पति-पत्नी, सगे-संबंधी के आपसी झगड़ों व मन मुटावों को दूर करने में भी महती भूमिका निभाई। आज भी स्वर्णकार समाज के कोई व्यक्ति के मिलने पर वे उनके पूर्वजों के नाम चुटकी से बता देते है। सादा जीवन उच्च विचार, सात्विक भोजन, दृढ़ आत्मविश्वास तथा परमात्मा के प्रति दृढ आस्था रखने उनका हर पर स्मरण करने, बुरे कार्य, व्यवहार व विचार से दूर रहने वाले, मूलजी 100 साल की उम्र में भी पूर्ण स्वस्थ है।

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