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बीकानेर,इंदिरा गांधी नहर से जितना कृषि विकास हुआ है वो सीएडी ( सिंचित क्षेत्र विकास विभाग) की देन है। नहरी क्षेत्र में जहां खाले बने हैं वो रकबा सिंचित हुआ है। सकल राष्ट्रीय कृषि उत्पादन में सीएडी क्षेत्र का महत्वपूर्ण योगदान ऑन रिकार्ड है। अब भी सिंचित क्षेत्र विकास के कई प्रोजेक्ट धनाभाव और उससे ज्यादा राजनीतिक इच्छा शक्ति के अभाव में लम्बित पड़े हैं। हमारे नेताओं की प्राथमिकता तो वोटों की राजनीति है। विकास की मूल परियोजनाएं तत्काल वोटों में तब्दील नहीं होती। इससे सीएडी जैसे प्रोजेक्ट अनदेखी के शिकार होते हैं। ज्यादातर आयुक्त तो इस तरफ झांके तक नहीं। डेढ़ दशक बाद सीएडी कमिश्नर डा. नीरज के. पवन ने सीएडी की समीक्षा बैठक ली है। उपायुक्त दुर्गेश बिस्सा, मुख्य अभियंता विनोद मित्तल, मुख्य लेखा अधिकारी संजय धवन, डा. सत्यनारायण समेत अधिकारियों की सक्षम टीम ने सीएडी की विभिन्न इकाइयों भौतिक एव वित्तीय प्रगति की समीक्षा की है। इस समीक्षा से सीएडी के लम्बित प्रोजेक्ट और विकास के सभी पहलुओं को आयुक्त ने निश्चित ही समझा ही होगा। आयुक्त ने सीएडी की विभिन्न इकाइयों का प्रशानिक निरीक्षण किया यह विभाग के महत्व को पुनर्स्थापित करने और फिर से बचे नहरी क्षेत्र के विकास पहल हो सकती है। कृषि विकास और भू सर्वेक्षण का महत्व भी ध्यान में आया ही है। सीएडी के सभी अनुसंधान केंद्रों पर खेजड़ी के दशहरा तक हजारों पेड़ लाने के निर्देश सराहनीय प्रयास हैं। खेजड़ी रेगिस्तान का अमृत वृक्ष है। हनुमानगढ़ में चकबंदी होने से भी लंबित काम का निपटारा होगा। अगर सीएडी के लम्बित प्रोजेक्ट शुरू हो जाए तो देश में कृषि उत्पादन में और इजाफा होगा। कृषि से उत्पादन ही नहीं रोजगार बढ़ेगा और आर्थिक समृद्धि आएगी। लगता है सीएडी की यह बैठक पश्चिमी राजस्थान में सिंचित कृषि विकास का शुभ संकेत है।

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