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बीकानेर,माननीय मुख्यमंत्री महोदय, यह बात भला किससे छिपी होगी कि हर सत्तारूढ़ पार्टी के कुछ नेता तबादलों का बिज़नेस करते हैं। क्या वाकई आप इस बात से इतना ‘नामालूम’ थे कि मंच से शिक्षकों से सवाल पूछ बैठे कि “क्या तबादलों के लिए पैसे देने पड़ते हैं?” भोले-भले शिक्षक कहां राजनीति समझते हैं? सार्वजनिक रूप से आपसे कह दिया- “हां, पैसे देने पड़ते हैं.” और इस तरह व्यवस्था का एक स्याह सच उजागर हो गया. अब जब बात सामने आ ही गई है तो इनसे भी इतर कई बातों से आपको अवेयर करना चाहते हैं, जो ‘पैसे लेकर तबादला करने’ से कतई कम नहीं हैं. यह बताना इसलिए भी ज़रुरी है क्योंकि इन सबसे भी कहीं आप नामालूम न रह जाएं.

क्या आप जानते हैं कि प्रदेश में ऊपर से निचले स्तर तक के अधिकारियों की अधिकतर नियुक्तियां ब्यूरोक्रेटिक सिस्टम से नहीं होती. इनका निर्धारण आपके मंत्रियों और विधायकों की अनुशंसा से किया जाता है. फिर चाहे वो कोई पुलिस अफसर हो या फिर अन्य अधिकारी. जो जिस मंत्री/विधायक का जितना ख़ास, उसको उतनी ही प्रायोरिटी. आसान भाषा में कहें तो फेवरेट को फर्स्ट प्रायोरिटी. इन्हीं ‘अव्यवस्थाओं’ के चलते सीनियर के ऊपर जूनियर को काबिज कर दिया जाता है. ट्रांसफर भी तो स्वजाति और वोटबैंक देखकर किये जाते हैं. यहां तक कि किस थाने में कौनसा थानेदार लगेगा, इसका फैसला भी सत्तारूढ़ पार्टी का विधायक/मंत्री करता है. बाद में यही राजनेता अपनी राजनीति के लिए या अपने चहेतों के लिए इनका जमकर उपयोग करते हैं। अब आप ही बताइये, क्या यह बात ‘सही’ है? ये सब भी तो ‘पैसे लेकर तबादला’ करने जितना ही गंभीर मामले हैं. आप सरकार चलाते हो, भला आपसे क्या छिपा होगा?

सब-कुछ जानते हुए भी आपने इस सच से पर्दा क्यों उठवाया? क्या आप नहीं जानते थे कि एक पर्दा हटाते ही सारी व्यवस्था बेपर्दा हो जाएगी. वैसे, सब आपको आपको सियासी ‘जादूगर’ कहते हैं, हो सकता है कि आपकी इस ‘नामालूमियत’ में भी कोई गहरा राज़ छिपा हो. ऐसा भी मुमकिन है कि आपके द्वारा एक छड़ी घुमाते ही इन सब पर लगाम भी लग जाए. कितना अच्छा हो जो ऐसी ‘अव्यवस्थाओं’ पर लगाम लग जाए. सीएम साहब ! क्या ऐसा हो सकता है?

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