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बीकानेर, जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ के आचार्यश्री जिन पीयूष सागर सूरिश्वरजी के सान्निध्य में रविवार रात को ढढ्ढों के चौक में जैन धर्म, संस्कृति व जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ के 1080 वर्ष प्राचीन इतिहास से रूबरू करवाने वाली फीचर फिल्म ’’1080ः द लिगैसी ऑफ जिनेश्वर’’ का प्रदर्शन किया गया। करीब घंटें की इस फिल्म को बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाओं ने देखा व सराहा। सोमवार को बच्चों का आधे दिन की शिविर व दीपक एकासना में 50 से अधिक 6 से 18 वर्ष तक के बच्चों ने हिस्सा लिया।
आचार्यश्री जिन पीयूष सागर सूरीश्वरजी ने धर्म चर्चा में बताया कि भगवान श्रीकृष्ण की जन्माष्टमी हमें याद दिलाती है कि हालात चाहे कितने भी विपरीत हो, यदि देव, गुरु व धर्म की कृपा है, तो कारागार के दरवाजे भी खुल जाएंगे, घनघोर अंधकार में भी मार्ग प्रशस्त हो जाएगा, उफनती नदी भी रास्ता दे देगी और अंततः दुःख परमानंद में परिवर्तित हो जाएगा। बीकानेर के मुनि सम्यक रत्न सागर ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण की सभी लीलाएं सांसारिक के साथ अलौकिक है। श्रीकृष्ण की बांसुरी संदेश देती है कि बिना बोलाएं नहीं बोलना चाहिए, बोलो तब मीठा बोले । बांसुरी में किसी तरह की गांठ नहीं होती इसलिए हमें भी जीवन में राग-द्वेष की गांठ नहीं रखनी चाहिए।
आचार्यश्री जिन पीयूष सागर सूरीश्वरजी के सान्निध्य में सोमवार बालक बालिकाओं ने  दीपक एकासना व आधे दिन के शिविर में भागीदारी निभाई। श्री जिनेश्वर युवक परिषद के अध्यक्ष संदीप मुसरफ व मंत्री मनीष नाहटा ने बताया कि शिविरार्थी बच्चे जिनालायों में दर्शन वंदन कर ललाट पर केसर का तिलक लगाकर कोठारी भवन पहुंचे।  कोठारी भवन में आचार्यश्री व मुनिवृंद ने  सामूहिक सामायिक का संकल्प दिलाया। बच्चों ने दीपक के जलने तक के समय करीब 45 मिनट में एक वक्त भोजन किया । मुनि शाश्वत रतन सागर देव, गुरु व धर्म के मर्म के बारे में विभिन्न सत्रों में रोचक व सहज तरीके से बच्चों को बताया।
श्री सुगनजी महाराज का उपासरा ट्रस्ट के मंत्री रतन लाल नाहटा ने बताया कि वरिष्ठ श्रावक कन्हैयालाल भुगड़ी के 35 दिन की रौनक बरड़िया के 18 दिन की व बालिका भूमि मुसरफ व यश्वी की तपस्या की अनुमोदना की । आचार्यश्री के सान्निध्य में चल रहे श्री 45 आगम तप में सोमवार को ढढ्ढा चौक की आगम वाटिका में श्री गणिविद्या प्रकीर्णक सूत्र की आराधना की गई। आचार्यश्री ने धर्मचर्चा में बताया कि इस सूत्र में ज्योतिषशास्त्र संबंधित जानकारी है। गणि विद्या, आचार्यकुल, गण, संघ के श्रेय के लिए जिस शास़् का उपयोग करने का अधिकारी है वह शास्त्र गणिविद्या कहलाता है। मुर्हूत शास़्त्र में विशिष्ट कोटि का ग्रंथ इस आगम में ज्योतिष संबंधित दिवस, तिथि, नक्षत्र, करण, ग्रह, मुर्हूत, लग्न, शगुन, निमित आदि नव विषयों को विस्तार से समझाया है।

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