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बीकानेर,रांगड़ी चौक के बड़ा उपासरा में गच्छाधिपति,जैनाचार्य श्रीपूज्यजी के सान्निध्य में यतिश्री अमृत सुन्दरजी, यति सुमति सुन्दरजी व यतिनि समकित प्रभाश्री ने चातुर्मासिक प्रवचन में मंगलवार को दृष्टि को बदलने, सकारात्मक सोच रखने तथा आत्म परमात्म का ध्यान करने का संदेश दिया।
यति अमृत सुन्दरजी ने कहा कि दृष्टि बदलने से सृष्टि व दशा बदल जाती है। सकारात्मक दृष्टि से जीवन में खुशहाली व प्रेम बढता है, वहीं नकारात्मक दृष्टि से वैमनस्य, कलह, राग-द्वेष, अशांति होती है। दृष्टिकोण के आधार पर ही हमें जीवन में सुख-दुख मिलता है। नकारात्मक दृष्टिकोण रखने से हीन भावना, अशांति व दुख मिलता है। हमें हर काल, परिस्थिति में संतोष व संयम रखते हुए दृष्टि व सोच को सकारात्मक रखना चाहिए।
उन्होंने कहा कि जैन धर्म के लोकप्रिय भक्तामर स्तोत्र में मांनतुगाचार्यजी महाराज ने प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ का यशोगान करते हुए लिखा कि परमात्मा जब में आपको देखता हूं तो दूसरे को देखने की ईच्छा नहीं होती। ऐसे ही आत्म परमात्म के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखने वाले को सांसारिक सुख-दुख, वैभव देखने की आवश्यकता नहीं रहती। वह परमात्मा की रजा में ही संतोष कर धर्ममय जीवन यापन करता है। उन्होंने कल्याण मंदिर की एक गाथा के माध्यम से बताया कि सकारात्मक सोच व अच्छे दृष्टिकोण के साथ मन को शांत कर आत्म-परमात्म के निज स्वरूप ध्यान करने से नकारात्मकता, राग-द्वेष, कषाय दूर होते है तथा साधक अपने आत्म स्वरूप् की ओर आगे बढ़ता है।
यति सुमति सुन्दरजी ने कहा कि अपनी दृष्टि को भीतर के ज्ञान को प्रकट करने में लगाएं। अपने आत्म स्वरूप का ज्ञान ही सच्चा ज्ञान है। साधना भीतर के ज्ञान को प्रकट करती है। सुगुरु हमें भीतर के ज्ञान को उजागर करवाते है। यतिनि समकित प्रभाश्री ने ’’मिलता है सच्चा सुख भगवान तुम्हारे चरणों में’’ भक्तिगीत सुनाते हुए कहा कि सुदेव, सुगुरु व धर्म के चरणों की अनन्य भाव से शरण लेने से नकात्मकता दूर होती है तथा जीवन में सकारात्मकता बढ़ती है।
[25/07, 7:27 pm] PRO SONIG: दृष्टि को बदलें, सकारात्मक सोच रखें-यतिश्री अमृत सुन्दरजी,
बीकानेर, 25 जुलाई। रांगड़ी चौक के बड़ा उपासरा में गच्छाधिपति,जैनाचार्य श्रीपूज्यजी के सान्निध्य में यतिश्री अमृत सुन्दरजी, यति सुमति सुन्दरजी व यतिनि समकित प्रभाश्री ने चातुर्मासिक प्रवचन में मंगलवार को दृष्टि को बदलने, सकारात्मक सोच रखने तथा आत्म परमात्म का ध्यान करने का संदेश दिया।
यति अमृत सुन्दरजी ने कहा कि दृष्टि बदलने से सृष्टि व दशा बदल जाती है। सकारात्मक दृष्टि से जीवन में खुशहाली व प्रेम बढता है, वहीं नकारात्मक दृष्टि से वैमनस्य, कलह, राग-द्वेष, अशांति होती है। दृष्टिकोण के आधार पर ही हमें जीवन में सुख-दुख मिलता है। नकारात्मक दृष्टिकोण रखने से हीन भावना, अशांति व दुख मिलता है। हमें हर काल, परिस्थिति में संतोष व संयम रखते हुए दृष्टि व सोच को सकारात्मक रखना चाहिए।
उन्होंने कहा कि जैन धर्म के लोकप्रिय भक्तामर स्तोत्र में मांनतुगाचार्यजी महाराज ने प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ का यशोगान करते हुए लिखा कि परमात्मा जब में आपको देखता हूं तो दूसरे को देखने की ईच्छा नहीं होती। ऐसे ही आत्म परमात्म के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखने वाले को सांसारिक सुख-दुख, वैभव देखने की आवश्यकता नहीं रहती। वह परमात्मा की रजा में ही संतोष कर धर्ममय जीवन यापन करता है। उन्होंने कल्याण मंदिर की एक गाथा के माध्यम से बताया कि सकारात्मक सोच व अच्छे दृष्टिकोण के साथ मन को शांत कर आत्म-परमात्म के निज स्वरूप ध्यान करने से नकारात्मकता, राग-द्वेष, कषाय दूर होते है तथा साधक अपने आत्म स्वरूप् की ओर आगे बढ़ता है।
यति सुमति सुन्दरजी ने कहा कि अपनी दृष्टि को भीतर के ज्ञान को प्रकट करने में लगाएं। अपने आत्म स्वरूप का ज्ञान ही सच्चा ज्ञान है। साधना भीतर के ज्ञान को प्रकट करती है। सुगुरु हमें भीतर के ज्ञान को उजागर करवाते है। यतिनि समकित प्रभाश्री ने ’’मिलता है सच्चा सुख भगवान तुम्हारे चरणों में’’ भक्तिगीत सुनाते हुए कहा कि सुदेव, सुगुरु व धर्म के चरणों की अनन्य भाव से शरण लेने से नकात्मकता दूर होती है तथा जीवन में सकारात्मकता बढ़ती है।

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