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बीकानेर,युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की सुशिष्या साध्वीश्री जिनबालाजी के सान्निध्य में मंगलवार को भीनासर के तेरापंथ सभा भवन में आचार्यश्री तुलसी की दीक्षा शताब्दी दिवस मनाया गया। अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल के तत्वावधान में महिलाओं ने एक घंटा सामूहिक जाप का आयोजन किया। केन्द्र द्वारा निर्देशित विषय ‘आचार्य तुलसी दीक्षा शताब्दी तथा मुमुक्षा का महत्वÓ पर प्रकाश डालते हुए साध्वीश्री जिनबालाजी ने आचार्यश्री तुलसी के वैराग्य काल की घटनाओं का वर्णन किया गया। उन्होंने कहा कि कई बार कुछ घटनाएं अन्त:करण में जागृति पैदा कर देती है, संसार से विरक्ति के भाव पैदा कर देती है। मुमुक्षा का अर्थ है भोग से विरक्ति और त्याग से अनुरक्ति। भारतीय संस्कृति में संयम त्याग या दीक्षा शाश्वत मूल्य वाले शब्द हैं। किसी भी देश और काल में इनका महत्त्व कम नहीं होता। दीक्षा स्वयं पर स्वयं का अनुशासन है। अपना ज्ञान, अपना विज्ञान है। उजली चादर ओढऩे की तैयारी है। नई खोज के लिए मंगल प्रस्थान है, द्रष्टा बनने की पूर्व तैयारी है। दीक्षा भीतर की अभूतपूर्व कान्ति है तथा स्थायी सुरक्षा कवच का निर्माण है। जब भीतर में दीक्षा के प्रति आकर्षण पैदा होता है तब पदार्थ के प्रति आसक्ति व परिवार के प्रति मोह स्वत: कम हो जाते हैं। कार्यक्रम के दौरान साध्वीवृंद ने सामूहिक गीत का गान किया।

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