बीकानेर, रांगड़ी चौक के सुगनजी महाराज के उपासरे में विचक्षण ज्योति, प्रवर्तिनी साध्वीश्री चन्द्रप्रभा की शिष्या साध्वीश्री चंदन बाला ने मंगलवार को विशेष प्रवचन में कहा कि अपने भाव व विचारों को उत्तम बनाएं। दूसरों के प्रति स्नेह, आत्मीय व अहिंसा के भाव रखे । द्वेष, घृणा, ईर्ष्या, तिरस्कार आदि के भाव रखने से पाप का कर्म बंधन होता है तथा अधोगति मिलती है।
उन्होंने कहा कि अपने आपको संभालने का प्रयास करें तथा कर्मबंधन से सावधान रहे। भावों के परमाणुओं का प्रभाव पहले मन पर पड़ता है। दान,शील, तप के उत्तम भावों से कर्मों की निर्झरा होती है। भाव को शुद्ध बनाकर आत्म की अनुभूति करें। विभाव से विषय, कषाय का बंधन होता है। उन्होंने कहा कि हम अपने भावों में आरोह-अवरोह के बीच फंसे रहते है स्वयं के लिए नहीं जीते। दूसरों का चिंतन करते है, चैतन्य आत्म व परमात्म चिंतन से दूर रहते है। उन्होंने कहा कि स्वयं में जीने के लिए पुरुषार्थ करें, ’’मैं कौन हू, कहां से आया हू, कहां जाना है’’ मैं शरीर नहीं आत्मा हूं। शरीर आत्मा से भिन्न है। शरीर आत्मा का अस्थाई निवास स्थल है, इसको निश्चित रूप् से छोड़ना होगा।
साध्वीश्री ने कहा कि आत्म स्वरूप को जानने के लिए मनुष्य जीवन में श्रेष्ठ भाव के चिंतन का चिराग जलाएं। भाव को बदलने से भव बदल जाता है, दिशा से दशा बदल जाती है। पूर्व में साध्वीश्री कैवल्य प्रभाजी म.सा. ने प्रवचन किए। बुधवार को सुगनजी महाराज के उपासरे में ही भगवान विमलनाथ की स्तुति वंदना की जाएगी तथा ’’कर्म के खिलाड़ी’ विषय पर साध्वीजी के विशेष प्रवचन सुबह सवा नौ बजे से सवा दस बजे तक होंगे। कार्यक्रम में मीडियाकर्मी शिवकुमार सोनी का सुगनजी महाराज का उपासरा ट्रस्ट के मंत्री रतन लाल नाहटा, उपाध्यक्ष निर्मल पारख, वरिष्ठ श्रावक भीखमचंद बरड़िया आदि ने जैन धर्म की प्रभावना करने पर अभिनंदन किया।