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बीकानेर,राजस्थान में विधानसभा चुनावों से महज 13 महीने पहले अफसरशाही को लेकर खबरें बनने लगी है. चुनाव नजदीक आने के साथ ही ब्यूरोक्रेसी के साथ मंत्रियों के मनमुटाव खुलकर बाहर आ गए हैं. बीते दिनों मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा था कि ‘जब सरकार जाने वाली होती है तो सबसे पहले अफसर मुंह फेर लेते हैं, ब्यूरोक्रेसी तो सवारी देखती है…आप मजबूत हैं तो आपके साथ हैं’ गहलोत का यह बयान चुनावों से पहले अफसरशाही के मिजाज बदलने की ओर इशारा करता है.

वहीं ताजा विवाद अफसरों के परफॉर्मेंस तय करने वाली ACR यानि IAS अधिकारियों की एनुअल कॉन्फिडेंशियल रिपोर्ट को लेकर है जिसका हक मंत्रियों को देने पर विवाद छिड़ गया है.

गहलोत सरकार में मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने सबसे पहले मोर्चा खोला जिसके बाद कई मंत्रियों और विधायकों का उन्हें साथ मिला. इसके अलावा ब्यूरोक्रेसी पर लगाम को लेकर मंत्रियों में तू तू-मैं मैं भी हुई. बता दें कि चुनावों से पहले अफसरशाही को लेकर माहौल बनाया जाता है.

वहीं मंत्री ऐसे बयान देकर जनता के बीच अधिकारियों के काम नहीं करने की एक धारणा भी बनाना चाहते हैं. वहीं एक तबके का यह मानना है कि एसीआर भरने का अधिकार मंत्री के पास होने से अधिकारी मंत्री के बताए जनता के सभी काम समय पर पूरा करेंगे. आइए जानते हैं कि ACR पावर के बारे में और क्यों मंत्री इसको लेकर खेल रहे हैं.

एसीआर है क्या ?

बता दें कि एसीआर का मतलब होता है ‘एनुअल कॉन्फिडेंशियल रिपोर्ट’ जो एक साल में एक बार बनाई जाती है. आसान शब्दों में समझें तो एक साल में किसी अधिकारी ने अपने विभाग में क्या काम कराए और वह कौनसे काम में कितने खरे उतरे इसका हिसाब-किताब होता है.

वहीं एसीआर पर सीनियर अधिकारी और विभाग के मंत्री टिप्पणी करते हैं. इसके अलावा किसी अधिकारी के खिलाफ अगर शिकायत मिलती है तो उसका रिकॉर्ड एसीआर रिपोर्ट में शामिल किया जाता है. मालूम हो कि इसी रिपोर्ट के आधार पर यह तय किया जाता है कि कोई अधिकारी अपने डिपार्टमेंट में सही काम कर रहा है या नहीं.

एसीआर से तय होती है परफॉर्मेंस

वहीं जिन अधिकारियों की एसीआर खराब आती है उसकी परफॉर्मेंस भी उससे तय की जाती है. बता दें कि एसीआर से ही किसी अधिकारी का तबादला भी तय होता है जहां आमतौर पर डायरेक्ट जनता से जुड़े विभागों में या फील्ड पोस्टिंग नहीं मिलती है. वहीं अगर कोई अधिकारी भ्रष्टाचार जैसे मामलों में दोषी मिले तो एसीआर रिपोर्ट के आधार पर उसे नौकरी से बर्खास्त भी किया जा सकता है.

किसी विभाग का मुखिया मंत्री होता है ऐसे में अधिकारियों की ACR (एनुअल परफॉर्मेंस रिपोर्ट) भरने का अधिकार उनके पास होता है लेकिन कई मामलों में एक ही अधिकारी के पास कई विभाग होते हैं ऐसे में जब दो-तीन विभाग किसी अधिकारी के पास हो तो ACR मुख्यमंत्री ही भरते हैं जिसको लेकर विवाद हो रहा है. खाचरियावास ने कहा कि केंद्र से आया गेंहूं अधिकारियों की लापरवाही से लेप्स कर गया ऐसे में उनकी एसीआर भरने का हक मंत्रियों को मिले.

कैसे होती है ACR की प्रक्रिया?

ACR की प्रक्रिया के मुताबिक अधिकारी को उसकी परफॉर्मेंस को लेकर की गई टिप्पणी के बारे में जानकारी होती है. किसी भी IAS की एसीआर मुख्य सचिव से होकर ही मंत्री तक जाती है जिसके बाद मंत्री अपनी टिप्पणी करता है और फिर मुख्यमंत्री के पास एसीआर जाती है. बता दें कि इन मामलों में मुख्यमंत्री फाइनल अथॉरिटी होते हैं और कार्मिक विभाग भी सीएम के अंडर आता है.जानकारों का कहना है कि ऑल इंडिया सर्विसेज रूल पूरे देश में लागू होता है और सभी राज्यों में मुख्यमंत्री सुप्रीम अथॉरिटी होता है ऐसे में अगर किसी मंत्री को फाइनल अथॉरिटी बनाया जाए तो उसके लिए भारत सरकार से ही सर्विस के नियम बदलने की जरूरत होगी जो कि एक मुश्किल चरण है. वहीं कुछ जानकारों का कहना है कि मंत्री और अधिकारी दोनों की जवाबदेही तय होनी चाहिए जिससे विवाद उठने की दिशा में काम अटकाने वालों का नाम तय किया जा सके.गौरतलब है कि मंत्री हर 5 साल बाद बदलने की संभावना होती है लेकिन अधिकारी कई सरकारों में एकसमान रहते हैं. यदि कोई काम नियम के खिलाफ जाकर किए जाएं तो कुछ सालों बाद अधिकारी का मुखिया बदल जाता है. ऐसे में मंत्रियों और अफसरों के द्वंद हमेशा से ही चलता रहता है जिसे खत्म करना किसी भी सरकार में संभव दिखाई नहीं देता है.

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