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बीकानेर, प्रभा खेतान फाउंडेशन और ग्रासरूट ‘मीडिया फाउंडेशन की ओर से ऑनलाइन आखर पोथी कार्यक्रम का आयोजन किया गया। श्री सीमेंट के सहयोग से हुए इस कार्यक्रम में युवा साहित्यकार पुनीत रंगा की पुस्तक ‘लागी किण री नजर’ का लोकार्पण और साहित्यिक चर्चा हुई। पुस्तक की समीक्षा करते हुए डॉ. मदन गोपाल लढ़ा ने कहा कि इनकी कविताएं प्रकृति से जोड़ने वाली हैं। तकनीक के इस जमाने में यदि कोई युवा आखर के दर्पण में कुदरत की छटा को देखने के लिए प्रयास करता है तो इसकी प्रशंसा स्वाभाविक है। कवि पुनीत रंगा ने कहा कि प्रकृति पर कविता लिखने का मन किया तो लगा कि यह निर्णय सही है। मायड़ भाषा राजस्थानी में लेखन मुझे एक नई ऊर्जा देता है। आज के वैश्विक संदर्भ में देखा जाए तो मनुष्य प्रकृति का असीमित दोहन कर रहा है। प्रस्तावना पढ़ते हुए हरिचरण अहरवाल ने कहा कि बात को अपनी भाषा में कहने पर उसकी मिठास बढ़ जाती है। राजस्थान में चंद्रसिंह बिरकाली, उमरदान,

महाराजा मानसिंह आदि ने प्रकृति पर लेखन किया है। चंद्रसिंह बिरकाली की ‘बादळी’ कालजयी रचना है। वैश्विक परिवेश में देखा जाए तो प्रकृति के प्रति संवेदना व्यक्त करने और उसके पास जाने की जरूरत है। कवि रंगा ने प्रकृति और मनुष्य के बीच सेतु बांधने की कोशिश की है। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए ओमप्रकाश भाटिया ने कहा कि यह कविताएं प्रकृति की है। इन कविताओं में जंगल भी है और समुद्र है, तो रेत के धोरे भी हैं। इस बीच कहीं रेत मिलती है तो कहीं पक्षी भी मिलते है और खुशबूदार फूल ग्रासरूट मीडिया के प्रमोद शर्मा ने आखर पोथी कार्यक्रम की जानकारी दी। भी।

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