बीकानेर,भाजपा नेता रिखबदास बोड़ा ने स्वाभिमान और सम्मान की राजनीति करके भारतीय लोकतंत्र की सच्ची सेवा की है। जनसंघ से लेकर भाजपा की यात्रा तक वे समर्पण से पार्टी की सेवा में लगे रहे। उन्होंने किसी बड़े नेता की चापलूसी नहीं की। पिछलग्गू नहीं बने। पद पाने के खातिर जोड़ तोड़ और जी हजूरी नहीं की। भैरोंसिंह शेखावत जब राजस्थान की राजनीति के शिखर पर थे तब भी वे पद पाने उनके पास नहीं गए और न ही अपना स्वाभिमान और सम्मान खोया। भैरोंसिंह शेखावत उनका सम्मान करते थे। बोडा शेखावत से निकट के संबंध होने के बावजूद जनहित के मुद्दों पर वे उनको खरी खरी कह देने की हिम्मत रखते थे। जनता की आवाज उठाने के मामले में वे विधायक या सांसद का मुंह नहीं ताकते थे। फटाक से बात रखने का उनमें सम्मर्थ्य था।वे अपने साथियों, आम लोगों ओर पत्रकारों के साथ शालीनता और विनम्रता का व्यवहार रखते थे। न भाजपा के नेता होने की उनमें फूंक थी और शेखावत के निकट होने का गुमान। आज जो पीढ़ी राजनीति में है उनको समझने की जरूरत है कि वे कैसे और किस तरह की राजनीति कर रहे हैं। उनका जनता में नेता के रूप में कैसा व्यक्तित्व उभरा है। क्या वे जनहित के मुद्दों की राजनीति कर रहे हैं? बड़े नेता के पिच्छ्लगु बनकर अपनी राजनीतिक पैठ बनाने के चक्कर में तो नहीं है। जनता का नेता कोन होता है जो जनता की आवाज बने। दूसरों की पीठ पर सवार होकर आज तक कोई जन नेता बना हो तो बताएं। यह बात सही है ऐसा करके कोई भी अपने हित साध सकते हैं। बोडा जनसंघ के नेता रहे हैं। वाजपेयी, आडवाणी के साथ काम किया जब आपातकाल लागू हुआ तो पुलिस से छुपते रहे । जनसंघ के नेता होने के कारण पुलिस ने उन पर निगरानी रखी। बोड़ा भूमिगत हो गए। पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डालना चाहती थी मगर वह पुलिस के हत्थे नहीं चढ़े। वे आपातकाल के दौरान वेश बदल-बदल कर पुलिस से छुपते रहे। एक बार तो वह साधु के वेश में भी नजर आए। पुलिस उन्हें पहचान नही पाई। आपातकाल के बाद 1980 में जब भाजपा का गठन हुआ तो वह भाजपा के वरिष्ठ नेता के रूप में हमेशा सम्मान पाते रहे। बोड़ा एक जुझारू व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने तत्कालीन सरकारों के खिलाफ खूब संघर्ष किया। वह कई जन आंदोलन में अग्रणी रहे हैं। संघर्ष किया जनता की आवाज बने। साधारण जीवन जीकर भी राजनीति का कोई फायदा नहीं उठाया। उन्होंने किसी मंत्री, विधायक या बड़े नेता की परिक्रमा नहीं की। तो आज के किसी नेता ने उनको आखिरी समय तरजीह भी नहीं दी। यह भी सच है कि उनके अंतिम दिनों में पार्टी और बड़े नेताओं ने उनकी कोई सुध नहीं ली। खैर वे पार्टी की सेवा की पहचान और आदर्श नेता की साख लेकर गए हैं। राजनीति में नैतिकता और एथिक्स का वे जानने वालों में टिमटिमाती रोशनी बन गए हैं। तभी तो केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम, देवी सिंह भाटी, पार्टी के विधायक और पदाधिकारी उनके कृतित्व को नमन कर रहे हैं। हमारा भी नमन!
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