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बीकानेर,भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा बीकानेर संभाग के दौरे पर आने वाले है। इस दौरान आपस में लड़ी-भिड़ी भाजपा के कार्यालय का उद्घाटन भी होगा। भाजपा के ऐसे कई कार्यालयों का वे प्रदेश में उद्घाटन करने वाले हैं। अच्छा है कि बीकानेर भाजपा को भी एक कार्यालय मिल जाएगा। वरना तो अध्यक्षों के आधार पर कार्यालय बनते रहे हैं। एक बार तो ऐसे भी हालात पेश आए कि चलते कार्यालय को खाली करवा दिया गया। सामान समेट कर रखवा दिया गया और सूचना दे दी गई कि सामान सुरक्षित है, ले जाना। ऐसा करने वाले बीकानेर के बड़े व्यवसायी दीपक पारीक को हालांकि फिर से भाजपा में पैर जमाने के लिए आज तक मशक्कत करनी पड़ रही है, लेकिन संभवतया उस दिन सत्यप्रकाश आचार्य को यह समझ आ गया कि कार्यालय तो पार्टी का होना ही चाहिए। पदाधिकारी आते-जाते रहें भले ही। एक योजना के तहत प्रदेशभर में ऐसे कार्यालय बन गए।

लेकिन क्या इस कार्यालय से व्यवस्था बन जाएगी? पिछले ही दिनों भाजपा के नेताओं के बीच बड़ा बवाल हुआ है। आखातीज पर भाजपा के एक नेता और नगर विकास न्यास के पूर्व अध्यक्ष महावीर रांका ने जब 40 हजार पतंगें बांटने का ऐलान किया तो शहर भाजपा के पदाधिकारियों में खलबली मची। तुरंत से गोकुल जोशी को तैयार किया गया कि कुछ पतंगें शहर भाजपा की तरफ से भी बांटी जाए। व्यवस्था हो गई, लेकिन यहां बखेड़ा हुआ। बखेड़े की मूल वजह रही ऐसे लोगों को कार्यक्रम में बुला लेना, जो नापसंद थे। विवाद इतना बढ़ा कि तीन बार के पार्षद रहे अरविंद किशोर आचार्य को पार्टी से निकालने की सिफारिश हो गई। अरविंद किशोर आचार्य के खिलाफ कार्रवाई होने का अर्थ है कि भाजपा के एक धड़े को पूरी तरह से नाराज करना। हालांकि, लेकिन देखना यह है कि ऊंट किस करवट बैठता है।
इस बीच एक और डवलपमेंट हुआ है। कार्यालय उद्घाटन समारोह में नगर की प्रथम नागरिक महापौर सुशीला कंवर राजपुरोहित का नाम नहीं छापा गया है, कायदे से यह नाम होना चाहिए था। हालांकि, सुशीला कंवर राजपुरोहित का गु्रप वाया गुमानसिंह राजपुरोहित अर्जुनराम मेघवाल से जुड़ा है। अर्जुनराम मेघवाल और अखिलेश प्रतापसिंह की पटरी इन दिनों बैठ नहीं रही है। फिर भी पार्टी के इतने बड़े आयोजन से महापौर का नाम नहीं होना बड़े सवाल खड़ करता है, क्या भाजपा अपनों के साथ ही लड़ाई में उलझी रहेगी।
हालात यह है कि भाजपा की इसी अंदरूनी लड़ाई के चलते ही इतने गुट बन गए हैं। एक-एक करके लोगों को किनारे किया जा रहा है। प्रतिक्रिया स्वरूप जो आर्थिक रूप से संपन्न हैं, उन्होंने अपनी नई लाइन बना दी है। महावीर रांका बाकायदा अपना एक कार्यालय संचालित कर ही रहे हैं, कोई बड़ी बात नहीं है कि आने वाले दिनों में वसुंधराराजे के बीकानेर प्रवास के दौरान उनकी बड़ी भूमिका हो। दीपक पारीक को भाजपा में तरजीह नहीं मिलने के कारण उन्होंने विप्र फाउंडेशन की राह पकड़ी है, यह भी बड़ा संगठन है। जे पी नड्डा की धर्मपत्नी मलिका नड्डा भी इस संगठन से जुड़ी हैं। जाहिर है कि इस रास्ते से दीपक पारीक को संजीवनी मिल सकती है। नड्डा उन्हें रिकग्नाइज भी कर सकते हैं। इसके बाद भाजपा के पास आर्थिक रूप से संपन्न नामों में सिर्फ गोकुल जोशी रहे हैं, जो वक्त-जरूरत पार्टी की मदद कर सकते हैं। ऐसे में बाहर से ही चंदा-चिट्ठा करना पड़ेगा, जो वर्तमान संगठन के लिए संभव नहीं है। सत्यप्रकाश आचार्य और नंदकिशोर सोलंकी को इस तरह के इंतजामातों में दिक्कत नहीं होती, लेकिन इस बार इतने बड़ी आयोजन के लिए व्यवस्थाएं करना कठिन भी हो सकता है। ऐसे में ठीक तो यह रहता कि सभी को साथ मिलाकर कार्यक्रम की रूपरेखा बनाई जाती, बतौर अध्यक्ष अखिलेश प्रतापसिंह का यह दायित्व भी बनता है। अब देखना यह है कि उन्होंने जो रास्ता चुना है, उसे सही कैसे साबित कर पाते हैं।

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