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बीकानेर.बीकानेर पूरी दुनिया में अपनी मिठाई, रसगुल्ला और नमकीन के लिए जाना जाता है. हजार हवेलियों का शहर अपनी स्थापत्य कला और विरासत को सहेजने परंपराओं के निर्वाह के लिए जाना जाता है, लेकिन बीकानेर को जानने वाले और यहां आने वाले लोग एक और चीज के कायल हैं, वह है पान. पूरे देश में बनारस के पान की चर्चा होती है, लेकिन बीकानेर का पान किसी भी मुकाबले में बनारस से कम नहीं है.

हर रोज एक लाख पान की खपत : एक अनुमान के मुताबिक बीकानेर में करीब एक हजार से ज्यादा पान की दुकानें हैं. हालांकि, पान एसोसिएशन की ओर से रजिस्टर्ड दुकानों की संख्या 662 बताई गई है, लेकिन इसके अलावा कई दुकानें ऐसी हैं जो एसोसिएशन के साथ रजिस्टर्ड नहीं हैं. यहां हर रोज करीब एक लाख पान की खपत होती है. बीकानेर में मिलने वाला एक पान 20 रुपये का होता है और उस मुताबिक हर रोज बीकानेर के लोग करीब 20 लाख रुपये का पान खा जाते हैं.

बंगाल से आता है पान का पत्ता : बीकानेर में आने वाला पान का मीठा पत्ता होता है, जिसे बीकानेर में मीठा पान कहा जाता है. वह पश्चिम बंगाल के पुरबा मेदिनीपुर से आता है. हालांकि, राजस्थान में भरतपुर, चितौड़गढ़, उदयपुर, बांसवाड़ा, पाली एवं झालावाड़ में भी किसान पान की खेती कर रहे हैं. यहां के पान के पत्तों का चलन बीकानेर में नहीं है.

होली से दिवाली तक आपूर्ति कम : पिछले 72 साल से बीकानेर के कोटगेट पर स्थापित पान की दुकान के संचालक पनवाड़ी फूलचंद शर्मा कहते हैं कि होली के बाद दिवाली तक पान की खेती की फसल आ जाती है. इसलिए पान के पत्तों की कीमत थोड़ी कम हो जाती है और दिवाली से लेकर होली तक पान के पत्तों की कीमत तेज हो जाती है. बीकानेर में अभी वर्तमान में आ रहा पान का पत्ता 3 रुपये से लेकर 15 रुपये तक का आता है, लेकिन आमतौर पर पनवाड़ी 7 से 10 रुपये तक का पत्ता काम में लेते हैं.

पान मसाला की वजह से कम हुई खपत : पनवाड़ी शिव कुमार बिस्सा कहते हैं कि बीकानेर में पान का चलन बहुत पुराना है. इसीलिए कई दुकानें हैं जो पिछले 70-80 सालों से आज भी चल रही हैं. शिव कुमार कहते हैं कि अब जमाना थोड़ा बदल गया है, लोग पान मसाला खाते हैं और वह सस्ता मिलता है. इसलिए पान की खपत थोड़ी कम हुई है, लेकिन पान के शौकीन आज भी कोई समझौता नहीं करते और पान ही खाते हैं. लेकिन इनकी संख्या अब कम रह गई है.

कत्था की क्वालिटी अलग : दरअसल, बीकानेर में पान का स्वाद अपने आप में अलग इसलिए भी है कि यहां पान में डाले जाने वाला कत्था-सुपारी भी बढ़िया क्वालिटी की काम में ली जाती है. वहीं, कत्था को तैयार करने के लिए दूध का इस्तेमाल होता है. वहीं, यहां के पान की खासियत होने का कारण के सवाल पर पनवाड़ी फूलचंद कहते हैं कि यहां की जलवायु भी अलग है और यह एक बड़ा कारण है.

पान का फायदा : दरअसल, बीकानेर में पान का स्वाद अपने आप में अलग इसलिए भी है कि यहां पान में डाले जाने वाला कत्था-सुपारी भी बढ़िया क्वालिटी की काम में ली जाती है. वहीं, कत्था को तैयार करने के लिए दूध का इस्तेमाल होता है. वहीं, यहां के पान की खासियत होने का कारण के सवाल पर पनवाड़ी फूलचंद कहते हैं कि यहां की जलवायु भी अलग है और यह एक बड़ा कारण है. इतना ही नहीं, सादा पान खाना पाचन क्रिया के लिए फायदेमंद है.

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