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बीकानेर,खजांची परिवार की छठी पीढ़ी उनके पड पोते मुदित खजांची बताते है कि देश की आजादी के बाद पहली बार हुए विधानसभा चुनावों में बीकानेर का प्रतिनिधित्व निर्दलीय प्रत्याशी ने किया था। देश की आजादी के बाद विधानसभा का पहला चुनाव 1952 में हुआ था। उस वक्त लोगों में राजनीति जागरूकता और समझ भी इतनी नहीं थी, जितनी आज है। यह वह दौर था, जब दलों का दलदल भी नहीं था। यानी बहुत सारे दल नहीं थे। जो दल थे भी, उनके प्रत्याशियों और कार्यकर्ताओं के बीच संवादहीनता की स्थिति थी। पार्टियों के कार्यकर्ताओं का अपने प्रत्याशियों से संपर्क भी नहीं हो पाता था। दली में एक ही राष्ट्रीय दल था, जिसकी पूरे देश में व्यापक पैठ थी, वह कांग्रेस थी। चुनाव खर्च को लेकर यूं तो कोई ब्योरा उपलब्ध नहीं है, लेकिन माना जा रहा है कि ऐसा खर्च संभवतः नाम मात्र का ही था। इन हालात और सीमित संसाधनों के बीच भी प्रत्याशी न सिर्फ खड़े हुए, बल्कि उनमें मुकाबला भी हुआ। बीकानेर शहर विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी मोतीचंद खजांची चुनाव जीते। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी आरआरपी के प्रत्याशी दीनानाथ को पराजित किया था। हालांकि, इस चुनाव के बाद निर्दलीय प्रत्याशी कभी भी चुनाव नहीं जीत पाए ।

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