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बीकानेर जागती रातों शहर-बीकानेर। यहां की मौज-मस्ती, अपनापन और मिलनसारिता पूरी दुनिया के लिए उदाहरण है। यहां की परम्पराएं, संस्कृति, खान-पान और वर्ष भर मनाए जाने वाले तीज-त्यौहार भी अपने आप में अलहदा हैं। जिला प्रशासन ने इन सभी विशेषताओं को केन्द्र में रखते हुए पहली ऊंट उत्सव का सबसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम शहरी परकोटे में आयोजित किया और इसे नाम दिया ‘बीकानेर बाई नाइट’। इस आयोजन के दौरान शहर के ऐतिहासिक चौक और पाटे देर रात तक गुलजार रहे। पूरे रूट को दुल्हन की तरह सजाया गया और यहां रंग-बिरंगी रोशनी की गई।

वास्तव में बीकानेर बाई नाइट, यहां की दिनचर्या का ही अंग था। बस इसे थोड़े व्यवस्थित तरीके से मनाया गया। ‘बीकानेर बाई नाइट’ की शुरूआत हुई, दम्माणियों के चौक से। यह वही चौक है, जहां मनोज कुमार की ‘यादगार’ फिल्म का ‘एक तारा बोले’ गीत फिल्माया गया। छतरी वाले पाटे का चौक। यहां वीर रस प्रधान अमर सिंह राठौड़ की रम्मत खेली गई। रम्मतें भी बीकानेर की संस्कृति का अभिन्न अंग हैं। होली के अवसर पर रात-रात भर खेले जाने वाले इन लोक नाट्यों को देखने के लिए आज भी देश के अलग-अलग क्षेत्रों से लोग आते हैं।
रात के लगभग आठ बजे जब यह रम्मत चालू हुई तो इस चौक में पैर रखने की जगह नहीं होना, इस आयोजन की सफलता को आकने के लिए पर्याप्त था। बाई नाइट का यह काफिला यहां से आगे बढ़ा और हर्षों के चौक पहुंचा तो यहां भी होली के एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम का दरसाव देखने को मिला। यह था, बीकानेर शहर के बाहुल्य पुष्करणा ब्राह्मण समाज की दो प्रमुख जातियों ‘हर्षों-व्यासों’ के बीच खेले जाने वाला डोलची खेल। यह खेल सदियों से खेला जा रहा है, जो कि आपसी सौहार्द का प्रतीक है। इस खेल में चमडे़ की बनी डोलची में पानी भरकर एक-दूसरे की पीठ पर मारने की परम्परा है। परम्परागत रूप से इस खेल में जीत और हार भी तय होती है, लेकिन हारने और जीतने वाले दोनों पक्षों के चेहरे की मुस्कुराहट और खुशी देखने योग्य होती है।
इससे आगे मोहता चौक में पंचांग वाचन की सदियों पुरानी परम्परा का निर्वहन हुआ। यह वही मोहता चौक है, जो ओझिया महाराज और मनका महाराज रबड़ी वालों के लिए प्रसिद्ध है। जिनके दुकान की लच्छेदार रबड़ी और रोल वाली मलाई के मुरीद पूरी दुनिया में है। यहां की हैरिटेज लुक वाली हवेलियां भी आमजन को आकर्षित करने वाली हैं, जिसे भी देशी-विदेशी पर्यटकों ने जी-भर कर निहारा।
यहां से नाइयों की गली होते हुए पर्यटक जब सब्जी बाजार पहुंचे तो यहां जमन जी और सतिया महाराज की दूध की कड़ाई और बृजा महाराज के पंधारी के लड्डू उनके स्वागत को आतुर दिखे। आसाणियों के चौक में हवेली संगीत की सुमधुर स्वरलहरियों ने उन्हें मंत्र मुग्ध किया। कारवां आगे बढ़कर पहुंचा शहर के ऐतिहासिक ढढ्ढा चैक में। यह वही चौक है, जहां हर वर्ष चांदमल ढ्ढढा की गणगौर का मेला भरता है। यह चौक और यहां की हवेलियां देखने योग्य हैं।
बीकानेर बाई नाइट के बिल्कुल अंत में कोचरों के चैक में बीकानेर की खान-पानी की परम्परा का विहंगम दृश्य देखने को मलिा। यहां भुजिया और जलेबी बनाने का लाइव प्रदर्शन किया गया। वहीं यहां के पापड़, घेवर, जलेबी, मलाई सहित अन्य वस्तुओं के विक्रय की स्टाॅल लगाई गई। यहां बाॅलीवुड के मशहूर गायक अली-गनी ने माड गायकी के स्वर बिखेरग। पर्यटकों ने गणगौर घूमर नृत्य का लुत्फ उठाया।
भले ही बीकानेर बाई नाइट का कारवां यहां रुक गया हो, लेकिन जागती रातों के शहर में इससे भी कहीं अधिक विशेषताएं हैं। यहां के चौक-चौक में लगे पाटे और इन पर बैठे शहर के मौजीज लोग, बारहगुवाड़ में देर रात तक बनती कचौरियां और अन्य नमकीन, दम्माणी चौक में बृजरतन जी की दूध की कड़ाई, बड़ा बाजार में रामदेव मंदिर के पास की मलाई, नत्थूसर गेट सहित शहर के हर क्षेत्र में सजी पान की दुकानें और इस पर बैठे लोग ‘नाइट टूरिज्म’ के ब्रांड एम्बेसडर हैं।
थोड़े समय के लिए ही सही और एक बार ही सही, लेकिन प्रशासनिक नजरें इस ओर आना, शहरी परकोटे की नाइट टूरिज्म की संभावनाओं को बल देने वाली हैं। इस दिशा में गंभीरतापूर्वक कार्य करने की जरूरत भी है। इससे दोहरा लाभ होगा। पहला, बीकानेर की बहुरंगी संस्कृति का एक से दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरण हो सकेगा। वहीं दूसरा लाभ रोजगार के बढ़ते हुए अवसरों के रूप में देखा जा सकेगा।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि बीकानेर कला, संस्कृति, साहित्य के साथ यहां की सामाजिक समरसता, पर्यटन और परम्पराओं की दृष्टि से देशभर में विशेष स्थान रखता है। यहां का प्रत्येक व्यक्ति अपने आपमें विशिष्ट है। जरूरत, इस हुनर को पहचानते हुए इन्हें आगे बढ़ाने की है। ऐसा होने पर पर्यटन के मानचित्र पर बीकानेर का शहरी परकोटा भी विशेष स्थान हासिल कर लेगा।
मरुनगरी बीकानेर में हुए अंतराष्ट्रीय ऊंट उत्सव के दौरान ‘बीकानेर कार्निवल’ और ‘बीकानेर बाई नाइट’ भी सम्मिलित रहे । बीकानेर कार्निवल में देश के विभिन्न क्षेत्रों की बहुरंगी संस्कृति की झलक बीकानेर में देखने को मिली। वहीं ‘बीकानेर बाई नाइट’ को ऊंट उत्सव के इस संस्करण की सबसे बड़ी खोज कहा जा सकता है।

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