बीकानेर देश विदेश में ऊंट उत्सव ( केमल फेस्टिवल), थिएटर फेस्टिवल, अग्नि नृत्य, मांड गायकी, उस्ता कला, मथेरन कला, पाटों की रम्मतें, होली के स्वांग, नमकीन मिठाई और साहित्य साधना के लिए पहचाना जाता है। कबीर यात्रा भी बीकानेर की देन है। इस वर्ष रंगमंच का महाकुंभ ‘बीकानेर थिएटर फेस्टिवल में देशभर के नाट्य कलाकारों के 25 नाटकों का पांच दिन में मंचन हुआ है। मंचित नाटकों को भरपूर दर्शक मिले हैं। एक शहर में एक दिन में पांच नाटकों का मंचन और दर्शकों की उपस्थिति होना शहर के लोगों का कला साहित्य प्रेमी होने का प्रमाण है। सोचने की बात यह है कि कला संस्कृति को प्रश्रय देने वाली केंद्र और राजस्थान की सरकार कहां है? केंद्रीय कला संस्कृति मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और राजस्थान के कला संस्कृति मंत्री डा. बी. डी. कल्ला ने तो इस आयोजन में कोई सहयोग नहीं किया और न ही शिरकत की। कला प्रेमियों ने संसाधन दिए हैं और कला साधकों ने मेहनत की है। बीकानेर से जन प्रतिनिधि और मंत्री होने के फिर थिएटर फेस्टिवल में क्या मायने रह गए?
ये आयोजन बीकानेर शहर को इसी दिशा में हर साल नई ऊंचाइयां देता है। रंग संवाद चाहे समालोचक डा. नंद किशोर आचार्य के साथ साहित्यकार माल चंद तिवारी, रंगकर्मी मधु आचार्य का साहित्यकार पत्रकार हरीश बी. शर्मा, रंगकर्मी अशोक जोशी और सतीश सालुंके के मध्य हुआ हो या अन्य किसी का। रंग कला का राष्ट्रीय स्तर पर बीकानेर से परिमार्जन ही है। नाट्य लेखन ही नहीं, नाट्य कला भी यहीं से आगे बढ़ रही है। इसी बहाने कलाकारों के बीच संवाद, विधा का आदान प्रदान और प्रेरणा और सीख आगे बढ़ती है। सबसे बड़ी बात कला का विस्तार और संवर्धन है। कला दीर्घा, रंग मंच कार्यशाला, फोटो प्रदर्शनी पुस्तक दीर्घा और साहित्य संवाद भी बड़ी उपलब्धि है। जोधपुर के वरिष्ठ रंगकर्मी रमेश बोहरा को वर्ष 2022 का निर्मोही नाट्य सम्मान किया गया। इसी दौरान लेखिका डॉ. चंचला पाठक के हिंदी काव्य संग्रह का विमोचन हुआ। थिएटर फेस्टिवल के दौरान इतने सारे विविध आयोजन अपने आप में बड़ी उपलब्धि है।
नाट्य समारोह का उद्घाटन राजस्थान राज्य मेला प्राधिकरण के उपाध्यक्ष रमेश बोराणा, राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष लक्ष्मण व्यास, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. नंद किशोर आचार्य, केन्द्रीय संगीत नाटक अकादमी के सदस्य मधु आचार्य ‘आशावादी’ तथा संभागीय आयुक्त डॉ. नीरज के. पवन ने दीप प्रज्वलित कर किया।
इस थिएटर फेस्टिवल के दौरान जोधपुर के वरिष्ठ रंगकर्मी अरुण व्यास एवं स्वाति व्यास 15 वर्ष से अधिक आयु के प्रशिक्षणार्थियों तथा दिल्ली के अमित तिवाड़ी 15 वर्ष से कम आयु के बच्चों को रंगमंच की बारीकियां सिखाई।
नाटक तुर्रा कलंगी मंचित हुआ।गोपेश्वर विद्यापीठ के विद्यार्थियों ने अमित तिवारी द्वारा निर्देशित नुक्कड़ नाटक ‘प्लेटफार्म नंबर 8’ और ‘जल ही जीवन है का मंचन हुआ। सुधेश व्यास के नाटक ‘अंतर्नाद’ का मंचन हंशा गेस्ट हाउस में, जम्मू के रवीन्द्र शर्मा का ‘दोज़ख’ रेलवे ऑडिटोरियम में, चंडीगढ़ के वरुण शर्मा के ‘गगन दमामा बाज्यो’ टाउन हॉल में, अरविंद सिंह का ‘रुदाली’ रवीन्द्र रंगमंच तथा मुंबई के फरीद अहमद का नाटक ‘चंदु की चाची’ का टीएम ऑडिटोरियम में मंचन हुआ।
थिएटर फेस्टिवल में देश के विभिन्न राज्यों की रंग कला संस्कृति बीकानेर के थिएटरों पर साकार हुई। रंगकर्मी अरुण व्यास, स्वाति व्यास और अमित तिवारी ने अभिनय कार्यशालाओं के दौरान अभिनय की विधाओं से नाटक कलाकारों को अवगत करवाया। हंशा गेस्ट हाउस में जयपुर के दिलीप भट्ट के लोक नाट्य ‘गोपीचंद भर्तहरि तमाशा’, से होगी। रेलवे ऑडिटोरियम में जयपुर के राजदीप वर्मा के ‘बेबी’, टाउन हॉल में देहरादून की जागृति सम्पूर्ण के ‘मंगलू’, रविन्द्र रंगमंच पर दिल्ली के सईद आलम के ‘अकबर दा ग्रेट नहीं रहे’ तथा टीएम ऑटोरियम में चंडीगढ़ के राजा सुब्रह्मण्यम और शिवम ढल्ल के ‘फिल्मिश का था बाल नाटक ‘प्लेटफॉर्म नंबर 8’ का मंचन किया गया। ऐसे और भी नाटक खेले गए या खेले जाने हैं। इस फेस्टिवल की देशभर में रंग कला क्षेत्र में भूरी भूरी प्रशंसा हो रही है। वास्तव में तो ये थिएटर फेस्टिवल का आयोजन भारत सरकार के कला संस्कृति राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और राजस्थान सरकार के कला संस्कृति मंत्री डा. बी. डी. कल्ला के लिए संदेश है कि वे देश प्रदेश की कला और संस्कृति को कितना बढ़ावा देते पा रहे है ? या अनदेखी कर रहे हैं ? बीकानेर की युवा पीढ़ी तो विरासत की साधना को मेहनत से आगे जरूर बढ़ा रही है।