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बीकानेर,माहे रमजान इस्लामिक कैलेंडर का नौवां महीना है यह महीना पवित्र महीना है आध्यात्मिक , ,दान ,आत्म संयम व क्षमा आदि का प्रतीक है इस मुबारक महीने की शुरुआत पैगंबर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मक्का से मदीना यानी हिजरत 622 ई में करना और पहला रमजान 22 मार्च 622 ई को शुरू हुआ था तब से आज तक यह इस्लामिक कैलेंडर के नौवें महीने में चांद के अनुसार हर साल आता है।
ऐसा माना जाता है कि इस्लाम के जितने भी पैगंबरों ने भी रोजा रखा है और रोजे के बारे में अपनी अपनी उम्मत को रोजा रखने की बात कही है यहां हम हजरत आदम अलैह सलाम से लेकर आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तक जितने भी पैगंबर आए सभी पैगंबरों ने एक ही संदेश दिया कि अल्लाह एक है ,अल्लाह एक है ।आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर अल्लाह की ओर से जो अंतिम संदेश आया वह कुरान है । अल्लाह की ओर से हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहूअलैहे व.पर कुरान नाजिल हुआ यानी उत्तरा, अल्लाह ने फरमाया कि मैं उसकी हिफाजत की जिम्मेदारी , खुद अल्लाह ने ली है ।
1445 साल से अधिक समय हो जाने के बाद भी कुरान यानी अल्लाह का संदेश मूल रूप में मौजूद है कुरान का केंद्रीय विषय इंसान है । इंसान के जीवन को दो भागों में बांटा गया है पैदाइश से मौत तक जो अस्थाई है , यह समय इंसान के इम्तिहान के लिए है। दूसरा मौत के बाद का समय जो जीवन में किए अच्छे बुरे कर्मों का फल दोजख – जन्नत यानी यह कभी न खत्म होने वाला स्थाई दौर है ।
कुरान में साफ कहा गया है कि दुनिया इंसान के लिए एक परीक्षा स्थल है इंसान की जिंदगी का एक ही उद्देश्य है कि अल्लाह की इबादत करें इस दुनिया में अल्लाह ने इंसान के लिए कुछ (ट्रेनिंग ) प्रशिक्षण की भी व्यवस्था की है जिनमें ईमान , नमाज ,रोजा , जकात , हज के रूप में रखा है इन पांच बातों पर इस्लाम की बुनियाद है ।
अभी माहे रमजान का पाक महीना चल रहा है इस महीने में इंसानों के प्रशिक्षण के लिए इंसानों के परीक्षण के लिए ही अल्लाह ने इसी महीने में अन्तिम संदेश कुरान दुनियाँ में पहली बार रमजान के महीने में ही कुरान उतारा गया इसलिए यह महीना कुरान का महीना कहलाता है यह महीना शुक्रगुजारी का महीना है इस महीने में इंसानों पर रोजे अनिवार्य किए गए रोजा भी एक इबादत है कुरान में इस महीने को सब्र का महीना भी कहा गया है यानी अपने पर नियंत्रण रखना है इस्लाम में रोजा अल्लाह के लिए सुबह से सूरज ढलने तक खाना पीना सभी बुराइयों के कामों से अपने आप को रोके रखना यह हर मर्द और औरत पर अनिवार्य है ताकि तुम गलत कामों से डर रखने वाले परहेज़गार बन जाओ । यही महीना लोगों के मार्गदर्शन के लिए सत्य- असत्य के अंतर के प्रमाणों के साथ जो सीधा मार्ग तुम्हें अल्लाह ने दिखाया इस पर चलो ,अल्लाह की इबादत करो अल्लाह की बडाई करो ताकि तुम कृतज्ञ बनो ।
कुरान में साफ हिदायत रही है कि रोजा भी इबादत है हर कौम में हर पैगंबर ने रोजा रखने की बात कही है हर धर्म में किसी ने किसी रूप में रोजा यानी उपवास आदि किया जाता है । कुरान के अनुसार रोजे का उद्देश्य इंसान में तकवा या संयम पैदा करना है यानी यह “अल्लाह का डर ” जिंदगी में हमें हमेशा एहतियात वाला तरीका अपनाना है । “अल्लाह का डर ” हर बुरे काम से रोकता है इसलिए कुरान में साफ कहा है ताकि तुम “अल्लाह का डर ” रखने वाले और परहेजगार बंदे बन जाओ , रोजा इंसान में अल्लाह का डर पैदा करता है उसे परहेजगार बनाता है।
रोजे की हालत में जिस किसी व्यक्ति ने झूठ बोलना और उस पर अमल करना नहीं छोड़ा तो अल्लाह कहता है ऐसे रोजेदार ,रोजा रखने वाले कि मुझे जरूरत नहीं यानि सारे बुरे काम जैसे चोरी ,जारी , जुआ , सट्टा ,नशा ,ब्याज व गलत धंधों को नहीं छोड़ा तो अल्लाह उसकी खबर लेगा अल्लाह ने फरमाया है कि रोजे की हालत में आंख , कान , जुबान ,हाथ ,पैर व दिमाग से भी बुरा आचरण करना मना है । अल्लाह ने जिन कामों को पसंद फरमाया है वह काम करें ,, मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कहते हैं कि इंसान के हर अमल का शबाब यानी बदला 10 गुना से 700 गुना तक अजर मैं दूंगा ,रोजा मेरे लिए है मैं रोजेदार को जितना चाहूंगा उतना दूंगा रोजे का दिमागी और शारीरिक दोनों पर बहुत प्रभाव पड़ता है । रोजा इंसान में अनुशासन , सब्र – संयम के आचरण से इंसान में अनुशासन पैदा करता है रोजा रखने से इंसान की सोच व कामों को सही दिशा मिलती है । रोजा इंसान में सेल्फ कॉन्फिडेंस सेल्फ कंट्रोल पैदा करता है ,इंसान में गुस्सा, इच्छा , लालच , द्वेष , गिब्बत व चुगली आदि से परहेज की बात करता है आप इन बुराइयों को माहे रमजान में त्याग करो ।
रोजा रखने से ईमान ताजा होता है क्योंकि अल्लाह सब देख रहा है अल्लाह फरमाता है कि मैं इसका ईनाम दूंगा अल्लाह ने फरमाया है कि रोजा मेरे लिए है और मैं इसका इनाम रोजेदार को दूंगा और अल्लाह ने कहा कि हमेशा हराम से बचो,सब्र करो सब्र करने वालों के साथ में मैं हूं
अल्लाह ने माहे रमजान के रोजे को तीन भागों में बांटा है (10 – 10 दिन)जिसे असरा कहते हैं पहला असरा रहमत का है दूसरा असरा मगफिरत का है यानी गुनाहों से सच्चे दिल से गुनाहों से माफी ( तोबा ) मांगना तीसरा असरा जहन्नुम की आग से बचने के लिए इबादत करना ।
माहे रमजान में रोजेदारों को अफ्तारी व सेहरी कराने का भी शबाब है इस महीने में रोजा रखने वाले ईशा की नमाज में विशेस रूप से नमाज होती है जिसे तराबीह कहा जाता है जिसमें हाफ़िज़ कुरान पढ़ता है। माहे रमजान में एक ऐसी रात आती है जिस रात को मेहराज की रात सताईसवीं शब-ए- कद्र ( रात्रि)को इबादत की रात भी कहा गया जिसे हम 27वीं की रात कहते हैं यह रात भी अफजल इबादत की रात है ।ऐसा माना जाता है कि कुरान इसी रात उतरा ।
रोजों में परिवार के हर सदस्य का फितरा भी अदा किया जाता है है जो की 2 k 50 gm है के हिसाब से फितरा अदा करना होता है। माहे रमजान में ईमान ,नमाज व रोजे के बाद जकात का बड़ा महत्व है अपनी कमाई का और अपनी बचत का ढाई % जिसके पास 52 .50 तोला चांदी, 7:50 तोला सोना हो उस पर जकात फर्ज है जकात से मिस्किन ,यतीम , बेवा, गरीब , जो भी जरूरतमंद की मदद करी जा सकती है कोम के तालीमी इदारों में भी जकात अदा की जाती है आजकल जकात के लिए बैतूल माल फंड में भी मदद करने के लिए यह फंड भी हर मोहल्ले में बनाया जाना चाहिए जिससे बीमार या कोई लाचारी या जरूरतमंद आदमी की मदद की जाए तथा कोम में कई ईदारे भी फंड से बनाए जा सकते हैं ।
माहे रमजान की अजमतों ,बरकतों व सिफ्त से दुनिया व आखिरत भी संवरती है यह महीना साल में एक बार आता है इस महीने में इंसान इबरत हासिल करता है और स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी यह महीना बहुत ही महत्व का है इस महीने के बारे में दुनिया के कोने-कोने में वैज्ञानिक शोध कर रहे हैं और उनका मानना है कि रोजा एक वैज्ञानिक आधार है रोजा रखने पर कई बीमारियों से निजात भी मिलती है ।
माहे रमजान के आखरी जुम्मे (जुम्मातुलविदा) की भी बड़ी अजमत है
माहे रमजान के 30 रोजे के बाद चांद दिखने पर दूसरे दिन ईद मनाई जाती है इसका मतलब खुशी से है यानी रोजे की खुशी मनाई जाती है । लोग आपस में गले मिल एक दूसरे को ईद की मुबारकबाद देते हैं रोजा हर मोमिन मर्द और औरत के लिए अनिवार्य है और जो रोजा न रख सके किसी कारण वश हारी बीमारी या कोई भी कारण हो तो नफली रोजा भी रखे जाने का प्रावधान है अल्लाह हमें माहे रमजान के इस पाक महीने की बरकतों से नवाजे ।

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