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बीकानेर,राजस्थान पब्लिक सर्विस कमीशन के मेंबर कर्नल केसरी सिंह विवाद में कांग्रेस खासकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को कितना नुकसान हो सकता है? यह सवाल इसलिए पूछा जा रहा है कि क्योंकि केसरी सिंह विवाद में अशोक गहलोत ने अपनी गलती स्वीकार की है, जिसके बाद सोशल मीडिया पर उनका ही मशहूर डायलॉग ‘हर गलती कीमत मांगती है’ चर्चा में है.

सोशल मीडिया पर यूजर्स अशोक गहलोत की तस्वीर शेयर कर सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर इस गलती की कीमत कौन और कैसे चुकाएगा? यूजर्स मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को एक्स पर टैग कर इस गलती की क्या कीमत होगी, यह भी पूछ रहे हैं.

बीजेपी के कद्दावर नेता राजेंद्र राठौड़ ने भी पोस्ट लिखा- आखिरकार कब तक गलतियों पर गलतियां करोगे अशोक गहलोत जी? एक तरफ आदर्श आचार संहिता लग रही थी, वहीं दूसरी तरफ आप राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए संवैधानिक तंत्रों का बेजा इस्तेमाल कर नियुक्तियों की रेवड़ियां बांट रहे थे.

राठौड़ ने भी ‘हर गलती कीमत मांगती है’ को पोस्ट का शीर्षक लगाया है.

राजस्थान में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं और अशोक गहलोत चुनाव की कमान संभाल रहे हैं. उनके समर्थक उन्हें फिर से मुख्यमंत्री के दावेदार बता रहे हैं. राजस्थान के चुनाव में कांग्रेस भी उन्हीं की योजना के सहारे में मैदान में है.

यह पूरा मामला क्या है?
आचार संहिता लगने से कुछ घंटे पहले राजस्थान सरकार ने बड़ा फैसला करते हुए आरपीएससी में है कर्नल केसरी सिंह राठौड़, प्रोफेसर अयूब खान और कैलाश चंद मीणा को नियुक्त किया. नियुक्ति के कुछ घंटे बाद ही केसरी का पुराना वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने लगा.

वायरल वीडियो में कर्नल केसरी सिंह जाट और गुर्जरों को लेकर अभद्र टिप्पणी करते हुए दिख रहे थे. एक वीडियो में केसरी सिंह कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा पर भी विवादित टिप्पणी कर रहे थे.

वीडियो सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर जाट और गुर्जर संघ ने मोर्चा खोल दिया. इन समुदायों का तर्क था कि जातिवादी व्यक्ति अगर किसी संवैधानिक पद पर बैठेंगे, तो वहां सबके साथ न्याय नहीं हो पाएगा.

विवाद शुरू होने के बाद केसरी सिंह ने आरपीएससी जाना बंद कर दिया है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पिछले 4 दिन से वे अपने कार्यालय नहीं पहुंचे हैं. अपने पुराने बयान पर भी केसरी ने अब तक कोई सफाई नहीं दी है.

कौन हैं कर्नल केसरी राठौड़?
राजस्थान के मकराना शिवरासी गांव निवासी केसरी सिंह भारतीय सेना के कर्नल पोस्ट पर रहे हैं. उन्होंने साल 2000 ईस्वी में आर्मी ज्वाइन की थी. वे मिसाइल रेजीमेंट में थे और फरवरी 2021 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्त हुए.

प्रोफाइल के मुताबिक कर्नल ने आईटी में एमएससी, मिलिट्री टेक्रोलॉजी में एमएससी, एक्सएलआरआई में एमबीए कर रखा है.

सेना से रिटायर होने के बाद कर्नल केसरी सिंह सार्वजनिक जीवन में सक्रिय हो गए. सोशल मीडिया पर केसरी काफी पॉपुलर हैं. वे मकराना विधानसभा में एक्टिव थे. मकाराना में पिछली बार कांग्रेस के प्रत्याशी 2 हजार वोट से हार गए थे.

चुनाव में बीजेपी के रूपाराम को 87,201 वोट और कांग्रेस के जाकिर हुसैन को 85,713 वोट मिले थे. मकाराना में जाट, मुस्लिम और राजपूत वोटरों का काफी दबदबा है.

अशोक गहलोत ने क्या कहा?
कर्नल केसरी विवाद मामले में पत्रकारों से बात करते हुए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि उनकी नियुक्ति मैंने की है. यह मुझसे गलती हुई है. उनका जो बयान है, वो गलत और दुर्भाग्यपूर्ण है. मैं उनके बयान का समर्थन नहीं करता हूं.

अशोक गहलोत ने आगे कहा- मैंने उनसे संपर्क साधने की भी कोशिश की है, लेकिन वे मुझसे बात नहीं कर रहे हैं. गहलोत ने मकराना सीट का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा कि मैं चाहता था कि मकराना भी उनके सहारे सध जाए और इसी लालच में आ गया.

अशोक गहलोत के मुताबिक हमारी सरकार ने उनके सैन्य बैकग्राउंड को देखते हुए उनकी नियुक्ति की सिफारिश की थी.

जाट सभा ने लिखा राज्यपाल को पत्र
राजस्थान जाट महासभा के अध्यक्ष राजाराम मील ने राज्यपाल को पत्र लिखकर केसरी सिंह को हटाने की मांग की है. मील का कहना है कि सामंतवादी केसरी सिंह के आरपीएससी में रहने से नियुक्तियां प्रभावित होगी, इसलिए उन्हें हटाया जाए.

मील ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बयान के बाद नैतिक आधार पर केसरी सिंह से इस्तीफा देने की भी मांग की है. मील ने कहा है कि वे राजपूत समुदाय के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन केसरी जैसे लोगों को भी बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है.

राजस्थान के आदिवासी एक्टिविस्ट हंसराज मीणा ने भी केसरी सिंह के खिलाफ पोस्ट लिखा है. मीणा ने लिखा- आरपीएससी के सदस्य कर्नल केसरी सिंह के पुराने बयानों को सुनकर पढ़कर दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्गों के लोगों में बेहद गुस्सा है. जातिवादी मानसिकता से ग्रसित इस व्यक्ति की आरपीएससी जैसी संवैधानिक संस्था में नियुक्ति होना बेहद शर्मनाक है.

क्या यह गलती भी कीमत लेगी?
केसरी विवाद में अशोक गहलोत पूरी तरह अलग-थलग पड़ गए हैं. जाट समुदाय लगातार उन पर केसरी को हटाने का दबाव बना रहा है. हालांकि, अशोक गहलोत के पास अब कोई शक्ति नहीं है. अगर, केसरी खुद इस्तीफा देने को तैयार हो जाए, तो यह अलग बात है.

चुनाव तक अगर केसरी नहीं हटते हैं, तो जाट अशोक गहलोत के खिलाफ बिगुल फूंक सकता है. शुक्रवार को राजस्थान कांग्रेस कार्यालय के सामने कुछ युवाओं ने ‘कांग्रेस तुझसे बैर नहीं पर गहलोत तेरी खैर नहीं’ के पोस्टर लहराए, जिसे देखकर अशोक गहलोत भी ठिठक गए.

2018 में वसुंधरा राजे को लेकर भी इसी तरह का नारा सियासी गलियारों में उछला था, जिसके बाद वसुंधरा राजे सत्ता से बेदखल हो गईं.

राजस्थान में जाट 10 प्रतिशत तो गुर्जर 6 प्रतिशत के आसपास है. दोनों कांग्रेस का कोर वोटबैंक माना जाता है. राज्य के भरतपुर, धौलपुर, करौली, सवाई माधोपुर, जयपुर, टोंक, दौसा, कोटा, भीलवाड़ा, बूंदी, अजमेर और झुंझुनू जिलों को गुर्जर बाहुल्य क्षेत्र माना जाता है.

इसी तरह नागौर, शेखावाटी, जोधपुर और बीकानेर और बाड़मेर में जाटों का दबदबा है. अगर सीटों के लिहाज से देखा जाए, तो राजस्थान में जाट समुदाय करीब 40 विधानसभा सीटों को प्रभावित करता है.

गुर्जर भी 20-25 सीटों को प्रभावित करते हैं. जाट-गुर्जर समीकरण साधने के लिए कांग्रेस ने गोविंद सिंह डोटासरा, सचिन पायलट, हरीश चौधरी जैसे नेताओं को बड़ा पद दिया हुआ है.

2018 में जाट समुदाय के 38 विधायक जीतकर विधानसभा में पहुंचे थे. 2018 में कांग्रेस सिंबल पर 18 और बीजेपी सिंबल पर 12 जाट उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी. बाकी निर्दलीय और बीएसपी से थे.

2018 के विधानसभा चुनाव में गुर्जर समाज से 8 विधायक जीत कर सदन पहुंचे थे, जिसमें 7 कांग्रेस से ही थे. गुर्जर बहुल कई सीटों पर भी कांग्रेस उम्मीदवारों की भारी जीत मिली थी.

जानकारों का कहना है कि गहलोत को अपनी गलती की कितनी कीमत अदा करनी है, यह आने वाले वक्त में 2 चीजों से तय होगा. पहला, मतदान तक जाट और गुर्जरों का विरोध कितना बड़ा होता है और दूसरा आगामी चुनाव में कांग्रेस पार्टी से कितने जाट और गुर्जर नेता जीतकर आते हैं.

इधर, गहलोत के लिए पार्टी के भीतर जाट और गुर्जर गोलबंदी को भी रोकने की भी चुनौती है. केसरी विवाद के बीच सचिन पायलट से गोविंद सिंह डोटासरा ने मुलाकात की है. दोनों नेता ने अब तक खुलकर केसरी विवाद में गहलोत का समर्थन नहीं किया है.

सचिन पिछले ढाई साल से गहलोत के खिलाफ बगावती रुख अख्तियार किए हुए हैं. वहीं हाल ही में एक सर्वे एजेंसी की वजह से गोविंद सिंह डोटासरा के भी गहलोत से नाराजगी की खबर सामने आई थी.

ऐसे में आने वाले वक्त में राजस्थान की राजनीति और भी ज्यादा दिलचस्प होने की उम्मीद है.

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