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बीकानेर.दान-पुण्य के पर्व मकर संक्रांति की तैयारियां घर-घर चल रही हैं। बाजारों में सजी तिल, गुड़ व मूंगफली खाद्य सामग्री की दुकानों पर खरीदारों की भीड़ बढ़नी शुरू हो गई है। वहीं मकर संक्रांति पर घेवर पहुंचाने की परम्परा के तहत दर्जनों दुकानों पर बड़ी संख्या में घेवर तैयार हो रहे हैं। घेवर की दुकानों पर भी बिक्री बढ़ गई है।

मिठाई की स्थाई दुकानों के साथ-साथ गली-मोहल्लों, चौक-चौराहों, कॉलोनी क्षेत्रों में लगी अस्थाई दुकानों पर भी सुबह से देर रात तक घेवर तैयार हो रहे हैं। मकर संक्रांति पर शहर में बहन-बेटियों के ससुराल घेवर भेजने की विशेष परम्परा है। घेवर पहुंचाने का क्रम शुरू हो गया है।

कई आकार में उपलब्ध

दुकानों पर घेवर कई आकार में तैयार हो रहे हैं। घेवर गोल आकार में बनते हैं। आकार चार इंच से लेकर 18 इंच तक होता है। सामान्यत: 8 से 12 इंच आकार के घेवर अधिक संख्या में बिक रहे हैं। वहीं बहन-बेटियों के ससुराल 5,7,9,11 और 21 की संख्या में घेवर भेजने की परम्परा है।

दो सौ से अधिक दुकानें

मकर संक्रांति व सर्दी के मौसम को लेकर शहर में स्थित दो सौ से अधिक स्थाई व अस्थाई दुकानों पर बड़ी संख्या में रोज घेवर तैयार हो रहे हैं। अलसुबह से शुरू होने वाला सिलसिला देर रात तक चल रहा है। कई ऐसी अस्थाई दुकानें भी संचालित हो रही है, जो लागत मूल्य पर घेवर बेच रहे हैं।

दान-पुण्य में उपयोग

मकर संक्रांति पर श्रद्धालु तिल, गुड़ व मूंगफली से बनी सामग्री के साथ घेवर, फीणी का भी दान-पुण्य करते हैं। बहन-बेटियों के ससुराल भेजने के साथ कुलगुरु, मंदिरों में भेंट करते हैं। मकर संक्रांति पर तेरुण्डे के रुप में तेरह वस्तुए दान की जाती हैं। तेरह घेवर का भी दान किया जाता है।इनसे तैयार हो रहे घेवर

शहर में घेवर का उपयोग न केवल मकर संक्रांति के अवसर पर दान-पुण्य के लिए होता है, बल्कि सर्दी के मौसम में लोग घेवर को बड़े शौक से खाते हैं। हलवाई कार्य से जुड़े आनन्द ओझा के अनुसार घेवर मैदा, दूध, चीनी की चासनी से तैयार होते हैं। इनको बनाने की विशिष्ट विधि है। घेवर बनने के बाद इनको चासनी से मीठा किया जाता है। रबड़ी लगे घेवर की भी बड़ी मात्रा में बिक्री हो रही है। कुछ लोग नमकीन घेवर भी ऑर्डर पर तैयार करवाते हैं। ये मैदा, तेल, जावत्री, जायफल, नमक आदि से तैयार होते हैं।

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