श्रीडूंगरगढ़,शनिवार को राजस्थानी के प्रख्यात व्यंग्य कथाकार शंकरसिंह राजपुरोहित को तीसरा चुन्नीलालजी सोमानी राजस्थानी कथा पुरस्कार-2022* की घोषणा पर्यावरणविद् एवं पुरस्कार समिति के वरिष्ठ सदस्य ताराचंद इन्दौरिया ने की। एक भव्य समारोह में शंकरसिंह राजपुरोहित को 31 हजार रुपये की नकद राशि, सम्मान पत्र तथा शाॅल आदि समर्पित किया जाएगा।
पुरस्कार समिति के संयोजक डाॅ चेतन स्वामी ने बताया कि इस वर्ष इस पुरस्कार हेतु व्यंग्य कथा कृतियां आमंत्रित की गई थीं। तीन वरिष्ठ निर्णायकों ने शंकरसिंह राजपुरोहित की कृति *म्रित्युरासौ* को इस पुरस्कार के लिए चयन किया है। पुरस्कार प्रायोजक उद्योगपति लक्ष्मीनारायण सोमानी ने बताया कि उनका ट्रस्ट इनलैंड सोमानी फांऊडेशन राजस्थानी भाषा, साहित्य, संस्कृति के उत्थान हेतु प्रतिबद्ध है।
शंकरसिंह राजपुरोहित राजस्थानी के प्रसिद्ध रचनाकार हैं।
12 सितंबर, 1969 में राजस्थान के पाली जिले के आऊवा गांव में जन्मे शंकरसिंह राजपुरोहित राजस्थानी में व्यंग्य कथा लेखन के साथ संपादन और अनुवाद कार्य में भी निष्णात हैं। इन्हें अपने पहले ही राजस्थानी व्यंग्य संग्रह ‘सुण अर्जुण’ पर राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर का ‘पैली पोथी पुरस्कार’ (1996) मिला। मैथिली कथा-संग्रह ‘गणनायक’ के राजस्थानी अनुवाद के लिए साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली का ‘राजस्थानी अनुवाद पुरस्कार’ (2010) प्राप्त हुआ। व्यंग्य कथा संग्रह ‘म्रित्यु रासौ’ के प्रकाशन वर्ष में ही इसकी शीर्षक कथा को राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, अजमेर के बारहवीं कक्षा के नए राजस्थानी पाठ्यक्रम (2017) में शामिल किया गया। इस पुरस्कार से पूर्व ‘म्रित्यु रासौ’ पर ही राजपुरोहित को डेह प्रकाशन का भंवरलाल सबलावत राजस्थानी व्यंग्य पुरस्कार’ एवं राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति, श्रीडूंगरगढ़ द्वारा ‘पं. मुखराम सिखवाल राजस्थानी श्रेष्ठ सृजन पुरस्कार’ प्रदान किया जा चुका है। उत्कृष्ट राजस्थानी साहित्य सृजन के लिए अनेक पुरस्कारों से समादृत राजपुरोहित राजस्थानी कवि-सम्मेलनों के भी सशक्त हस्ताक्षर रहे हैं। हाल ही में उनके लिखे हुए कुछ गीत राजस्थानी संगीत के क्षेत्र में प्रतिष्ठित ‘वीणा म्युजिक’ (जयपुर) एवं पीआरजी म्युजिक एंड फिल्म स्टुडियो (जोधपुर) ने रिलीज किए हैं। इन गीतों को सीमा मिश्रा, श्रद्धा जगताप एवं अनुप्रिया लखावत जैसी ख्यातनाम गायिकाओं ने स्वरबद्ध किया है। राजपुरोहित का एक मात्र कविता-संग्रह ‘आभै रै उण पार’ (1999) भी चर्चा में रहा है।