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बीकानेर,जाम्भाणी साहित्य अकादमी द्वारा रविवार को ‘सबदवाणी में योग तत्त्व’ विषय पर एक ऑनलाइन संगोष्ठी का आयोजन किया गया। अकादमी के मीडिया प्रभारी पृथ्वी सिंह बैनीवाल ने बताया कि संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में मोहनलाल सुखाडिया विश्वविद्यालय उदयपुर के योग विषय के शोधार्थी मनोज बिश्नोई उपस्थित रहे।

उन्होंने अपने व्याख्यान में बताया कि गुरु जंभेश्वर भगवान द्वारा उपदेशित सबदवाणी में  योग विद्या का वर्णन बहुतायत में किया गया है। महर्षि पतंजलि ने जो अष्टांग योग का वर्णन किया है वह संपूर्ण योग विद्या का आधार है। जिस प्रकार से महर्षि पतंजलि ने अष्टांग योग में यम और नियम का निरूपण किया है, ठीक उसी प्रकार गुरु जांभोजी ने 29 नियमों का निरूपण किया। 29 नियम बिश्नोई समाज के आधार स्तंभ है। ये नियम भी  यम एवं नियम पर आधारित है। 29 नियमों का पालन करने से यम नियम के पालन करने का लाभ प्राप्त हो जाता है।
मनोज बिश्नोई ने आगे बताते हुए कहा कि गुरु जांभोजी ने शब्दवाणी में विष्णु विष्णु मंत्र जप पर बहुत अधिक प्रभावी उपदेश और आदेश दिया है। गुरु महाराज ने कहा है कि विष्णु मंत्र का जप करो और इस मंत्र के जप करने से सभी प्रकार के दु:ख जन्म, बुढापा और मृत्यु का नाश हो जाता है। सबदवाणी में योग के लगभग सभी अंगो का वर्णन है। गुरु जांभोजी ने सुखासन ,ध्यान,कर्मयोग, मंत्रयोग का वर्णन किया है। योग की परिभाषा बताते हुए गुरु जांभोजी ने कहा है की जिसके माध्यम से परब्रह्म का बोध हो जाता है वह योग है और जिसने यह योग प्राप्त नहीं किया है, उसने कुछ भी नहीं प्राप्त किया है जीवन में। गुरु जांभोजी ने हठयोग के मुद्रा का वर्णन किया है, कुंडलिनी शक्ति का वर्णन किया है,भक्ति योग का वर्णन किया है और गुरु कृपा का विशेषतया वर्णन किया है। गुरु जांभोजी ने कहा है कि गुरु की कृपा से कैवल्य, ब्रह्म ज्ञान, सहज ध्यान एवं समस्त रिद्धि सिद्धि प्राप्त हो जाती है। योग वशिष्ठ एवं गीता में दु:खों से पार होने को ही योग कहा गया है। बिश्नोई समाज के कारण आज संपूर्ण प्रकृति सनाथ है, क्योंकि बिश्नोई समाज प्रकृति की रक्षा करता है, प्रकृति का पालन पोषण करता है अतः गुरु जांभोजी के आदेश के अनुसार सभी को स्वाध्याय का पालन करते हुए विष्णु मंत्र का जप करना चाहिए। जिस उपाय से परमात्मा मिले वह योग है तो प्रकृति में ही परमात्मा बसते हैं और इस प्रकार पर्यावरण संरक्षण भी एक योग है।
संगोष्ठी में अकादमी के अध्यक्ष आचार्य कृष्णानंद ऋषिकेश ने आशीर्वचन कहा। जाम्भाणी साहित्य के विद्वान और सेवानिवृत्त संस्कृत व्याख्याता मांगीलाल बिश्नोई ‘अज्ञात’ ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की तथा चौहटन, बाड़मेर से हरिराम खीचड़ ‘हथाईदार’ ने सभी विद्वानों, आयोजकों और श्रोताओं का धन्यवाद ज्ञापन किया। शुमम काकड़ ने मंच संचालन, तकनीकी प्रबंधन डॉ लालचंद बिश्नोई और कार्यक्रम संयोजन अकादमी प्रवक्ता विनोद जम्भदास द्वारा किया गया।

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