बीकानेर,भगवान की विवाहों के साथ आज की कथा का शुभारंभ किया। महंत जी ने बताया कि भगवान ने सौलह हजार आठ विवाह किए, इनमें से आठ पटरानी थी। एक-एक पटरानी का अर्थ निकलता है। सौलह हजार रानी क्यों थी, इसका भी तात्पर्य है। इसलिए कथा भी सुनें और तात्पर्य भी समझें। तब भागवत का अर्थ समझ में आएगा। श्री गोपेश्वर-भूतेश्वर महादेव मंदिर में चल रही पितृ पक्ष पाक्षिक श्रीमद् भागवत कथा के 13 वें दिन सींथल पीठाधीश्वर श्री श्री 1008 महंत क्षमाराम जी महाराज ने भगवान के विवाह का वर्णन किया। साथ ही रुक्मणी जी के भीतर में कृष्ण के लिए आए भाव का वर्णन किया।
महंत जी ने कहा कि वि माने विशिष्ट , वाह माने वहन करना, उत्तरदायित्व को निभाना उसका नाम है विवाह, भगवान का ही विवाह होता है। ऐसा विवाह किसी का नहीं होता। उनका विवाह भीष्म की कन्या रुक्मणी के साथ हुआ। ऐसा विवाह हुआ कि सब देखते रह गए। जैसे गरुड़ जी ने अमृत प्राप्त किया था। ऐसे भगवान उठा लाए, सब के बीच से उठा लाए थे। जहां एक दूसरे की सहमति होती है वह देव विवाह, गंधर्व विवाह माना जाता है। कुछ लोग इसे राक्षसी विवाह कहते हैं यह गलत है। संसार की सारी विधियां भगवान पर लागू नहीं होती है। क्योंकि भगवान इस संसार में अपने कर्मों से बंधकर नहीं आते। आजकल अपने हिंदुओ में ही भगवान की लीला को दोष दृष्टि से देखकर चाहे जैसा आक्षेप कर देते हैं। सज्जनों थोड़े दिन का थोड़ा सा स्वार्थ है। सज्जनों इस चक्कर में लोग ना जाने कितना-कितना पाप कमाते हैं।महंत जी ने रुक्मणी द्वारा भगवान श्रीकृष्ण के नाम पत्र लिखना, उसे ब्राम्हण के हाथों उन्हें भेजना, पत्र में अपनी मन:स्थिति लिखना और उनसे आग्रह करना कि मैं आपकी हूं और आपकी रहना चाहती हूं, विवाह से एक दिन पहले रुक्मणी का भगवान श्रीकृष्ण से आने का आग्रह करना, राक्षस विधि से हरण करने की बात कहना और अंत में रुक्मणी से विवाह करने का वृतांत विस्तार से बताया।