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बीकानेर,स्वामी केशवानंद कृषि विश्व विद्यालय, इंदिरा गांधी नहर और आईसीएआर का बीकानेर स्थित राष्ट्रीय शुष्क अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों ने तीन दशकों की लगन और मेहनत से मरूस्थलीय क्षेत्र पश्चिमी राजस्थान की कृषि उत्पादन और उत्पादकता में रिकार्ड बढ़ोतरी की है। इससे राजस्थान ही नहीं पूरे देश की कृषि क्षेत्र में तस्वीर बदली है। सकल राष्ट्रीय कृषि उत्पादन में रिकार्ड कृषि जिंसों का उत्पादन इसी इलाके में होता है।इतने व्यापक कृषि बदलाव का मैं साक्षी रहा हूं। राजस्थान पत्रिका, स्वामी केशवानंद कृषि विश्वविद्यालय और राष्ट्रीय शुष्क अनुसंधान केंद्र बीकानेर में तीन दशक पहले कमोबेश साथ साथ ही स्थापित हुए हैं। देश और खास तौर राजस्थान में कृषि पत्रकारिता को राजस्थान पत्रिका ने पूरा प्रोत्साहन दिया। इससे कृषि विश्वविद्यालय और शुष्क अनुसंधान केंद्रों में हुए रिसर्च और नवाचार कृषि विभाग, सरकार और किसानों तक पहुंचा और कृषि क्षेत्र का तेजी से विकास हुआ। राजस्थान में स्वामी केशवानंद कृषि विश्वविद्यालय (पुराना नाम राजस्थान कृषि विश्व विद्यालय) पहला विश्वविद्यालय था। यहां के विद्वान कुलपतियों, अनुसंधान निदेशकों और वैज्ञानिकों ने समर्पित होकर काम किया और उस काम को किसानों तक पहुंचाया। राष्ट्रीय शुष्क अनुसंधान केंद्र निदेशक और वैज्ञानिकों के काम का रिकार्ड आज भी जांचा जा सकता है। मुझे सौभाग्य मिला कि मैनें इस विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति से लेकर अब से पहले तक के सभी कुलपतियों और राष्ट्रीय शुष्क अनुसंधान केंद्र के निदेशकों का साक्षात्कार लिया उनसे मिला और उनके योगदान का साक्षी बना। अभी कृषि विश्वविद्यालय में नया जीवन फूंकने की जरूरत है। विश्वविद्यालय से जुड़े सभी लोग धरातल को जानते ही हैं। विडंबना पूर्ण हालात विश्वविद्यालय की साख को बट्टा लगा है। नकारात्मकता का जिक्र करने की बजाए अगर विश्व विद्यालय एक जिला एक परियोजना, माडल विलेज विकास, छह केवीके, सात जिले जैसलमेर, चुरू, सीकर , झुझनूं, श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़ और बीकानेर में कुछ करके दिखाएं तो खोई हुई थाती लौट सकती है। नए कुलपति डा अरुण कुमार अपने विजन से मरूस्थलीय क्षेत्र में स्थित इस विश्वविद्यालय को नए मानक दिला सकते है। नहीं तो जिन कुलपतियों, अनुसंधान निदेशकों और वैज्ञानिकों ने कृषि विकास की जो बेल बनाई और सींची है वो मुरझा जाएगी। राजस्थान में कृषि शिक्षा की नई पीढ़ी तैयार करने और कृषि विकास के नए आयामों स्थापित करके ही कोई कुलपति या। निदेशक अपने पद की साख पा सकता हैं। अन्यथा तो समाज उनके विफलता को कोसता ही रहेगा। हमारा देश और पश्चिमी राजस्थान कृषि के क्षेत्र में और आगे बढ़ेगा। यह हर कुलपति की कोशिश होनी ही चाहिए। हमारे विश्वविद्यालय का शैक्षणिक स्तर अंतर्राष्ट्रीय कृषि मानकों को पूरा करें। ऐसा करके ही कोई नया कुलपति मान पा सकता है।

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