बीकानेर,राजस्थान में ऊंट केवल एक पशु ही नहीं बल्कि यहाँ की संस्कृति का एक हिस्सा है- बोला मारू, पाबूजी, बाबा रामदेव खिमवाजी और महेन्द्र मूमल जैसे कई लोकगीत ऊंटो को आधार मानकर ही रचे गये है, लेकिन अब इन पर संकट के बाद मंडरा रहे है मशीनी युग में अनुपयोगी साबित होने के चलते रेगिस्तान का जहाज कहे जाने वाले ऊंटो के कुनबे राज्य में लगातार कम होते जा रहे है। ऊंटपालन ज्यादा खर्चीला होने की वजह से ऊटपालक ऊंटपालन से दूर होते जा रहे है राजस्थान में ऊंटो को संरक्षण प्रदान करने के लिये पिछली सरकार के समय ऊंट को राज्य पशु का दर्जा दिया गया था तथा ऊंटनी के प्रसव पर राज्य सरकार ने 10 हजार रूपये की प्रोत्साहन राशि देने की योजना शुरू की थी, लेकिन अब वो राशि भी ऊंटपालकों को नहीं मिल रही है ।
आंकड़ों की अगर बात करें तो देश के करीब 82 प्रतिशत ऊंट राजस्थान में पाये जाते है वर्ष 2012 में राजस्थान में ऊंटो की संख्या करीब 04 लाख थी जो अब घटकर महज 2 लाख 13 हजार रह गई है। बदलते मायनों ने अब रेगिस्तान के जहाज को हाशिये पर लाकर खड़ा कर दिया है। राजस्थान में ऊंटो को संरक्षण प्रदान करने के लिये पिछली सरकार के समय 30 जून 2014 को ऊंट को राजय पशु का दर्जा दिया गया यह कदम राज्य में ऊंटों की कम होती संख्या के लिये उठाया गया था । विधानसभा में कानून पारित कर ऊंटो को किसी भी तरह से मारने या इन्हे राजस्थान के बाहर ले जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। कानून में यहाँ तक प्रतिबंध लगाया गया था कि ऊंट को कोई गंभीर या लाईलाहा भी उसे नहीं मार सकते थे । हो जाये, डॉक्टर पशुपालन क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रतिबंध से ऊंटो का संरक्षण होने के बजाय उन्हे नुकसान ज्यादा हुआ है। इसका कारण यह है कि पहले ऊंट के बीमार होने या बूढ़ा होने पर उसे बेचना आसान था उन्हें राज्य से बाहर भी भेजा जा सकता था । ऊंट का चमड़ा अच्छी कीमत देता था अब यह सब संभव नहीं है। यही कारण हे कि ऊंटपालक अब ऊंटो के प्रजनन और उनकी देखभाल में ज्यादा रूचि नहीं ले रहे है और उन्हें खुले में घुमाने के लिये छोड़ देते है जिस कारण से ये आये दिन दुर्घटना के शिकार हो रहे है । प्रदेश में इस कानून में बदलाव किया जाना चाहिये इस बारे में ऊंटपालकों तथा पशु चिकित्सकों से सुझाव मांगे जाने चाहिये । ऊंट के मारने पर प्रतिबंध रहे, लेकिन यदि वह किसी गंभीर बीमारी से हो जाता है तो उसे चिकित्सकीय पद्धति से मारने की इजाजत देनी चाहिये । इसके अलावा ऊंट को राजय से बाहर ले जाने पर लगे प्रतिबंध में कुछ छूट देनी चाहिये ।
राजस्थान के गर्म भू भाग में फेले रेगिस्तान में जीवन यापन करने वाले पशुओं में रेगिस्तान के जहाज कहलाने वाले ऊंट जो कि विषम परिस्थितियों में भी जीने का हौसला रखता है चाहे वो कडाके की ठण्ड हो या फिर भीषण गर्मी ऊंट अपना जीवन आसानी से बस कर लेता है। बदलते हालातो में इसने अपने आपको इस तरह ढाला कि रेतीली आँधी व सूरज की तेज किरणे भी इस पर बेअसर होती है। राजस्थान में गरीब लोगो के लिये ऊटपालन आमदनी का बेहत्तर जरिया है इसके अतिरिक्त सीमा पर देश की सुरक्षा में भी इनका उपयोग किया जाता रहा है इसलिये ऊंट बहुउपयोगी पशुओं में की श्रेणी में शुमार है। वैज्ञानिक अनुसंधानों से पता चला है कि ऊंटनी के दूध में न केवल भरपूर पौषक तत्व होते है बल्कि उच्च कोटि के एंटीऑक्सिडेंट भी पाये जाते है जिसका उपयोग टीबी हृदयरोग, पीलिया, उच्चरक्तचाप, डायबिटिज एवं कैंसर जैसे गंभीर रोगो को ठीक करने की क्षमता होती है ।
अत : माननीय आपसे निवेदन है कि उष्ट्र संरक्षण योजना को पुनः इन सभी मुद्दों को देखते हुए संरक्षित करने तथा ऊंटो के घूमने फिरने व रहने के लिये पर्याप्त जमीन, भरपूर भोजन हेतु चारागाह विकास, संक्रामक मौसमी बीमारियों पर विषेश ध्यान देकर ऊंटपालन को पुनः जीवित करने में सरकार की तरफ से मदद कराये ताकि पुनः इस विलुप्त होते रेगिस्तान के जहाज को बचाया जा सके ।