बीकानेर,रांगड़ी चौक के बड़ा उपासरा में शुंक्रवार को यतिश्री अमृत सुन्दरजी ने कहा कि देव, परमात्मा की उपासना, साधना, आराधना व ध्यान को विधि पूर्वक, सजगता से करना चाहिए। अविधि से की गई पूजा, उपासना व साधना और क्रिया से जीवन में विपरीत असर पड़ता है। पूजा, अर्चना व ध्यान का सुफल नहीं मिलता।
उन्होंने कहानी सुनाते हुए कहा कि यक्ष की पूजा करने वाला एक व्यक्ति विपरीत परिस्थिति में अपने देव का बल प्राप्त कर पागल व खूंखार बन जाता है। हिंसा उसका हथियार बन जाता है। भगवान महावीर के चरणों की शरण लेकर बाद में वह पाप कर्मों का प्रायश्चित व अपने कृत्यों पर दुख प्रकट कर परमात्म तत्व को प्राप्त करता है। उन्होंने कहा कि गलत धार्मिक क्रिया, साधना आराधना कई बार दुःख व तकलीफ का कारण बन जाती है। साधक को सुदेव, सुगुरु व सुधर्म की साधना, आराधना व भक्ति नियम व विधि पूर्वक करनी चाहिए।
यति सुमति सुन्दरजी ने कहा कि जीवन के विकास के लिए श्रेष्ठ सदाचार, शिष्टाचार की पालना स्वयं करें तथा भावी पीढ़ी को भी इसके लिए प्रेरित करें। पांच सदाचार सत्य, अहिंसा, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह पर साधना की नींव टीकी होती है। सत्य साधना शिविर में दस दिन पाप कर्मों से बचने तथा पांचों सदाचारों की पालना करने का सही मार्ग समझाया जाता है। यतिनि समकित प्रभा ने कहा कि विषय व भोगों में सच्चा सुख नहीं है। विषय भोग की क्षणिक आनंद व सुख देने वाली वस्तुएं दुःख,तकलीफ व बीमारी के समय बेरस लगने लगती है। सच्चा सुख व आनंद आत्म व परमात्म तत्व में लगन लगाने में है। उन्होंने भजन ’’’’तुमसे लागी लगन, ले लो अपनी शरण पारस प्यारा, तेरे चरणों में वंदन हमारा’’ सुनाया।