बीकानेर,एक सामान्य सा एथिक्स है दो व्यक्ति आपस में बात करते हैं तीसरे को किसी से मिलना हो तो बीच में नहीं जाता। मीटिंग के बीच में जाना तो और भी अनुचित है। जिसमें केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल केंद्र प्रवर्तित योजनाओं की बैठक ले रहे हो और देवी सिंह भाटी चलती मीटिंग में घुस जाए। सरासर गलत है। भाटी खुद राजस्थान सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे हैं। वे कायदा तो जानते ही होंगे। मेघवाल और भाटी आपस में धुर राजनीतिक विरोधी है। भाटी ने ऐसा क्यों किया खैर अब प्रशासन घटना की जांच कर रहा हैं। अगर भाटी ने नियम कायदों के विरुद्ध गलत किया तो भाटी के खिलाफ कठोर कार्रवाई होनी ही चाहिए ताकि आइंदा लोग सनद रहे। यह घटना अब भी जन चर्चा का विषय बनी हुई है। भाटी और मेघवाल के राजनीतिक कृतित्व और व्यक्तित्व का जनता इस वाकया के जरिए आकलन कर रही है। भाटी का कलक्टर से मिलना पूर्व निर्धारित था और कलक्टर मंत्री के साथ मीटिंग में बैठे थे। भाटी मीटिंग हॉल में घुस गए। मंत्री और मीटिंग में शामिल लोग सकपका गए होंगे। भाटी ने मीटिंग में जाकर कोई व्यवधान डालने जैसा काम तो नहीं किया, परंतु मंत्री के समक्ष सवाल रख दिए जो वाजिब थे। मंत्री की जिम्मेदारी बनती है कि वे जनता के बीच इसका जवाब दे। राजस्थानी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने तथा राजस्थान को नहरों में हिस्से का पूरा पानी मिले। इस घटना में मंत्री अर्जुन राम मेघवाल तटस्थ भाव से साक्षी बने रहे। बोले भी नहीं। इस बात को लेकर जन चर्चा है कि मेघवाल साहब के लिए मौका था कि भाटी के साथ सम्मान से बात करते और आपसी दूरियां मिटा लेते। वहीं लोग यह भी कहते हैं भाटी खुद राजस्थानी भाषा की मान्यता और नहरों से पूरा पानी मिले इसके लिए कितने प्रयासरत है। वे खुद भी बताएं? भाटी के इन दो सवालों पर यह कहने वाले लोग भी है कि मेघवाल ने कोन से जन हित के मुद्दे पर क्या किया ? जनता बखूबी जानती है। वे खुद जल संसाधन राज्य मंत्री और अभी .. कला संस्कृति..मंत्री है। क्या किया है कोई बता दे। वहीं भाटी ने विरोध की राजनीतिक के अलावा विकास के क्या काम किए हैं ? कोन जन हित में कितनी आवाज उठा सकता है जनता किस को कितना पसंद करती है। कोन जनता के हितों पर कितना संवेदनशील है। किस में नेतृत्व का कितना सामर्थ्य है जैसे सवाल जनता के बीच में चर्चा ए आम है। इसमें समर्थक और विरोधियों के अपने अपने तर्क और कुतर्क भी जोड़े लिए जाए तो मसला गंभीर बनता है। भाटी का राजस्थानी को मान्यता और राजस्थान का हिस्से का पूरा नहरी नहीं मिलना गंभीर सवाल है। अर्जुन राम मेघवाल तो इसके प्रति जिम्मेदार है ही भाटी समेत अन्य नेताओं की जन हित के इन मुद्दों पर गैर जिम्मदारी का यह ठोस प्रमाण है। क्या ये नेता राजनीति जन हित के लिए करते भी हैं क्या ? माननीय केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल जी आप अकेले दोषी नहीं हो… बस इतनी ही आपकी साख बची है।
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