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जोरावरपुरा, बीकानेर (राजस्थान)स्व पर कल्याण के लिए अनवरत पदयात्रा कर जनता के चारित्रिक उत्थान का महनीय कार्य करने वाले जैन शासन के प्रभावक आचार्य युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी का आज जोरावरपुरा में मंगल पदार्पण हुआ। प्रातः आचार्यश्री ने अपनी धवल सेना के साथ नोखा मंडी स्थित तेरापंथ भवन से मंगल प्रस्थान किया। शांतिदूत का अल्पकालिक दो दिवसीय भव्य प्रवास प्राप्त कर नोखावासी अपने आराध्य के प्रति कृतज्ञ भावों से नतमस्तक हो रहे थे। ‘जय जय ज्योतिचरण जय जय महाश्रमण’ के घोष पूरे वातावरण में आध्यात्मिक ऊर्जा का संप्रेषण कर रहे थे। विहार की दूरी मात्र डेढ़ किलोमीटर ही थी परंतु जोरावरपुरा के श्रद्धालुओं का भक्ति भाव उनके विशाल जुलूस से मुखर हो रहा था। मार्ग में कई स्थानों पर वृद्ध, अक्षम श्रावक–श्राविकाओं को आशीर्वाद एवं मंगलपाठ प्रदान करते हुए आचार्यश्री तेरापंथ भवन, जोरावरपुरा में प्रवास हेतु पधारे।

प्रवचन सभा में उपस्थित जन्मेदिनी को प्रेरणा देते हुए शांतिदूत ने कहा – दो प्रकार का धर्माराधना क्रम है – अणगार धर्म व आगार धर्म। अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का पूर्ण पालन करने वाला साधु अणगार धर्म का पालनहार होता है और अल्प रूप में पालन करने वाला श्रावक आगार धर्म का। पहला साधक व दूसरा आराधक। अणुव्रत के द्वारा अजैन भी धर्म साधना कर सकते हैं। छोटे–छोटे व्रतों का भी अनुसरण रहे तो यह जीवन और आगे का जीवन दोनों अच्छे बन सकते हैं। अर्थ, काम, धर्म और मोक्ष यह चतुष्टयी है।

आचार्यश्री ने आगे बताया कि व्यक्ति कई चीजों से जीवन में सामान्य धर्म का पालन कर सकता है। पहला है सुपात्र दान, अर्थात शुद्ध साधु को शुद्ध दान देना। ज्ञान दान व अभय दान भी श्रेष्ट दानों की कोटि में आते है। लौकिक दान का भी लौकिक महत्व है। दूसरा है गुरु का विनय। विनय धर्म का मूल है अतः गुरु के प्रति भक्ति के भाव रहने चाहिए। तीसरा है सर्व प्राणियों के प्रति दया का भाव रखना, पाप आचरणों से बचना। चौथा न्याय व नैतिकता का व्यवहार करना, अनैतिक अर्जन न करना। पांचवा दूसरों के हित का चिंतन करना। छठा लक्ष्मी का धमंड नही करना। सातवां सत्संगति करना, संतो व सदपुरुषों की संगति में रहना व अच्छे साहित्य का पठन करना। ये कुछ बातें जीवन में आजाये तो कुछ अंशों में धर्म जीवन में आसकता है। आदमी को अगली गति के बारे में भी सोचना चाहिए। अंतिम समय में भी अनशन, संलेखना आदि द्वारा धर्ममय जीवन बीते ऐसा भाव रहना चाहिए।

जोरावरपुरा आगमन के संदर्भ में आचार्यश्री ने कहा – जोरावरपुरा नोखा से जुड़ा हुआ क्षेत्र है। पूर्व में आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के साथ यहां आना हुआ। तब दीक्षा समारोह का भी यहां आयोजन हुआ था। उसके बाद 2011, 2014 और अब पुनः मेरा यहां आना हुआ है। यहां की जनता में धार्मिक आराधना के प्रति चेतना बढ़ती रहे।

इस अवसर पर ‘शासन गौरव’ साध्वी राजीमती जी, साध्वी कुसुमप्रभा ने अपने विचारों की अभिव्यक्ति दी। स्वागत के क्रम में स्थानीय पार्षद श्री नारायण सिंह राजपुरोहित, तेरापंथ सभा से श्री राजेंद्र मरोठी, तेयुप अध्यक्ष श्री सुरेन्द्र बुच्चा, श्री दिनेश मरोठी, श्री ज्ञानचंद मरोठी, राज. सरकार सीनियर लॉ आफिसर श्री अजीत मरोठी, यश बुच्चा, श्री जेठूसिंह राजपुरोहित, तेमम अध्यक्षा श्रीमती शकुंतला मरोठी, श्रीमती मोनिका बुच्चा, श्रीमती विनिता नाहटा, निकिता मराठी, तनिषा बुच्चा, श्रीमती कनक-पवन बुच्चा, श्रीमती कनक–अजय बुच्चा आदि ने अपने वक्तव्य दिया। तेमम एवं कन्या मंडल की बहनों ने स्वागत गीत का संगान किया। तेयुप व महिला मंडल के सदस्यों ने गुरूदेव से नियम–संकल्प स्वीकार कर त्याग की भेंट गुरू चरणों में अर्पित की।

सायं लगभग 6 किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री नोखा गांव में पधारे। स्थानीय सुराणा भवन में आचार्यश्री का रात्रिप्रवास हुआ।

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