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बीकानेर (राजस्थान) चाहे तापमान कभी 44 डिग्री सेल्सियस से ऊपर जा रहा हो या बदन को झुलसा देने वाली लूं की तेज हवाएं चल रही हो। आसमान से आग बरसाती सूरज की गर्मी में जहां लोग गाड़ियों में भी बाहर निकलना पसंद नहीं करते ऐसी भीषण गर्मी में भी अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमण जी गांव- गांव, ढाणी- ढाणी में पैदल पदयात्रा कर जनता को अध्यात्म द्वारा जीवन सार्थक बनाने की प्रेरणा दे रहे हैं। आज सुबह आचार्य श्री ने खारडा ग्राम से मंगल विहार किया। विहारपथ के दौरान चारों और नजर आते ऊंचे रेतीले धोरें, खेजड़ी आदि के वृक्ष क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति को दर्शा रहे थे। लगभग 12 किलोमीटर का वि हार का युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण राजेरा ग्राम में पधारे। यहां जैन समाज की भी अनेकों श्रद्धालु निवास करते हैं उनके साथ-साथ आज ग्रामीणों में भी शांतिदूत के आगमन से और उल्लास छाया हुआ था। इस अवसर पर सरपंच श्री महेंद्र गोदारा सहित ग्रामवासियों ने आचार्य श्री का स्वागत किया।

मंगल प्रवचन में आचार्यश्री ने कहा – हमारी यह आत्मा पुनर्जन्म करती है, जन्म-मरण करती रहती है इसका मुख्य कारण है हमारे कषाय। क्रोध, मान, अहंकार, माया, लोभ जैसे कषायों के कारण यह जन्म-मरण का क्रम चलता रहता है। अध्यात्म साधना का मूल लक्ष्य है कि पुनर्जन्म का क्रम बंद हो जाए और परम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति हो। भारतीय दर्शन में पुनर्जन्म की बात आती है जैन धर्म में और विस्तार से इसके बारे में बताया गया है। आत्मवाद और कर्मवाद का सिद्धांत पुनर्जन्म से जुड़ा हुआ है। कोई नास्तिक विचारधारा वाला यह कह दे कि वह पुनर्जन्म को, पुण्य-पाप को, मोक्ष को नहीं मानता परंतु इसके पीछे आधार क्या है ? व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है उसका शरीर निष्क्रिय हो जाता है। मृत्यु से पहले उसका शरीर सक्रिय था। जब तक शरीर में आत्मा थी तो जीवन था और जैसे ही आत्मा अगली गति में चली गई तो यह शरीर निष्क्रिय बन जाता है।

आचार्यश्री ने आगे कहा कि इस पुनर्जन्म के सिद्धांत के आधार पर व्यक्ति को अपनी जीवनशैली बनानी चाहिए। कम से कम व्यक्ति जीवन तो अच्छा जिए और पापों से बचें। कोई अगर इस सिद्धांत को ना भी माने तो अच्छा जीवन जीने में क्या नुकसान है। सत्कार्य करने का प्रयास करते रहना चाहिए। जितना जीवन में गुरुओं का योग मिले शास्त्रों का योग मिले ज्ञानार्जन का प्रयास हो और उसके अनुरूप फिर आचरण हो। ग्रंथों से ज्ञान की प्राप्ति तो होती है परंतु जब गुरु -ग्रंथ दोनों का योग मिल जाता है जो सबके लिए दुर्लभ है तो फिर वह ज्ञान भी फलदायी जाता है।

इस अवसर पर सरपंच श्री महेंद्र गोदारा, कोजूराम सारस्वत, श्रीमती गुड्डी देवी ने अपने विचार रखे। विजय, आसकरण, मुकेश, सुरेश पुगलिया, महिला मंडल, रेखादेवी आदि बहनों ने गीत का संगान किया।

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