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बीकानेर। बीकानेर कोरोना कॉल के दौरान मानव जाति की गतिविधियां सीमित और संयमित होने का सकारात्मक सकारात्मक परिणाम पशु पक्षियों और वन्यजीवों पर देखने को मिला है। शहरी और आवासीय क्षेत्रों में दिखने दुर्लभ हो चुके कई पक्षियों की मौजूदगी दिखने लगी है। पक्षी प्रेमी इसके पीछे पक्षियों की प्रजनन क्षमता में इजाफा होना मान रहे हैं। ध्वनि प्रदूषण वायु प्रदूषण और औद्योगिक गतिविधियों पर अंकुश परिवहन में कमी का यह असर पक्षियों और वन्यजीवों पर पड़ा होना मान रहे हैं। पक्षियों के घोंसले की संख्या में भी इजाफा हुआ और अंडे भी सामान्य से ज्यादा दिए थे। महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग की ओर से गत किए गए एक सर्वे में ऐसे तथ्य सामने आए हैं। सर्वे में पाया गया है कि पक्षी शांत माहौल में ज्यादा अच्छे से जीवन जीते हैं इससे उनकी प्रजनन क्षमता पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। कई ऐसे पक्षी भी पहली बार बीकानेर शहर के आवासों पेड़ पौधों और आसमान में उड़ते नजर आए जो आमतौर पर ग्रामीण इलाकों में सुनसान जगह पर रहना पसंद करते हैं। शोध में सामने आया है कि पक्षियों की गोसलो की संख्या में बढ़ोतरी हुई है गोरिया चिड़िया के नीड का निर्माण अधिक हुआ है। सर्वे के लिए शोधार्थियों ने दो स्थान चिन्हित किए एक स्थान विश्वविद्यालय परिसर स्थित प्रणव परिसर तथा एक स्थान पुरानी गिनाणी आवासीय क्षेत्र में लॉकडाउन से पहले के सर्वे की तुलना कोरोना की पहली और दूसरी लहर के लॉकडाउन के बाद के तथ्यों में तुलना के पहले जहां विश्वविद्यालय परिसर में 100 घोसले सामने आए वही शहर में इनकी संख्या 50 से 60 के बीच रही थी। ताजा सर्वे में विश्वविद्यालय परिसर और पुरानी गिनाणी में ज्यादा फर्क नजर नहीं रहा। विश्वविद्यालय परिसर में 85 घोसले नजर आए तो पुरानी गिनाणी क्षेत्र में यह संख्या 80 के करीब रही। यह शोध पर्यावरण विज्ञान विभाग के शोधार्थी प्रियंका राठौड़ और विष्णु आचार्य ने किया था आवासीय क्षेत्र में गोरिया के घोसले अधिक मिले लॉकडाउन के दौरान कौवो की संख्या में भी इजाफा हुआ है। लक्ष्मीनाथ जी मंदिर पार्क तथा मुरलीधर व्यास कॉलोनी के आश्रम के पास सर्वे किया गया भैरव कुटिया में भी को भी बहुतायत संख्या में रहते हैं। परंतु वे रात को नहीं रुकते यहां पक्षी समूह के साथ ही रहना और समूह में खाना पसंद करते हैं। इन दोनों स्थानों पर किए गए सर्वे में अनुमान के अनुसार करीब 80 गांव में मिले थे जबकि लॉकडाउन से पहले किए सर्वे में यह संख्या 40 के आसपास थी। लॉकडाउन के दौरान पुरानी गिनाणी, मुरलीधर व्यास नगर आश्रम, के पास लक्ष्मीनाथ जी मंदिर, के पार्क, कृषि उपज मंडी वेयरहाउस गोदाम, बीचवाल, तथा रानी बाजार औद्योगिक, क्षेत्र में कई दिनों तक सर्वे किया इन जगहों पर पक्षियों का दाना पानी सुलभ हो जाता है। और सुरक्षा की दृष्टि से भी यह जगह सही है। लॉकडाउन के सन्नाटे में शहरी क्षेत्र में चमगादड़ और काटो वाली सेही दिखी यहां मोहता चौक, राघड़ी चौक, रामपुरिया मोहल्ला, फूलनाथ बगेची, आदि क्षेत्रों में 7 तरह के चमगादड़ नजर आई। जबकि नाथ सागर, गजनेर रोड स्थित कब्रिस्तान, और वेटरनरी विश्वविद्यालय, के पास सेही घूमती दिखी। ग्रामीण क्षेत्रों के पक्षी र ट्रिपआई चिड़िया, गेहीन बिल, फल खाने वाले चमगादड़, आदि लॉकडाउन के दौरान शहर में नजर आए। लॉकडाउन की अवधि में पक्षियों के अंडों में भी दुगनी वृद्धि दर्ज हुई है। इसका मुख्य कारण शांत वातावरण और किसी प्रकार प्रदूषण नहीं होना रहा है। आमतौर गोरीया एक साल में एक बार प्रजनन करती है और दो अंडे देती है। जबकि इस बार यह संख्या दुगनी हो गई और अर्थात शांत वातावरण में चार अंडे दिए। और उनके गोसलो को भी हटाया गया। साथ ही टिहरी ने भी चार अंडे दिए। जबकि यह आमतौर पर दो अंडे ही देने लगी थी। लॉकडाउन के दौरान सड़कों पर सन्नाटा होने के कारण यह अपने कुनबे के साथ सड़क पर भी नजर आने लगे कबूतरों के अंडों में कोई इजाफा नहीं हुआ। हालांकि कबूतर के चूज़ों की मौत में कमी दर्ज हुई। इसकी वजह दुकान की छत गोदाम और फैक्ट्रियों के लॉक होने से उनकी वंश वृद्धि में कोई व्यवधान पैदा नहीं हुए। वही विभागाध्यक्ष पर्यावरण विज्ञान के अनिल कुमार छंगानी का कहना है कि पक्षियों की प्रजनन क्षमता बढ़ाने का मुख्य कारण लॉकडाउन के दौरान शांति और लोगों की ओर से चुग्गा पानी व्यवस्था करना रहा है। साथ ही गोदाम फैक्ट्रियों दुकान तथा व्यापारिक प्रतिष्ठान बंद होने से पक्षियों को सुरक्षित आवास मिले जिससे संख्या में वृद्धि हुई। अगर पक्षियों के घोंसले की संख्या बढ़ना अच्छे मानसून आने के संकेत भी होते हैं।

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