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बीकानेर,ले चलो मुझे भी एक ऐसी जगह.. जहां सिर्फ मैं हूँ, तुम हो और न जानता कोई हमें यहां हो..

लंबी सड़कें तो हो, लेकिन सफ़र सिर्फ पैरों का हो.. न कोई साधन हो और न कोई समय का बंधन हो..

धुंध तो हो, मगर मौसम की हो.. मिट्टी उड़े तो बालों का रंग सुनहरा कर दे, हवा की असर सीधी हृदय के सागर में हो..

नंगे पैर तेरे साथ चल दूं, फिर भी पैरों तले छाले न हो.. न वस्त्र से मुझे कोई नापे यहां, न बुराई किसी की नज़र में हो..

हर ओर प्रकृति का ही मंज़र हो, टेढ़ी मेढ़ी लेकिन सुंदर हर एक डगर हो.. पेड़-पौधों, नदी-परबत, हर झील में कुदरत की असर हो..

बच्चें, बूढ़े, जवान यहां हर कोई सुंदरता की मिशाल हो.. जो मेरे चेहरे से न तोले मुझे और जिसे प्यार मेरी सादगी से हो..

खुद से खुद को प्यार हो जाये ऐसा जहां आलम हो, ले चल मुझे उस जहाँ में, जहां बस तेरा और मेरा सफ़र हो..

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