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बीकानेर,नई दिल्ली: कोरोना वायरस ने दुनिया भर को अपनी चपेट में लिया है. विश्व में ऐसा कोई देश नहीं बचा जहां इसका प्रकोप न फैला हो. यह वायरस (Coronavirus) घातक होने के साथ साथ ही लगातार अपने स्वरूप में भी परिवर्तन कर रहा है. इसका बदलता रूप पूरे विश्व के लिए एक चिंता का विषय बना हुआ है. कोरोना की दूसरी लहर के दौरान विश्व भर में डेल्टा वैरिएंट (Corona Virus Delta Variant) का विनाशकारी रूप सामने आया. विश्व के बड़े बड़े वैज्ञानिक अब डेल्टा वैरिएंट पर फोकस कर रहे हैं और यह जानने की कोशिश में लगे हुए है कि क्या वायरस का कोई और खतरनाक वैरिएंट डेल्टा की जगह ले सकता है.

भारत में अप्रैल मई में आई कोरोना वायरस की तीसरी लहर के दौरान अधिकतर मामले के डेल्टा वैरिएंट के ही थे.डेल्टा वैरिएंट कोरोना के अन्य प्रकारों की तुलना में तेजी से फैलने वाला है. साथ ही इससे नुकसान का खतरा ज्यादा बना हुआ है. फिलहाल पूरी दुनिया में 135 से ज्यादा देशों में फैल चुका है. ऐसे में यह पूरी दुनिया के लिए खतरे की घंटी बना हुआ है. इसे देखते हुए वैज्ञानिक ये पता लगाने में जुटे हैं कि

Delta Variant :
दूसरी लहर के दौरान भारत में सबसे पहली बार सामने आया कोरोना का डेल्टा वैरिएंट सबसे ज्यादा चिंताजनक बना हुआ है. यह कई देशों की अशिक्षित आबादी को बुरी तरह से प्रभावित कर रहा है. वायरस का यह वैरिएंट अपने पूर्ववर्ती वैरिएंट से कही ज्यादा घातक है और यह उनसे कहीं तेजी से ट्रांसमित होता है. किसी वायरस के यह सब लक्षण किसी को भी चिंता में डाल सकती है.

यह वायरस आसानी से तेजी के साथ फैलता है और गंभीर बीमारियों को पैदा करने में भी सक्षम है. इसमें टीकों का भी प्रभाव कम पाया गया है. चीनी शोधकर्ताओं ने पाया कि डेल्टा से संक्रमित लोगों की नाक में कोरोनावायरस के मूल संस्करण की तुलना में 1,260 गुना अधिक वायरस होते हैं.

डेल्टा इंफेक्टेड में अधिक होता है वायरल लोड

कुछ अमेरिकी शोध में सामने आया है कि डेल्टा से संक्रमित होने वाले टीकाकरण वाले व्यक्तियों में ‘वायरल लोड’ उन लोगों के बराबर है, जिन्हें टीका नहीं लगाया गया है, लेकिन अभी इस बारे में पूरी तरह से शोध होना बाकी है. जब कोई व्यक्ति कोरोना से ग्रसित होता है तो उसमें लक्षण दिखने पर सामान्य तौर पर सात दिन लग जाते हैं लेकिन वहीं डेल्टा से संक्रमित होने पर दो से तीन दिन में ही लक्षण दिखने लगते है. इसका साफ तौर पर यह मतलब है कि डेल्टा सीधे तौर पर प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित करता है और बचाव का समय मरीज के पास कम रहता है.

वैज्ञानिकों के अनुसार डेल्टा वैरिएंट में भी बदलाव संभव है और डेल्टा प्लस इसी का एक संस्करण है. भारत ने जून में डेल्टा प्लस को वायरस के एक गंभीर संस्करण के रूप में शामिल किया था. लेकिन डेल्टा प्लस वैरिएंट को लेकर न तो यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन और न ही डब्ल्यूएचओ की तरफ से किसी तरह की कोई गंभीर चेतावनी दी है.

एक ओपेन सोर्स के मुताबिक यह सामने आया है कि कोरोना के डेल्टा प्लस वैरिएंट का अभी तक कम से कम 32 देशो में पता चला है. फिलहाल अभी इस पर रिसर्च जारी है और यह सामने नहीं आया है कि यह डेल्टा वैरिएंट की तरह खतरनाक है या नहीं.

Lambda Variant :
कोरोना वयारस के नए खतरनाक संस्करणों में लैम्ब्डा वैरिएंट का नाम भी शामिल है. कोरोनावायरस का यह संस्करण पहली बार दुनिया के सामने पेरू में सामने आया था. लैम्ब्डा वैरिएंट पर डब्ल्यूएचओ ने भी अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की थी तो संभावना है कि डेल्टा वैरिएंट की तरह दूसरी बीमारियों को जन्म दे सकता है और शोध में सामने आया है कि इसमें भी अपने स्वरूप को बदलने की शक्ति है और यह टीके से बनने वाली एंटीबॉडी का विरोध करता है.

कैलिफ़ोर्निया के ला जोला में आणविक चिकित्सा के प्रोफेसर डॉ एरिक टोपोल ने कहा जीआईएसएआईडी को रिपोर्ट किए गए नए कोरोना केसेस में सामने आया है कि लैम्ब्डा केसेस में गिरावट आई है इसका मतलब है कि वैरिएंट का संस्करण घट रहा है.

The B.1.621 Variant:
कोरोना वायरस का यह वैरिएंट पहली बार कोलंबिया में सामने आया था. इस वैरिएंट ने कोलंबिया में हजारों लोगों की जान ली और वहां प्रकोप का प्रमुख कारण बना था. अभी तक इस वैरिएंट पर रिसर्च जारी है और अब तक इसे कोई एक नाम नहीं मिल सका है. अभी तक इसके बारे में यह सामने आया है कि यह वायरस कम प्रतिरक्षा वालों पर ज्यादा हावी होता है. हाल ही में एक सरकारी रिपोर्ट में यह सामने आया है कि कोरोना के इस वैरिएंट के ब्रिटेन में अब तक 37 संभावित मामलों की पुष्टि हुई है. इसके अलावा इस वायरस से ग्रसित होने के कुछ मामले फ्लोरिडा से भी सामने आए हैं.

विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि संयुक्त राज्य अमेरिका तब तक मुश्किल में पड़ सकता है जब तक एक बड़ी संख्या में अमेरिकियों को वैक्सीन नहीं लगाई जाती. ऐसा इसलिए माना जा रहा है कि कोरोना का बदलता रूप बिना टीकाकरण वाले लोगों में आसानी से फैल सकता है और यह अपने बदलाव को अवसर दे सकता है. ऐसा देखा गया है कि जहां कम संख्या में टीके लगे हैं वहां वायरस के नए वैरिएंट का अनियंत्रित रूप से फैलना ज्यादा सामने आता है.

वैक्सीनेशने के बीच यह यह महत्वपूर्ण विषय है कि कोरोना के खिलाफ लगाए जा रहे किसी भी प्रकार का टीका नागरिक को गंभीर बीमारी से बचा सकता है लेकिन वायरस के संक्रमण को नहीं रोक सकता. इसलिए SARS-CoV-2 को हराने के लिए संभवतः नई पीढ़ी के टीकों की आवश्यकता होगी जो संक्रमण को भी रोक सकें.

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