बीकानेर,कुषाण, मुगल, ब्रिटिश और भारतीय राजा- महाराजा किस प्रकार से लेनदेन के लिए मुद्रा का इस्तेमाल करते थे?, यह व्यापार एवं वाणिज्य में किस प्रकार सहायक थे? यह सब जानने और इनसे अवगत कराने के उद्देश्य को लेकर बीकानेर मुद्रा परिषद् २७ सितम्बर से आसानियों के चौक स्थित सूरज भवन में तीन दिवसीय मुद्रा प्रदर्शनी का आयोजन करने जा रही है। इस प्रदर्शनी में ना केवल बीकानेर अपितु जयपुर, जोधपुर, दिल्ली, मुंबई, मद्रास और कलकता सहित देश के कई महानगरों से संग्रहकर्ता भाग लेने के लिए आ रहे हैं। यह बात मुद्रा परिषद् के महेन्द्र कुमार बरडिय़ा ने बुधवार को प्रदर्शनी के पोस्टर विमोचन अवसर पर कही। उन्होंने बताया कि प्रदर्शनी का उद्घाटन 27 सितम्बर शुक्रवार को सुबह 9.15 बजे होगा ।मुद्रा महोत्सव में शहरवासियों को कृषाण कालीन, मुगल कालीन, भारतीय रियासत, ब्रिटिश कालीन एवं आजादी के बाद से लेकर वर्तमान तक प्रचलित एवं अप्रचलित मुद्राओं का संग्रह देखने को मिलेगा। बरडिय़ा ने बताया कि आज तक भारत की जो मुद्राएं चलन में आई थी वो अज्ञानतावश 95 प्रतिशत विलीन हो चुकी है। इसकी वजह उन सिक्कों का सोने, चांदी और तांबा जैसी महंगी धातुओं से बना होना था। इसके चलते लोगों ने इसके मूल्य को ना समझ, इन्हें वर्तमान समय में बढ़ते भावों के साथ बेच दिया। जबकि यह अमूल्य धरोहर है और अगर किसी संग्रहकर्ता को दी जाती है तो उन्हें इनका अच्छा मूल्य मिलता है। बरडिय़ा ने कहा कि वे पिछले बीस सालों से पुराने संग्रहकर्ता होने के नाते आने वाली पीढ़ी में इसके लिए जागृति का प्रयास कर रहे हैं और इसलिए ही यह प्रदर्शनी आयोजित की जा रही है।
उपाध्यक्ष भरत कोठारी ने बताया कि राजस्थान की रियासतों में प्राचीन सिक्के मिलते हैं। पुराने समय में उसमें उर्दू भाषा होती थी। क्योंकि उस समय मुगल कालीन राज्य होते थे। जो राजस्थान की रियासतें होती थी उन्हें भी उर्दू में सिक्के छापने पड़ते थे।
मुद्रा परिषद के सचिव प्रेमरतन सोनी (डांवर) ने बताया कि देश की आजादी से पहले भारत में ब्रिटिश काल में विक्टोरिया, एडवर्ड, पंचम जॉर्ज, सिक्स जॉर्ज के नोट कागजी मुद्रा में भी काफी प्रचलन रहा। जो वर्तमान समय में अब आपको देखना दुर्लभ हो गया है, वह भी इस प्रदर्शनी में दिखाई देंगे। पोस्टर विमोचन अवसर पर परिषद सदस्य नवीन बरडिय़ा ,राजीव खजांची, शैलेन्द्र बरडिय़ा, सुनील अग्रवाल आदि मौजूद रहे।