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बीकानेर,श्री राजपूत करणी सेना के संस्थापक लोकेन्द्र सिंह कालवी का सोमवार देर रात निधन हो गया है. वह जयपुर के SMS हॉस्पिटल में भर्ती थे और मौत की वजह हार्ट अटैक बताई जा रही है. अंतिम संस्कार नागौर जिले के उनके पैतृक कालवी गांव में मंगलवार दोपहर 2.15 बजे किया जाएगा.

अपनी जुबान से लोगों के जुनून भर देने वाले कालवी ने चारों तरफ समर्थकों का बड़ा वर्ग तैयार किया, हालांकि उनके आलोचकों की संख्या भी कम नहीं रही. लम्बी कद काठी और राजपूती पोशाक में नजर आने वाले कालवी जब यह कहते थे कि ‘मैं रानी पद्मिनी की 37वीं पीढ़ी से ताल्लुक रखता हूं, मुझे यह गौरव प्राप्त है. जौहर की ज्वाला में बहुत कुछ खाक हो जाएगा, अगर रोक सको तो रोक लो.’ तो इसे सुनकर समर्थक जोश से भर जाते थे और हुंकार भरने लगते थे.

पिता की मौत के बाद समर्थकों ने अपनाया राजस्थान के नागौर जिले के कालवी गांव में जन्मे लोकेन्द्र सिंह के पिता पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर सरकार में मंत्री रहे और उनके करीबी भी. असमय पिता की मौत के बाद चंद्रशेखर के समर्थकों ने लोकेंद्र सिंह कालवी को हाथोंहाथ लिया. उनकी पढ़ाई अजमेंर के उस मेयो कॉलेज में हुई जो तालीम के लिए राजपरिवारों का पसंदीदा संस्थान रहा है. बहुत कम लोग जाते हैं कि वो बास्केटबॉल के खिलाड़ी रहे हैं.

हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं पर पकड़ रखने वाले कालवी निशानेबाजी में भी पारंगत थे, यह बात और है कि वो सियासी निशानेबाजी में हमेशा मात खाए. उन्होंने कई बार चुनाव लड़ा, लेकिन समर्थकों की भीड़ भरपूर वोटों में तब्दील नहीं हो पाई. कालवी ने नागौर से लोकसभा का चुनाव लड़ा और 1998 में भाजपा उम्मीदवार के तौर पर बाड़मेर से मैदान में उतरे लेकिन शिकस्त मिली. पहले भाजपा से कांग्रेस फिर कांग्रेस से भाजपा में आए भाजपा से जुड़े रहे कालवी ने 2003 में आरक्षण आंदोलन शुरू किया.

उन्होंने राजपूत नेताओं के साथ मिलकर सामाजिक न्याय मंच बनाया और ऊंची जातियों को आरक्षण दिलाने के लिए अभियान का आगाज किया. इस अभियान की शुरुआत उन्होंने यह कहकर की, “उपेक्षित को आरक्षण, आरक्षित को संरक्षण.”इसी अभियान के कारण ही उनके और भाजपा के बीच मनमुटाव हुआ और पार्टी छोड़ दी. फिर कांग्रेस से जुड़े, लेकिन जल्द ही भाजपा में वापसी हो गई. जब राजपूत समाज ने ही आलोचना की कालवी राजनीति में भले ही पीछे छूट गए, लेकिन इन्हें पहचान मिली राजपूत समाज के मुद्दों को लेकर सक्रियता और मुखरता से.

उन्होंने भाषणों में कई बार कहा था, “हमने सिर कटवाए हैं मालिक! खून से इतिहास लिखा है.” वह कई बार भड़काऊ मुद्दों तो कई बार फिल्मों का विरोध करने पर चर्चा में रहे. पहले फिल्म जोधा अकबर के खिलाफ अभियन चलाया जिससे उनके समर्थकों का दायरा बढ़ा और बाद में पद्मावत का विरोध करने पर वो देशभर में जाने गए, लेकिन एक ऐसा समय भी था जब राजपूत समाज ने ही कालवी की आलोचना की. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, राजपूतों के मुद्दों पर बढ़ती सक्रियता के बाद भाजपा ने लोकसभा चुनावों में बाड़मेर से पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह का टिकट काट दिया और इन्हें मैदान में उतारा.

पूरे मामले में कालवी ने चुप्पी साधे रखी. इस बात पर राजपूत समाज में उनकी कड़ी आलोचना हुई. जसवंत सिंह के समर्थकों का कहना था कि कालवी ने जसवंत सिंह के खिलाफ चुनाव प्रचार में हिस्सा लिया. इसे हम नहीं भूल सकते.

लेकिन कुछ ऐसे मामले भी सामने आए जब उन्होंने भाजपा को छोड़कर राजपरिवार का साथ दिया. जब जयपुर के पूर्व राजपरिवार दिया कुमारी और भाजपा सरकार के बीच सम्पत्ति को लेकर विवाद बढ़ा तो उन्होंने पूर्व राजपरिवार का साथ दिया. इतना ही नहीं वो राजस्थान में गैंगस्टर आनंदपाल मुठभेड़ मामले में राजस्थान में वसुंधरा राजे सरकार से नाराजगी को जाहिर किया था. इस मामले को उठाते हुए उन्होंने कहा था कि वो भाजपा को हराएंगे और राजपूत समाज पार्टी को माफ नहीं करेगा.

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