बीकानेर के मेडिकल कालेज से नागणी जी मन्दिर की तरफ़ जाने वाली रोड पर कुकरमुतों की तरह डाक्टरों ने अपने घरों में अस्पताल, दवा की दुकाने , रोग निदान जाँच केन्द्र, लेबोर्टी खोल ली है जिससे सड़क पर इतनी भीड़ होती हैं जिससे जाम की स्थिति बन जाती हैं। रोड पर बीकानेर नर्सिंग होम, फलोदिया बंधुओं का दवाखाना, कल ही खुला सन् शाइन हॉस्पिटल। बोथरा लेबोरिटी , डा अच्युत का मनोंचिकित्सा केंद्र, डा शशि अग्रवाल, डा बंब इनकी दवा की दुकाने, पैथोलेजी जाँच केन्द्र आस पास के लोगो के लिये सर दर्द साबित हो रहे है। यह डाक्टर पैसा कमाने में लगे हुए हैं और पवनपुरी वाले दुखी हैं इनके मरीज़ वही आस- पास के क्षेत्र में ना केवल पार्किंग करते हैं अपितु लैट्रिन- पेशाब से भी वही हल्के होते हैं। इन क्षेत्रों में यातायात हमेशा जाम रहता है। हाउसिंग बोर्ड की रिहायशी कालोनी में कमर्शियल कार्य करने की इजाज़त इन्हें कैसे मिली ? यह सोचने का विषय हैं। इन लोगो ने हाउसिंग बोर्ड के लोगो का जीवन दुर्भर कर रखा है। अब डाक्टरों को कोई मकान देना पसन्द नहीं करता। पहले ये लोग प्राइवेट प्रैक्टिक्स जमाते है फिर वही मकान ऊँचे दामो में ख़रीद कर अस्पताल का रूप दे देते हैं। दवाई की दुकान और लेबोरेटरी खोल लेते हैं। फिर उस पर भव्य इमारत बना लेते हैं हवाए, सूरज की किरणे, चंद्रमा की चाँदनी के लिये पड़ोसी महफ़ूज़ हो जाते है और फिर सिलसिला शुरू होता हैं भारी भीड़ का। मरीज़ लोग लोगो के घरों के आगे पेशाब करते हैं। पार्किंग करते हैं। रोज़ाना झगड़ों की नौबत आती है हमारे संभागीय आयुक्त यहाँ आँखें बन्द कर लेते हैं। आयकर विभाग भी आँख मूँद लेता हैं। समझ में नहीं आताजब सरकार आरोपी एस पी दिव्या राणा के फ़ार्म हाउस पर अनधिकृत निर्माण पर बुलडोज़र चला सकती है तो फिर डाक्टरों की अनधिकृत निर्माण पर बुलडोज़र क्यों नहीं चला सकती? जिन्होंने अपने घरों में अस्पताल, दवाई की दुकान , लेब्रोट्री खोल रखी है इनकी वजह से सड़को पर यातायात जाम हो जाता हैं ये डाक्टर लोग अस्पताल जाते ही नहीं। सुबह से शाम तक घर पर ही मरीजो को देखते रहते हैं। संभागीय आयुक्त को सड़क पर खड़े सब्ज़ी के गाड़े वाले या फिर छोटे छोटे खोखे वाले नज़र आ जाते हैं और वे फिर उन्हें वहाँ से हटवाने की कारवाई करते हैं फिर उन्हें यह बड़ी बड़ी अनधिकृत इमारतें नज़र क्यों नहीं आती। यह सब लोग जानते हैं ग़रीबो पर ही हमेशा मार पड़ती हैं और पड़ती रहेगी। अब अधिकारियों में ईमान- धर्म भला कहाँ रहा हैं? इसलिए हमारा लिखना भी फ़िज़ूल हैं।
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