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बीकानेर,सेवा परमोधर्मः, संगठन जन हिताय, मीडिया जनता की आवाज। ये ध्येय हमारा रहा है।। हम अपने इर्दगिर्द निष्पक्ष आकलन के लिए नजर दौड़ाए तो कुछेक को छोड़ दे तो पाएंगे लोग समाज सेवा का लबादा ओढे क्या क्या करते नजर नहीं आते ? सटोरिए, भू माफिया, अवैध धंधों में लगे लोग भी सफेद पोश बनकर समाज सेवक बने हुए हैं। उनका इरादा समाज सेवा कितना है सब जानते हैं। पैसे के बलबूते पर समाज में अपनी स्वीकार्यता बनाए रखने का समाज सेवा सस्ता और अच्छा सुगम रास्ता है। समाज सेवा के साथ बाकी सभी भी चलता रहता है। यह समाज सेवकों के साथ विडम्बना है जिसे व्यवस्था ने स्वीकार कर लिया है। इससे बुरी स्थिति तो कुछ एसोसिएशन, संघ,परिषदों औऱ संगठनों की है। इनसे जुड़े लोग अपनी पहचान कायम रखने , अपने औऱ अपने चहेतों के हित पूरे करने, सरकार और प्रशासन पर दबदबा कायम रखने में संगठनों का इस्तेमाल करने में संकोच नहीं करते। ऐसे संगठन आपसी हितों और स्वार्थी लोगों के गिरोह के अलावा कुछ नहीं है। इनके मूल उद्देश्यों का अता पता ही नहीं है। ऐसे संगठन नेताओं और अफसरों के पिछलग्गू बने रहते हैं।। इससे बुरी स्थिति तथाकथित मीडिया की है। मीडिया की आड़ लेकर भी जहां तहां कई लोग काम करते दिखाई देते हैं। ये लोग मीडिया के कर्तव्यों से इतर काम करते ज्यादा दिखाई देता है। पेडन्यूज का गोरखधंधा मीडिया की साख पर काला धब्बा है। मीडिया की आड़ में बिजनेस से साख को बट्टा लगा है। अब मीडिया के लोगों की छवि लाइजनिंग, नेताओं के पिछलगु, मार्केटिंग की बनती जा रही है। पत्रकारिता के एथिक्स को बिना समझे ही लोग पत्रकारिता कर्म से जुड़ गए हैं। पत्रकारिता के उद्देश्यों औऱ कर्त्तव्यों को ताक पर रखकर रोजी रोटी कमाने का जरिया बनाया जा रहा है। यह भारतीय लोकतंत्र के लिए बहुत ही दुःखद स्थिति है। इसका कतई यह अर्थ नहीं है कि निस्वार्थ समाज सेवा करने वाले लोग, जन हित देखने वाले संगठन और निष्पक्ष पत्रकारिता बची नहीं है। ये सब है परंतु इनको बढ़ावा देना समय की जरूरत है अन्यथा स्वच्छ और लोकोपकारी समाज की रचना कैसे हो पाएगी।

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