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बीकानेर की होली भी अपने अलग अंदाज के चलते काफी मशहूर है। अल्हड़ मस्ती, फाल्गुनी गीत और चंग की थाप होली से 10 दिन पहले ही शहर में गूंजने लगते है वही होली पर आयोजित होने वाली रम्मते। होलाष्टक के साथ ही हर दिन अलग अलग क्षेत्रो में रम्मत का दौर शुरू हो जाता है। ख्याल,चौमासों पर आधारित लोक नाटय रम्मतों के ओजस्वी स्वरों की गूंज,अल्हाद जीवन शैली,नगारे की थाप, मजीरों की गूंज के बीच ओजस्‍वी स्‍वरों में गाए जाने वाले गीतों का शोर। बिस्सो के चौक का जहां आशापुरा नाट्य संस्‍थान की ओर से नौटंकी शहजादी की रम्‍मत खेली गई। रम्मत की परंपरा करीब 400 साल पुरानी है। आज भी यह परम्परा बीकानेर में निभाई जाती है, जहा एक लड़के को माता का रूप दिया जाता है, और यहाँ इस नज़रो को देखने जान सैलाब इख्ठा होता है। देर रात को शुरू होती ये रमंते सुबह तक चलती है। इनकी विष भूषा भी वैसी ही होती है जैसी पहले पहनी जाती थी पुरुष महिलाओ का रूप धारण करते है पहले ये अपने किरदार के अनुसार तैयार होते है फिर आसपुर माता की आराधना कर मंच पर उतारते है। मनोरंजन के साथ.साथ सामाजिक सरोकारों को बल प्रदान करती ये रम्‍मतें भले ही वर्षों से की जा रही हो पर आज भी लोग इन्‍हें देखने और सुनने के लिए होली का इन्‍तजार करते रहते है

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