बीकानेर.बदमाशों के आगे पुलिस का मुखबिर तंत्र फेल है। पुलिस को बदमाश प्रवृति के लोगों की मुखबिरी नहीं मिल पा रही है। जिस कारण कई अपराधों का खुलासा नहीं हो पा रहा है। इसके बावजूद भी पुलिस अपने परम्परागत मुखबिर तंत्र को मजबूत करने के लिए कोई प्रयास नहीं कर रही है। अपराध की दृष्टि से बीकानेर काफी संवेदनशील जिला है। यहां हर साल औसतन 20 से 25 हजार आपराधिक मामले पुलिस के रेकॉर्ड में दर्ज होते हैं। इनमें हत्या, हत्या के प्रयास, लूट, डकैती, बलात्कार, अपहरण, फायरिंग और फिरौती मांगने जैसे संगीन अपराधों की फेहरिस्त काफी लम्बी रहती है। साथ ही अपराध होने के बाद अपराधियों को पकड़ने में भी पुलिस के पसीने छूट रहे हैं। इसके पीछे प्रमुख वजह है कि बीकानेर जिला पुलिस परम्परागत पुलिसिंग को छोड़ चुकी है। पुलिस और मुखबिरों ने आपस में दूरी बना ली है। आज हालात यह हैं कि जिले में पुलिस का मुखबिर तंत्र काफी कमजोर हो चुका है। ऐसे में काफी आपराधिक घटनाओं की पुलिस को मुखबिरों के माध्यम से सूचना नहीं मिल पा रही है।
मुखबिरों के लिए अलग से बजट नहीं
पहले पुलिस को मुखबिरों के लिए अलग से बजट मिलता था। अपराधियों के बारे में सूचना देने पर पुलिस की ओर से मुखबिरों को ईनाम के रूप में राशि दी जाती थी, लेकिन अब पुलिस को मुखबिरों के लिए कोई बजट नहीं मिलता। कुछ पुलिसकर्मी अपने स्तर पर ही मुखबिरों को ईनाम राशि देकर उनसे अपराधियों के बारे में मुखबिरी कराते हैं।
मोबाइल कॉल डिटेल और सीसीटीवी पर निर्भरता बढ़ी
हाइटेक होने के साथ-साथ पुलिस परम्परागत पुलिसिंग को भूल चुकी है। पुलिस की फील्ड में मौजूदगी कम हो गई है। अपराधों के खुलासे और अपराधियों की धरपकड़ के लिए पुलिस केवल मोबाइल कॉल डिटेल और सीसीटीवी फुटेज पर निर्भर रह गई है। कोई घटना होने पर पुलिस सबसे पहले सीसीटीवी फुटेज और अपराधियों की मोबाइल कॉल डिटेल व टॉवर लोकेशन को खंगालती है। मुखबिर तंत्र को एक्टिव करने पर पुलिस का ध्यान कम रहता है। गली-मोहल्ले व सार्वजनिक स्थानों पर बीट कांस्टेबल, बीट प्रभारी व थाना एवं थानाधिकारी के नंबर दीवारों पर लिखवाए जाते थे। वर्तमान में लोगों को अपने क्षेत्र के बीट कांस्टेबल, बीट प्रभारी तक का पता नहीं है। क्योंकि वर्तमान में दीवारों या बोर्ड पर बीट और अधिकारी का नाम व मोबाइल नंबर नजर नहीं आते। जो नंबर लिखे हुए हैं, वह पुराने हैं। बीट कांस्टेबल व बीट अधिकारी फिल्ड में भी नहीं रहते हैं।
भरोसे की कमी
जानकारों की मानें, तो मुखबिरी तंत्र कमजोर होने का एक बड़ा कारण मुखबिरों में पुलिस के प्रति घटता भरोसा है। पहले जहां पुलिस-मुखबिर के बीच भरोसा एक मजबूत कड़ी थी। कुछ वर्षों में पुलिस की ओर से आंकड़े सुधारने के लिए कई बार मुखबिरों की ही धर-पकड़ से भरोसे की यह कड़ी काफी कमजोर हो चुकी है। गौरतलब है कि पुलिस के मुखबिरों में ज्यादातर आमतौर पर पूर्व या सक्रिय अपराधी ही होते हैं, जो भले ही सक्रिय रहें या शांत बैठे हों, लेकिन जरायम की दुनिया से संबंधित सूचनाएं उनके पास जरूर होती है।
पुलिस की पकड़ करेंगे मजबूत
काफी अपराध ऐसे होते हैं, जिनमें मोबाइल कॉल डिटेल और सीसीटीवी फुटेज काम नहीं आते हैं। ऐसे अपराधों की रोकथाम और खुलासे के लिए परम्परागत बीट व्यवस्था को सुदृढ़ करने का प्रयास किया जा रहा है। इसके लिए मेरी बीट मेरी जिम्मेदारी अभियान शुरू किया जा रहा है। मुखबिरों को पुलिस से जोड़ने का काम करेंगे, ताकि अपराधों पर अंकुश लग सके। धरातल पर पुलिस की पकड़ मजबूत करने के लिए बेहतर प्रयास करेंगे। -तेजस्वनी गौतम, पुलिस अधीक्षक बीकानेर