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 बीकानेर जिसकी पहचान में हजार हवेलियों का शहर से जाने जाने वाली धरातल पर स्थित जूनागढ़., कोटगेट,लालगढ,जैसी धरोहरो कों समझाने के लिए  एक प्रयास है। भुज़ियों का तीखापन वहीं रसगुल्लो की मिठास इनकी पहचान मे से  एक है। ऐतिहासिक रूप से बीकानेर की हवेलियां भी एक विशिष्ट पहचान रखती जिसे बीकानेर की विरासत में जाना जाता है जो बीकानेर की संस्कृति को प्रदर्शित करती शताब्दीयों से भी।अधिक अपनी विरासतों को संजोय हुवे रखने वाला बीकानेर आज अपनी हवेलियों के रूप मे विरासतो कों खो रहा है जिसका सबसे बड़ा उदाहरण बीकानेर में स्थित विभिन्न स्थानों की प्राचीन हवेलियो की नक्कासी किये पत्थरों की विखण्डित कर बीकानेर से बाहर की ओर ले जाया जा रहा  है जो एक अहम् विचारणीय बिन्दु है। इसका दूसरा उदाहरण हमे यह देखने को मिला जो की एक सुखद और खुशनुमा है, बीकानेर की उतरती हवलियो का जो की पारम्परिक रूप से उनको संजोये रखने का निरंतर काम कर रहे है , कलकत्ता निवासी ” शरद कुमार लखोटिया” इन्होंने अपने इस महत्वपूर्ण कार्य से बीकानेर की विरासत हवेलियों की हिफाजत करने का महत्वपूर्ण कदम उठाया है। इन्होंने सर्वप्रथम बीकानेर के लखोटिया चौक में स्थित 130 वर्ष पुरानी अपनी हवेली का जीर्णोदार करवाया तत्पश्चात

तेलीवाडा में स्थित मशहूर और सुप्रसिद्ध रिखबदास बागडी की “गोविन्द हवेली”  जो लगभग 199 साल पुरानी है जिनका जीर्णोदार करवाया व उत्सव वाटिका का निर्माण करवाया  गया।  उसके पश्चात् डागा मोहल्ला स्थित सेठ चुनीलाल डागा की हवेली का जीर्णोदार जो की वर्तमान समय मे कार्यरत  है जो लगभग 70-80 साल पुरानी हवेलियों मे से एक है जिसमे सुनहरी कलम से नक्काशी  का जिसमे  बीकानेर की प्रसिद्ध उस्ता कला ओर मैथरण कला का बेजोड़ नमूना देखने कों मिलता है। इस हवेली में जो लकड़ी खराब हो चुकी उसे ठीक तरीके से उसी स्वरूप में लाने के लिए पिछले कई दिनों से सुथार काम कर रहे हैं इनके अलावा चित्रकार लगातार पुरानी चित्रकारी को नया रूप दे रहे हैं।
खास बात यह है कि यह हवेली लखोटिया के मित्र की हवेली है जो बीकानेर में नहीं हैं इस हवेली का काम पूरी तरह से लखोटिया ही संभाल रहे हैं। शरद लखोटिया कहते है की   बीकानेर की हवेलियों को उनके मूल रूप में रखकर उसे आने वाली पीढीयों के लिए सजोये रखना एक तोहफ़े से कम नहीं है  जिससे भविष्य मे  भी बीकानेर कों हवेलियों की धरोहर” के रूप में देखा जा सके। इनके इस खुबसूरत कार्य इनके सहयोगी जन के रूप में विधि सलाहकार  रमाशंकर कल्ला, निर्माण कार्य हेतु वास्तु सलाहकार सुनील कुमार गहलोत , लुप्त होती भिति चित्रण शैली के सुनहरी कलम के चित्रकार राम कुमार भादाणी अपनी चित्रकारी से पुनः मूल स्वरूप दे रहे है तथा तकनीकी सहयोग के रूप मे योगेश कुमार कल्ला के साथ अन्य सहयोगी के रूप मे कार्यरत है ताकि पुनः इन हवेलियों कों जीवंत रूप मे रखा जा सके।

सबसे महत्वपूर्ण  बात यह है की इन हवेलियों
के संरक्षक द्वारा अपने निजी वहन से इस कार्य कों अंजाम दे रहे है। ताकि उतरती हवेलियों बीकानेर की लुप्त होती धरोहर कों बचाया जा सके । जिनमें स्वयं शरद कुमार लखोटिया, सुशील कुमार बागड़ी(कलकत्ता) मानिक लाल (मुंबई) मनमोहन डागा (कलकत्ता)परिवार आदि, निवासीयों का मुख्य योगदान दे रहे हैं।

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