










बीकानेर,जो राजस्थान सरकार हाई कोर्ट के आदेशों को नहीं मानती अगर यह सही बात है तो फिर रांका के अनशन से कैसे मान जाएगी ? राजनीति को भी क्या मजाक बना दिया है। ई सी बी के 18 अशेक्षणिक कार्मिकों को हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद पुन: नियुक्ति नहीं देने और वित्तीय घोटाले की सीबीआई जांच की मांग हो सकता है बहुत ही न्याय संगत हो। सवाल यह है कि विधानसभा चुनाव के 9 माह पहले ही यह मुद्दा क्यों उठाया गया? भावना अगर न्याय दिलाने की होती तो यह काफी पुराना मुद्दा है इतनी देरी से क्यों उठाया गया ? महावीर रांका कहीं गए थोड़े थे। अब ही क्यों फुर्सत मिली। लोग सब समझते हैं कि रांका चुनाव लडना चाहते हैं, तो पार्टी और जनता की नजरों में आने की व्यूह रचना का यह अनशन हिस्सा है। थोड़े दिन पहले गोपाल गहलोत ने भी सीवरेज के कारण दुर्घटना के पुराने मामले में राजनीति अजमाई थी। अब महावीर रांका अजमा रहे हैं। जिनके साथ अन्याय हुआ है उनकी आवाज बनना लोकतंत्र में जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी है। कोई नेता यह जिम्मेदारी लेते हैं तो वे जननेता बन जाते हैं। नि:स्वार्थ भाव से कितने नेताओ में यह माद्दा है। अब मुद्दों पर राजनीति की रोटियां सेंकने में तो लगे है। जैसे जैसे चुनाव नजदीक आते जाएंगे जनता के प्रति और भी चुनाव की चाह वाले नेताओं की बांहे फड़केगी। कई नेता और धरने देंगे या जनता की नजरों में आने की फिड़केबाजी होगी। जो सत्ता में है वो विकास के कामों का लेखा जोखा रखेंगे। उपलब्धियों के झूठे सच्चे गीत गाएंगे। अपना अभिनंदन करवाएंगे। उद्घाटन और नाम पट्टिका लगाएंगे। यह तो राजनीति की प्रकृति है तो होगा ही। राजनीति भले ही करो पीड़ितों को दाव पर लगाना ठीक नहीं है। राजस्थान सरकार को ईसीबी के 18 अशेक्षिणक कार्मिकों के प्रति मानवीय दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। हाई कोर्ट ने उनके हित में निर्णय दिया है तो लागू करना ही चाहिए। हाई कोर्ट के आदेश की अवमानना के आरोप का सच तो न्यायिक विश्लेषण से ही जाना जा सकता है। सरकार 18 अशेक्षणिक कार्मिकों के हित में जितना कर सकें करें, तो ही लोक कल्याणकारी सरकार कहलाएगी ।
पीड़ितों को दाव पर लगाकर राजनीति करना ठीक नहीं हो सकता। भले कोई अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए कितने ही दावपेंच लगा लें, सच्चा जन नेता तो जनता बीच रहकर जनहित के काम से ही बना जा सकता है। दावपेंच से नहीं ।
