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बीकानेर,जेल में ‘खेल’ के बारे में आपने सुना तो होगा, लेकिन बीकानेर जेल का एक ऐसा मामला सचिवालय से लेकर जेल महकमें तक में चर्चा में है.

जेल डीआईजी ने कैदी की समय से पूर्व रिहाई के मामले में तत्कालीन जेल अधीक्षक को दोषी ठहराया. इसके बावजूद कार्रवाई नहीं हुई, उल्टा जेल आईजी ने विधानसभा को गोलमाल जवाब दे दिया. मामला यहीं नहीं रुका, दबाव पड़ा तो जेल महानिदेशालय स्तर पर डीआईजी की अध्यक्षता में जांच के लिए कमेटी गठित कर दी. फिलहाल जांच कमेटी की रिपोर्ट का एक महीने से इंतजार है. देखिए एक रिपोर्ट.

प्रदेश की जेलों में कई तरह के कारनामें हो रहे हैं, लेकिन बाहरी दखल नहीं होने के कारण इनका किसी को पता नहीं चल पाता है . बीकानेर जेल का मामला चर्चा का विषय बना हुआ है, जिसमें जेल अधीक्षक ने कैदी को समय से पूर्व रिहा कर दिया. मामला है बीकानेर जेल में सजा काट रहे बलजीत उर्फ भल्लो का. झुंझुनूं के बगड़ मोहल्ला निवासी बलराज उर्फ भल्लो को कोर्ट ने 18 मार्च 2015 को सात साल की सजा और सात हजार जुर्माने की सजा से दंडित किया. बलजीत को नियम 74 दिन कार्य का परिहार और चार दिन विशेष परिहार देकर 78 दिन पहले ही जेल से रिहा कर दिया गया.

मामले की शिकायत हुई तो तत्कालीन जेल आईजी ने जोधपुर डीआईजी सुरेंद्र सिंह शेखावत जेल को जांच सौंपी. डीआईजी ने 28 जुलाई 2022 को दी जांच रिपोर्ट में इस परिहार को गलत मानते हुए जेल नियमों का उल्लंघन बताया और तत्कालीन जेल अधीक्षक परमजीत सिंह और डिप्टी जेलर विजय सिंह को बलराज उर्फ भल्लो की गलत रिहाई के लिए जिम्मेदार माना. जेल डीआईजी ने जांच में पाया कि कैदी की रिहाई के समय जेल अधीक्षक कार्यालय में मौजूद थे, लेकिन रिहाई पर हस्ताक्षर नहीं किए. ऐसे कई मामलों में तत्कालीन जेल अधीक्षक के हस्ताक्षर नहीं है, तो क्या सारे मामलों में सांठगांठ हुई है ? वहीं दूसरी ओर जेल प्रशासन यह मानने के लिए ही तैयार नहीं है.

बीकानेर जेल से बंदी की गलत रिहाई का मामला जेल महानिदेशालय पहुंचा, लेकिन उस पर लीपापोती कर दी गई

बलराज की गलत रिहाई की जांच ही नहीं करवाई गई और बिना जांच के लिए आईजी जेल विक्रम सिंह ने 12 मई 2020 को मामले का निपटारा कर दिया.
आईजी ने अपनी फाइंडिग में जेल अधीक्षक के रिकॉर्ड के आधार पर माना कि बंदी बलराज ने जेल सेवा और उद्योगशाला में कार्य किया, जिस पर विशेष परिहार दिया गया. इस आधार पर बलराज की रिहाई को नियमानुसार माना

इधर जेल ने मुख्यालय भेजी रिपोर्ट में कहा था कि बंदी बलराज के जेल सेवा और उद्योगशाला में काम नहीं करना बताया और रिकॉर्ड में फर्जी तरीके से टिकिट में दर्ज करना प्रमाणित माना गया.
यह बात भी गौर करने योग्य है कि किसी राजपत्रित अधिकारी के खिलाफ शिकायत का निपटारा सीएमओ या डीओपी ही कर सकता है, जबकि विभाग का एचओडी अधिकृत नहीं है
इसके बावजूद जेल आईजी ने अपने स्तर पर ही केस का निपटारा कर दिया.

इधर रिटायर्ड जेल अधीक्षक नंदसिंह शेखावत ने बंदी बलराज को फर्जी तरीके से रिहा करने का मामले की गृह विभाग के एसीएस से लेकर मुख्य सचिव तक शिकायत की.
दूसरी ओर जहाजपुर विधायक गोपीचंद मीणा ने विशेष उल्लेख प्रस्ताव के जरिए इस मामले को विधानसभा में उठाया, जिस पर आईजी जेल ने ही गोलमाल जवाब देते हुए रिहाई को सही बताया.

इधर मामला बढ़ने लगा तो आईजी विक्रम सिंह ने 19 दिसम्बर 2022 को बीकानेर जेल में बंदी बलराज की गलत रिहाई पर जांच के लिए कमेटी बिठा दी.
डेढ़ महीने से ज्यादा वक्त हो चुका है, लेकिन कमेटी ने अपनी रिपोर्ट नहीं दी है

सवाल यह उठता है कि मामला नियमानुसार सही था तो जांच कमेटी क्यों बिठाई
अधीनस्थ अधिकारियों की कमेटी क्या रिपोर्ट दे पाएगी सवाल यह भी है, खैर तमाम सवाल संदेह के घेरे में है.

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