बीकानेर,शांतिनिकेतन, गंगाशहर। श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा द्वारा मर्यादा महोत्सव का आयोजन शांति निकेतन में किया गया। इस अवसर पर मुनि श्री श्री श्रेयांश कुमार जी ने कहा कि धर्मसंघ में आज्ञा, मर्यादा व अनुशासन का बहुत महत्व है। उन्होंने गीतिकाओं के माध्यम से मर्यादा के पालन करने की सीख दी। सेवाकेंद्र व्यवस्थापिका साध्वी श्री कीर्तिलता जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि तेरापंथ का मर्यादा महोत्सव अनूठा, अद्वितीय व सबसे न्यारा है। यह मर्यादा व अनुशासन का समारोह है। धर्मसंघ नंदनवन है, आचार्य कल्पवृक्ष है, साधु- साध्वी कुसुमलता हैं तथा मर्यादा अनुशासन सुरभित पराग है। वर्तमान युग प्रबंधन का युग है, आचार्य भिक्षु ने अपने प्रबंधन कौशल का परिचय देते हुए संविधान बनाया। तेरापंथ धर्म संघ में साधुत्व के 3 सूत्र हैं – समर्पण, मर्यादा, अनुशासन। मुनि श्री प्रबोध कुमार जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि जैन साधु अत्यंत त्यागी होते हैं। इसका कारण है- मर्यादा। साधुत्व की मर्यादा तथा आगम कालीन मर्यादा तो पूर्व से है ही, आचार्य भिक्षु ने तीसरी मर्यादा बनाई। दूरदर्शिता पूर्वक चिंतन से उन्होंने संविधान लिखा, आचार्य जयाचार्य ने मर्यादा महोत्सव को महोत्सव का रूप दिया। वर्तमान में संघ का जो विराट स्वरूप हम देख रहे हैं उसके मूल में यह संविधान ही है। उन्होंने कहा कि नंदी सूत्र में संघ को समुद्र की उपमा दी है क्योंकि समुद्र अपनी मर्यादा में बंधा हुआ होता है जबकि नदी मर्यादा पार करके बाढ़ आदि से तबाही का कारण भी बन जाती है।
कार्यक्रम का शुभारंभ मुनि श्री श्रेयांश कुमार जी द्वारा प्रस्तुत मंगलाचरण से हुआ। उपासक-उपासिकाओं ने सामूहिक गीतिका का संगान किया। कन्या मंडल ने सुंदर परिसंवाद प्रस्तुत किया। मुनि श्री विमल बिहारी जी ने अपने उद्बोधन में मर्यादा का महत्व बताया। साध्वीश्री पूनम प्रभा जी तथा शासनश्री साध्वी श्री लाभवतीजी ने गीतिका का संगान किया। संघ गान के सामूहिक गायन के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ।