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बीकानेर, बकानेर का नाम सुनते ही वहां के रेगिस्तान और रेगिस्तान का जहाज कहलाने वाले ‘ऊंट’ की तस्वीर आंखों के सामने बनने लगती है.पहले प्रदेश के हर घर में ऊंट पाया जाता था, लेकिन धीरे-धीरे इनकी तादाद कम होती गई और अब प्रदेश के कुछ ग्रामीणों के पास ही एक या दो ऊंट देखने को मिलते हैं. बता दें कि ऊंट को कुछ साल पहले राजस्थान सरकार राष्ट्रीय पशु का दर्जा दे चुकी है.

पशुपालक के पास आज भी 500 ऊंट
वहीं, प्रदेश में एक पशुपालक ऐसा है, जिसके पास आज के टाइम में भी 500 ऊंट हैं और वह इन पांच सौ ऊंटों को अकेला पाल रहा है. ये पशुपालक की तस्वीर बीकानेर के मिठड़िया गांव की है और ये पशुपालक इसी गांव का रहने वाला है. ये काफी बुजु्र्ग है और इन्होंने बताया कि ये काम इनके यहां कई पीढ़ियां करती आई इसलिए यही काम करते हैं.

ऊंटनी से दूध से होता बीमारियों का इलाज
वहीं, उन्होंने बताया कि इनके पास पहले 1500 से करीब ऊंट थे, जिसमें अब 500 बचे हैं. इसने बताया कि ऊंटनी से 1 से 2 क्विंटल दूध हो जाता है और उसके दूध से कई बीमारियों का इलाज हो जाता है. वहीं, इसके दूध से शुगर का इलाज हो जाता है. वे खुद भी ऊंटनी का ही दूध पीते हैं.

ऊंट की कूबड़ में पानी नहीं होता जमा
ऊंट को रेगिस्तान का जहाज कहां जाता है, क्योंकि ये कई दिनों तक बिना खाए पिए रेगिस्तान की गर्म रेत में चल सकता है. हालांकि जब ऊंट पानी पीता है, तो एक बारी में ही लगभग 150 लीटर पानी पी जाता है. कहते हैं कि ऊंट अपने कूबड़ में पानी को में जमा कर लेता है, लेकिन यह बात गलत है, बल्कि इसके कूबड़ में पानी नहीं वसा जमा होता है, जो ऊंट के शरीर को ठंडा रखता है.

ऊंट की चमड़ी मोटी होने के कारण ये रेगिस्तान की जलती रेत पर आराम से चल पाता है. एक ऊंट का 40 से 50 साल तक जीवित रहता है और एक ऊंट का वजन 600 किलो तक हो सकता है.

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